नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनकी स्मृति में स्मारक बनाने को लेकर विवाद ने राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है।
भाजपा ने दावा किया है कि डॉ. मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी स्मृति में स्मारक बनाने का निर्णय पहले ही लिया गया था। भाजपा प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने शनिवार (28 दिसंबर, 2024) को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को उचित सम्मान देने के लिए प्रतिबद्ध है।”
क्या है विवाद का केंद्र?
सुधांशु त्रिवेदी ने बताया कि शुक्रवार को हुई कैबिनेट बैठक में डॉ. मनमोहन सिंह की स्मृति में एक स्मारक और समाधि बनाने का निर्णय लिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि कांग्रेस नेतृत्व को इस फैसले की जानकारी दे दी गई थी।
त्रिवेदी ने कहा, “केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को स्पष्ट रूप से सूचित किया था कि सरकार स्मारक बनाने के लिए सभी आवश्यक प्रक्रियाएं जल्द पूरी करेगी। लेकिन कांग्रेस ने इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति शुरू कर दी है।”
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया कि डॉ. मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर किया गया, जबकि पार्टी चाहती थी कि ऐसा स्थान चुना जाए जहां बाद में स्मारक बनाया जा सके। कांग्रेस ने यह भी दावा किया कि यूपीए सरकार ने 2013 में ही तय कर दिया था कि सभी प्रधानमंत्रियों और नेताओं के लिए राष्ट्रीय स्मृति स्थल पर एक साझा स्मारक बनाया जाएगा, न कि व्यक्तिगत समाधि स्थल।
भाजपा का पलटवार
त्रिवेदी ने कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा, “कांग्रेस पार्टी, जिसने अपने कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह को कभी उचित सम्मान नहीं दिया, अब उनके निधन के बाद राजनीति कर रही है। यह याद रखना चाहिए कि मनमोहन सिंह पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जो नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के थे और उन्होंने 10 वर्षों तक देश का नेतृत्व किया। दुख की इस घड़ी में राजनीति से बचा जाना चाहिए।”
स्मारक निर्माण का मुद्दा
भाजपा ने यह स्पष्ट किया कि डॉ. मनमोहन सिंह की स्मृति में स्मारक बनाने का काम भूमि अधिग्रहण, ट्रस्ट गठन और अन्य प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद उचित तरीके से किया जाएगा।
इस विवाद ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या किसी महान नेता की स्मृति को राजनीति से ऊपर रखा जा सकता है? भाजपा ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नेताओं का सम्मान देने की बात कही है, जबकि कांग्रेस ने इसे राजनीतिक फायदे के लिए उठाया गया कदम बताया है।
यह विवाद केवल स्मारक निर्माण का नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं और संवेदनशीलता पर भी सवाल उठाता है। डॉ. मनमोहन सिंह, जो अपनी सादगी और निष्ठा के लिए जाने जाते थे, शायद इस विवाद में अपने योगदान की तुलना में ज्यादा सम्मान के पात्र हैं। ऐसे में सभी दलों से उम्मीद की जाती है कि वे इस क्षण को राजनीति से ऊपर रखकर एकजुटता का परिचय दें।
क्या हम सच में अपने नेताओं को उचित सम्मान देना जानते हैं, या यह सब केवल राजनीतिक स्वार्थ का हिस्सा है? यह सवाल हर नागरिक को सोचने पर मजबूर करता है।
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