🔸प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता और शिक्षाविद सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार किया गया।
🔸गिरफ्तारी से पहले लेह में हुए हिंसक प्रदर्शनों में पुलिस की गोलीबारी से कम से कम चार लोगों की मौत हो गई।
🔸लद्दाख के लोग पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल होने की मांग कर रहे हैं।
🔸विपक्षी दलों ने गिरफ्तारी की निंदा करते हुए इसे सरकार का “दमनकारी” कदम बताया है।
लेह/नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। हिमालयी क्षेत्र लद्दाख में लंबे समय से चल रहा आंदोलन अब एक गंभीर मोड़ पर पहुंच गया है। 24 सितंबर को हुए हिंसक प्रदर्शनों के कुछ दिनों बाद, 26 सितंबर को प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता और शिक्षाविद सोनम वांगचुक को केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी लेह में हुए उन हिंसक झड़पों के बाद हुई है, जिनमें पुलिस की गोलीबारी में कम से कम चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और दर्जनों अन्य घायल हो गए। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया है और लद्दाख के भविष्य को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और सरकार का पक्ष
मैगसेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक को कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार किया गया और राजस्थान की जोधपुर सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है।प्रशासन ने उन पर “भड़काऊ” भाषण देने और युवाओं को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाया है, जिसके कारण 24 सितंबर को सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। लद्दाख के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एस.डी. सिंह जामवाल ने यह भी दावा किया है कि वांगचुक के पाकिस्तान से संबंधों की जांच की जा रही है और उन पर बातचीत की प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश करने का आरोप है।
सरकार के अनुसार, वांगचुक के भाषणों ने माहौल को बिगाड़ा, जिसके चलते प्रदर्शनकारियों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्थानीय कार्यालय और एक पुलिस वाहन को आग लगा दी।गृह मंत्रालय का कहना है कि सुरक्षा बलों को “आत्मरक्षा में” गोली चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके अलावा, वांगचुक द्वारा स्थापित गैर-सरकारी संगठन, स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL) का विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया है।
लद्दाख के लोगों की मांगें और विरोध का कारण
यह विरोध और अशांति अचानक नहीं भड़की है। साल 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर से अलग कर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही यहां के लोगों में अपनी पहचान, भूमि, संस्कृति और रोजगार को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें हैं:
पूर्ण राज्य का दर्जा: लद्दाख के लोग चाहते हैं कि उनका क्षेत्र एक केंद्र शासित प्रदेश के बजाय एक पूर्ण राज्य बने, ताकि उनके पास अपनी एक निर्वाचित विधानसभा और सरकार हो।
छठी अनुसूची में शामिल करना: लद्दाख की 90% से अधिक आबादी आदिवासी है। वे संविधान की छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी आदिवासी पहचान, भूमि और संसाधनों की रक्षा हो सके।
रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व: स्थानीय युवाओं के लिए नौकरियों में आरक्षण और संसद में लेह और कारगिल के लिए दो अलग-अलग सीटों की मांग भी इस आंदोलन का एक प्रमुख हिस्सा है।
सोनम वांगचुक इन्हीं मांगों को लेकर पिछले कुछ समय से शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और उन्होंने 15-दिवसीय भूख हड़ताल भी की थी।
गिरफ्तारी पर भाकपा-माले की प्रतिक्रिया
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी की कई राजनीतिक दलों ने कड़ी निंदा की है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने इसे “सरकार का बदला लेने वाला एजेंडा” बताया है। पार्टी ने एक बयान में कहा कि यह गिरफ्तारी सरकार द्वारा लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं के साथ विश्वासघात और संविधान को रौंदने का प्रतीक है। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने वांगचुक की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग की है। अन्य विपक्षी दलों ने भी इसे सरकार की “विफलताओं” से ध्यान हटाने और दमन के माध्यम से एक वैध आंदोलन को दबाने का प्रयास बताया है।
लद्दाख में मौजूदा हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया है और इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं। सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी और चार युवाओं की मौत ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया है। यह घटना शांतिपूर्ण माने जाने वाले लद्दाख के इतिहास में एक काले दिन के रूप में दर्ज हो गई है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार इस संकट को कैसे संभालती है और क्या वह लद्दाख के लोगों की उन मांगों पर विचार करती है, जिनके लिए वे लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।
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