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रविवार, सितम्बर 28, 2025
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लद्दाख में उठी हक़ की आवाज़: राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर भारी विरोध प्रदर्शन

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पूर्ण राज्य के दर्जे और संविधान की छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा की मांगों को लेकर विरोध की ज्वाला एक बार फिर तेज़ हो गई है। 24 सितंबर को, हज़ारों की संख्या में लोगों ने सड़कों पर उतरकर अपनी आवाज़ बुलंद की। यह प्रदर्शन लद्दाख के लोगों की उन गहरी चिंताओं और आकांक्षाओं को दर्शाता है, जिन्हें वे लंबे समय से सरकार के सामने रखते आ रहे हैं।

यह विरोध प्रदर्शन उस व्यापक आंदोलन का हिस्सा है जो 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही आकार ले रहा है। शुरुआत में इस निर्णय का स्वागत करने वाले लद्दाख के लोग अब अपनी ज़मीन, संस्कृति, पहचान और रोज़गार को लेकर चिंतित हैं। उन्हें डर है कि बाहरी प्रभाव और कॉर्पोरेट हितों के कारण इस संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी और अनूठी आदिवासी विरासत को नुकसान पहुँच सकता है।

क्या हैं प्रमुख मांगें?
लद्दाख के लोगों की मुख्य रूप से चार प्रमुख मांगें हैं:
🔹पूर्ण राज्य का दर्जा: लोगों का मानना है कि केवल पूर्ण राज्य का दर्जा ही उन्हें अपने भविष्य के बारे में निर्णय लेने और अपनी सरकार चुनने का लोकतांत्रिक अधिकार दे सकता है। वर्तमान केंद्र शासित प्रदेश की व्यवस्था में वे खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।
🔹छठी अनुसूची में शामिल करना: संविधान की छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त ज़िला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है, जिससे स्थानीय समुदायों को अपनी ज़मीन, जंगल और संसाधनों पर अधिकार मिलता है। लद्दाख की 97% से अधिक आबादी आदिवासी है, और वे अपनी आदिवासी पहचान की रक्षा के लिए यह संवैधानिक सुरक्षा चाहते हैं।
🔹लोक सेवा आयोग का गठन: लद्दाख के युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर सुनिश्चित करने हेतु एक अलग लोक सेवा आयोग (PSC) की मांग की जा रही है।
🔹संसदीय प्रतिनिधित्व: लेह और कारगिल ज़िलों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटों की मांग भी इस आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

सोनम वांगचुक का अनशन और बढ़ता दबाव
इस आंदोलन को प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक के अनशन से भी बल मिला है। वांगचुक, जो लेह के एनडीएस ग्राउंड में पिछले 15 दिनों से अनशन पर हैं, सरकार से लद्दाख के लोगों की मांगों पर ध्यान देने की लगातार अपील कर रहे हैं। उनके साथ कई अन्य कार्यकर्ता भी क्रमिक अनशन पर बैठे हैं, जिनमें से कुछ का स्वास्थ्य बिगड़ने की भी खबरें हैं, जो स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करता है।

सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच संवाद की आवश्यकता
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करते समय केंद्र सरकार ने लद्दाख के विकास और संरक्षण का वादा किया था, लेकिन अब वे उन वादों से मुकर रही है। उनका आरोप है कि सरकार उनकी लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को नज़रअंदाज़ कर रही है और इस क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

इस पूरे प्रकरण में, संवाद की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही है। लद्दाख, जो अपनी सामरिक स्थिति और नाजुक पर्यावरण के लिए जाना जाता है, में किसी भी तरह की अशांति देश के हित में नहीं है। सरकार को प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत कर उनकी चिंताओं को समझना और एक ऐसा रास्ता निकालना होगा जो लद्दाख के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान करता हो और साथ ही इस क्षेत्र के अनूठे चरित्र को भी संरक्षित रखता हो। यह न केवल संघवाद की भावना को मज़बूत करेगा, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों में विश्वास और सुरक्षा की भावना भी पैदा करेगा।

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