नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर क्षेत्र में हाल ही में हुई एक हिंसक घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। भारतीय की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (भाकपा-माले) ने सीपीआई (माओवादी) के महासचिव केशव राव सहित कई माओवादी कार्यकर्ताओं और निर्दोष आदिवासियों की नृशंस हत्या की कड़ी निंदा की है। इस घटना ने न केवल आदिवासी समुदाय के दर्द को उजागर किया है, बल्कि सरकार की नीतियों और ऑपरेशन कगार की दिशा पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
एक दुखद और विवादास्पद घटना
पिछले कुछ दिनों में नारायणपुर-बीजापुर के जंगलों में सुरक्षाबलों द्वारा चलाए गए ऑपरेशन कगार के तहत कई माओवादी कार्यकर्ताओं और आम आदिवासियों की जान चली गई। भाकपा (माले) ने इस कार्रवाई को “न्याय व्यवस्था से परे सामूहिक विनाश” का अभियान करार दिया है। पार्टी का कहना है कि इस तरह की कार्रवाइयां माओवाद के दमन के नाम पर आदिवासी समुदायों को निशाना बना रही हैं, जो अपनी जमीन और आजीविका को कॉरपोरेट लूट और सैन्यीकरण से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इस घटना की खबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा उत्सवी अंदाज में साझा करने पर भी भाकपा (माले) ने तीखी आपत्ति जताई है। पार्टी ने इसे संवेदनहीनता का प्रतीक बताया और कहा कि यह दृष्टिकोण आदिवासियों के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।
आदिवासियों का दर्द और उनकी अनसुनी आवाज
छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में बसे आदिवासी समुदाय लंबे समय से अपनी जमीन, संस्कृति और आजीविका को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। कॉरपोरेट हितों के लिए खनन और औद्योगिक परियोजनाओं ने इन समुदायों को उजाड़ने का काम किया है। भाकपा (माले) का दावा है कि ऑपरेशन कगार जैसी सैन्य कार्रवाइयां इस संघर्ष को कुचलने का एक हथियार बन रही हैं।
“यह सिर्फ माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं है, बल्कि आदिवासियों के प्रतिरोध को दबाने की साजिश है। निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं, और उनकी आवाज को दबाया जा रहा है,” भाकपा (माले) की केंद्रीय कमेटी ने अपने बयान में कहा।
न्यायिक जांच की मांग
भाकपा (माले) ने इस घटना की निष्पक्ष और पारदर्शी न्यायिक जांच की मांग की है। पार्टी ने माओवादियों द्वारा पहले ही घोषित युद्धविराम का हवाला देते हुए सरकार से सैन्य कार्रवाइयों को तत्काल रोकने की अपील की है। “हम सभी न्यायप्रिय भारतवासियों से अनुरोध करते हैं कि इस जनसंहार के खिलाफ आवाज उठाएं और सरकार पर दबाव डालें कि वह हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत और शांति की दिशा में कदम बढ़ाए,” पार्टी ने अपने बयान में जोड़ा।
सरकार की नीति पर सवाल
ऑपरेशन कगार, जिसे माओवादी गतिविधियों को रोकने के लिए शुरू किया गया था, अब कई सवालों के घेरे में है। आलोचकों का कहना है कि यह अभियान आदिवासी समुदायों के खिलाफ एक सुनियोजित हमले का हिस्सा है, जिसका मकसद कॉरपोरेट हितों को बढ़ावा देना है। क्षेत्र में भारी सैन्यीकरण और हिंसा ने स्थानीय लोगों में डर और अविश्वास का माहौल पैदा किया है।
“जब गृह मंत्री ऐसी घटनाओं को उत्सव की तरह पेश करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार का मकसद सिर्फ शांति स्थापित करना नहीं, बल्कि एक विशेष समुदाय को हाशिए पर धकेलना है,” एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा।
मानवीय दृष्टिकोण और भविष्य की राह
इस घटना ने न केवल छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों के दर्द को उजागर किया है, बल्कि पूरे देश में मानवाधिकारों और न्याय के सवाल को फिर से उठाया है। क्या सरकार और सुरक्षाबल आदिवासियों की आवाज सुनेंगे? क्या हिंसा का यह चक्र कभी थमेगा? ये सवाल हर उस भारतीय के मन में हैं, जो शांति और समानता में विश्वास रखता है।
भाकपा (माले) ने देशवासियों से एकजुट होकर इस मुद्दे पर आवाज उठाने की अपील की है। पार्टी का कहना है कि केवल बातचीत, समझ और संवेदनशीलता ही इस संकट का समाधान कर सकती है।
छत्तीसगढ़ में हुई इस ताजा हिंसा ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि शक्ति और सैन्यीकरण से समस्याओं का हल नहीं निकलता। यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर आदिवासियों के दर्द को समझें और उनकी आवाज को सुनें। भाकपा (माले) की मांग और इस घटना ने देश के सामने एक चुनौती पेश की है—क्या हम हिंसा के इस रास्ते को चुनेंगे या शांति और न्याय की राह अपनाएंगे?
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