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बुधवार, जुलाई 23, 2025
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कोरबा: नौकरी के लिए महिलाओं का अर्धनग्न प्रदर्शन, दशकों पुराने वादों को लेकर एसईसीएल के खिलाफ आक्रोश

कोरबा (पब्लिक फोरम)। अपने हक और रोजगार की मांग को लेकर जब सब्र का बांध टूट गया, तो कोयला खदान क्षेत्र की महिलाओं को विरोध का एक ऐसा रास्ता अपनाना पड़ा जो किसी भी संवेदनशील समाज के लिए चिंता का विषय है। एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) के कुसमुंडा क्षेत्र में भू-विस्थापित परिवारों की महिलाओं ने नौकरी की मांग को लेकर अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया। यह घटना न केवल प्रशासन और प्रबंधन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि दशकों से अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे लोगों में निराशा किस हद तक बढ़ चुकी है।

इस गंभीर और शर्मनाक घटना के बाद, ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति ने राष्ट्रीय और राज्य महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया है। समिति ने पत्र लिखकर आयोग से इस मामले में तत्काल संज्ञान लेने और पीड़ित महिलाओं एवं उनके परिवारों को न्याय दिलाने के लिए उचित कार्रवाई करने का आग्रह किया है।

‘संवेदनशील सरकार में यह शर्मनाक घटना’
समिति के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप ने इस घटना को बेहद चिंतनीय बताते हुए कहा, “यह अत्यंत शर्मनाक है कि एक संवेदनशील सरकार के कार्यकाल में महिलाओं को अपनी जायज मांगों के लिए अर्धनग्न होने पर मजबूर होना पड़ रहा है।” उन्होंने बताया कि इससे पहले भी जब इन महिलाओं ने शांतिपूर्ण आंदोलन किया था, तो उन्हें जेल भेज दिया गया था। अब विवश होकर उन्हें यह कदम उठाना पड़ा है।

क्या है पूरा मामला?
कोरबा जिले में औद्योगीकरण और कोयला खनन का इतिहास दशकों पुराना है। राष्ट्रहित के नाम पर एसईसीएल कुसमुंडा परियोजना के लिए वर्ष 1983 में जटराज, जरहाजेल, दुरपा, खम्हरिया, बरपाली जैसे कई गांवों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था। उस समय तत्कालीन जिला प्रशासन द्वारा पारित अवार्ड में स्पष्ट शर्तें थीं, जिनमें विस्थापित परिवार के एक सदस्य को रोजगार देना और 20 से 60 वर्षों में खनन कार्य पूरा होने पर जमीन मूल किसानों को वापस करना शामिल था।

लेकिन, भू-विस्थापितों का आरोप है कि एसईसीएल प्रबंधन ने इन शर्तों का कभी पालन नहीं किया। सबसे गंभीर आरोप यह है कि राजस्व विभाग और एसईसीएल के तत्कालीन अधिकारियों की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर धांधली हुई। आरोप है कि नौकरी के हकदार भू-विस्थापित परिवार के सदस्यों के बजाय, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बाहरी और अपात्र लोगों को रोजगार दे दिया गया।

न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें
इसका परिणाम यह हुआ कि जिन परिवारों ने देश के विकास के लिए अपनी जमीनें दीं, वे आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। उनके बच्चे रोजगार के लिए भटक रहे हैं। सालों तक आवेदन देने और अधिकारियों के चक्कर काटने के बाद जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो इन परिवारों ने आंदोलन का रास्ता अपनाया।

महिलाओं का अर्धनग्न प्रदर्शन इसी लंबे संघर्ष और अनसुनी आवाजों का एक दुखद पड़ाव है।
ऊर्जाधानी भू-विस्थापित किसान कल्याण समिति ने महिला आयोग का ध्यान इस ओर आकर्षित करते हुए मांग की है कि दशकों से प्रताड़ित हो रहे इन किसानों, महिलाओं और उनके परिवारों को न्याय दिलाने के लिए तत्काल हस्तक्षेप किया जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

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