भिलाई नगर (पब्लिक फोरम)। संविधान स्वीकृति के 75वें वर्षगांठ के अवसर पर संयुक्त श्रम संगठनों और किसान मोर्चा के बैनर तले भिलाई में सरकार की मजदूर और किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुआ। घड़ी चौक, सुपेला में दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे तक चले इस प्रदर्शन में विभिन्न संगठनों ने अपनी आवाज बुलंद की। इस दौरान महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन कलेक्टर, जिला दुर्ग के माध्यम से थाना प्रभारी सुपेला को सौंपा गया।
संविधान की रक्षा का लिया संकल्प
प्रदर्शनकारियों ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ कर इसे बचाने और उसके मूल्यों की रक्षा करने का संकल्प लिया। यह आयोजन सीआईटीयू, एटक, एचएमएस, एक्टू, स्टील वर्कर्स यूनियन और लोइमू सहित कई संगठनों के संयुक्त प्रयास से हुआ।

प्रमुख मांगें और ज्ञापन की बातें
प्रदर्शनकारियों ने ज्ञापन में निम्नलिखित मांगे रखीं।
1. श्रम कोड की वापसी – चार श्रम कोड को रद्द करने की मांग।
2. ठेकाकरण व आउटसोर्सिंग बंद – रोजगार की स्थायित्वता सुनिश्चित हो।
3. राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन – सभी श्रमिकों के लिए ₹26,000 प्रति माह वेतन और ₹10,000 मासिक पेंशन लागू हो।
4. निजीकरण पर रोक – रक्षा, रेलवे, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, और सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण रोका जाए।
5. भूमि अधिग्रहण का विरोध – अंधाधुंध भूमि अधिग्रहण खत्म हो और 2013 भूमि अधिग्रहण कानून व वन अधिकार कानून लागू किए जाएं।
6. मनरेगा सुधार – मनरेगा में 200 दिन काम और ₹600 प्रतिदिन मजदूरी सुनिश्चित हो।
7. सामाजिक भेदभाव और हिंसा पर रोक – दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव खत्म हो।
8. किसानों के लिए एमएसपी – सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी।
प्रदर्शनकारियों का न्यायपूर्ण संदेश
वक्ताओं ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह नीतियां संविधान की मूल भावना और देश के वंचित वर्गों के अधिकारों के खिलाफ हैं। प्रदर्शन में विजय जागड़े, विनोद कुमार सोनी, बृजेंद्र तिवारी, नंदकिशोर गुप्ता, अशोक मिरी, त्रिलोक मिश्रा, अशोक पंडा, शमीम कुरैशी, कलादास डहारिहा और अर्चना ध्रुव ने अपने विचार व्यक्त किए।
मानवाधिकार और संविधान की रक्षा की अपील
प्रदर्शनकारियों ने जोर देकर कहा कि सरकार को संविधान और मानवाधिकारों की रक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। प्रदर्शन में भारी संख्या में मजदूरों और किसानों की भागीदारी ने यह संदेश दिया कि देश के मेहनतकश वर्ग अपने अधिकारों के लिए एकजुट हैं और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्षरत रहेंगे।
यह प्रदर्शन न केवल सरकार की नीतियों के खिलाफ एक आवाज थी, बल्कि संविधान और देश के श्रमिक-किसानों के अधिकारों की सुरक्षा का संकल्प भी। इस आंदोलन ने साबित किया कि जब अन्याय के खिलाफ आवाज उठती है, तो वह संविधान की नींव को और मजबूत करती है।
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