जांजगीर-चांपा (पब्लिक फोरम)। मड़वा ताप विद्युत परियोजना के खिलाफ चल रहे भू-विस्थापित आंदोलन ने 46 दिनों के संघर्ष के बाद नया मोड़ ले लिया है। इस आंदोलन को कोरबा महिला सभा (एनएफआईडब्ल्यू) और अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) जैसे संगठनों का सक्रिय समर्थन मिला है। आंदोलनकारियों की मांगें स्पष्ट और मानवीय हैं—पुनर्वास, रोजगार और मुआवजे की गारंटी।
46 दिन का संघर्ष और प्रशासन की चुप्पी
महिला सभा की छत्तीसगढ़ राज्य सह सचिव विजयलक्ष्मी चौहान ने आंदोलन को “महिला, किसान और मजदूर विरोधी” बताया। उन्होंने कहा, “हमारा समर्थन भू-विस्थापितों के साथ है। महिलाओं के इस संघर्ष को कमजोर नहीं होने देंगे।” वहीं, जिला सचिव हेमा चौहान ने प्रबंधन और प्रशासन पर मानवता-विरोधी रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा, “महिलाएं अपनी आवाज़ बुलंद करेंगी। उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और तेज होगा।”
किसान सभा का समर्थन और आंदोलन का विस्तार
अखिल भारतीय किसान सभा के नेता राम मूर्ति दुबे ने कहा, “हम इस आंदोलन के साथ मजबूती से खड़े हैं। यदि मांगों पर विचार नहीं हुआ, तो आंदोलन का विस्तार पूरे जिले में किया जाएगा।” सीपीआई के जिला सचिव पवन कुमार वर्मा ने भू-विस्थापितों से किए गए वादों की याद दिलाते हुए कहा, “जब जमीन ली गई थी, तब नौकरी देने की गारंटी दी गई थी। अब इसे शैक्षणिक योग्यता का बहाना बनाकर टाला जा रहा है। यह अन्याय है।”
भू-विस्थापन की कहानी: कम मुआवजा और अधूरी वादे
साल 2007 में मड़वा-तेन्दुभांठा के किसानों से उनकी उपजाऊ जमीन ₹3,64,000 प्रति एकड़ की दर से खरीदी गई थी। वादा किया गया था कि विस्थापितों को नौकरी, जीवन निर्वाह भत्ता और पुनर्वास के तहत अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। लेकिन 17 साल बाद भी ये वादे अधूरे हैं। प्रभावित गांवों को बिजली, पानी, सड़क और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रखा गया है।
महिलाओं का नेतृत्व: भूख हड़ताल में मातृशक्ति की भूमिका
आंदोलन के 46वें दिन से महिलाओं ने 24 घंटे की क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी। 28 नवंबर 2024 को यह भूख हड़ताल 21वें दिन में प्रवेश कर चुकी है। भू-विस्थापित दिलेश्वरी साहू (23), कांति बाई केंवट (35) और अंजू चौहान (19) ने प्रशासन की उपेक्षा पर नाराजगी जताई। महिलाओं ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और उग्र होगा।
आंदोलन में शामिल महिलाओं और ग्रामीणों ने प्रशासन से भावनात्मक अपील की है। उनका कहना है कि वे अपने बच्चों और परिवार के भविष्य के लिए लड़ रहे हैं। यदि इस दौरान किसी अप्रिय घटना घटती है, तो उसकी जिम्मेदारी पूरी तरह शासन, प्रशासन और मड़वा ताप विद्युत प्रबंधन पर होगी।
क्या चाहते हैं आंदोलनकारी?
1. नौकरी की गारंटी: पुनर्वास नीति के तहत विस्थापितों और उनके परिवारों को रोजगार मिले।
2. जीवन निर्वाह भत्ता: नौकरी मिलने तक विस्थापितों को मुआवजा राशि के रूप में भत्ता दिया जाए।
3. बुनियादी सुविधाएं: प्रभावित गांवों को बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था मिले।
46 दिनों से जारी इस संघर्ष ने जिले में सामाजिक और राजनीतिक हलचल मचा दी है। यह केवल मुआवजे या नौकरी का मुद्दा नहीं, बल्कि मानवता और न्याय का सवाल है। यदि प्रशासन और प्रबंधन ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो यह आंदोलन राज्य स्तर पर एक बड़ा आंदोलन बन सकता है।
क्या छत्तीसगढ़ सरकार और मड़वा ताप विद्युत प्रबंधन इस आक्रोश को शांत कर पाएंगे, या यह आंदोलन और बड़ा रूप लेगा? यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
Recent Comments