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बुधवार, जुलाई 23, 2025
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कुसमुंडा परियोजना में जमीन और नौकरी घोटाले का आरोप, महिला के धरने के बाद जांच शुरू

कोरबा की महिला गोमती केंवट का तीन दिनी धरना रंग लाया, SECL ने की जांच की घोषणा

कोरबा (पब्लिक फोरम)। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एसईसीएल (SECL) की कुसमुंडा परियोजना से जुड़े भूमि और नौकरी घोटाले के आरोपों ने एक नया मोड़ ले लिया है, जब मनगाँव ग्राम की निवासी गोमती केंवट ने अपने हक की लड़ाई को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए महाप्रबंधक कार्यालय के गेट पर धरना दे दिया। सोमवार सुबह से शुरू हुआ यह धरना देर रात तक जारी रहा, जिसके बाद प्रबंधन ने गंभीरता दिखाते हुए जांच प्रक्रिया प्रारंभ कर दी।

महिला का आरोप : ससुर की ज़मीन पर किसी और को मिली नौकरी

गोमती केंवट ने अपनी लिखित शिकायत में बताया है कि ग्राम मनगाँव के खसरा नंबर 398/2, 398/3, 418/2, 432, 434/3, 437, 438/2, 441/2, 441/3 की जमीन उसके ससुर रमेश, पुत्र सलिकराम के नाम पर दर्ज थी, जिसे एसईसीएल की कुसमुंडा परियोजना के तहत अधिग्रहित किया गया था। नियमानुसार, भूविस्थापन के एवज में एक परिवार से एक सदस्य को नौकरी दी जाती है, किंतु गोमती का आरोप है कि उनके ससुर की भूमि पर कूट रचना कर किसी और — प्रहलाद, पुत्र रमेश — को नौकरी दे दी गई, जो वर्तमान में भटगांव क्षेत्र में पदस्थ है।

धरने के दबाव में आई SECL प्रबंधन, पत्र जारी कर दी जांच की सूचना

महिला के धरने को स्थानीय लोगों और कर्मचारियों का भी समर्थन मिला, जिससे मामला तूल पकड़ता गया। अंततः देर रात उसे सूचित किया गया कि उसकी शिकायत पर जांच प्रारंभ कर दी गई है। इस संबंध में कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय द्वारा पत्र क्रमांक 1530, दिनांक 21 जुलाई 2025 को स्टाफ अधिकारी (एच.आर.), भटगांव क्षेत्र को जारी किया गया।

पत्र में उल्लेख है कि यदि प्रहलाद पुत्र रमेश त्यागपत्र या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) की प्रक्रिया में हैं, तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, जांच पूरी होने तक संबंधित देय भुगतान पर रोक लगा दी गई है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि प्रहलाद के खिलाफ विभागीय जांच पहले से ही भटगांव क्षेत्र में लंबित है और कुसमुंडा क्षेत्र इस जांच में सहयोग करेगा। इसके लिए एक भू-राजस्व अधिकारी की नियुक्ति भी की जाएगी।

गोमती केंवट का यह विरोध न केवल उनके व्यक्तिगत अधिकार की लड़ाई है, बल्कि यह उस व्यापक सवाल को भी सामने लाता है, जिसमें परियोजनाओं के कारण विस्थापित होने वाले ग्रामीणों के हक़ को नजरअंदाज कर शक्तिशाली लोगों को अनुचित लाभ पहुंचाया जाता है।
उनका कहना है कि यदि उन्हें न्याय नहीं मिला, तो वे आगे भी आंदोलन जारी रखेंगी। “हमारी ज़मीन गई, लेकिन नौकरी किसी और को मिल गई — यह अन्याय है, मैं इसके खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ूंगी,” उन्होंने मीडिया से कहा।

निष्पक्ष जांच और पारदर्शिता की ज़रूरत

यह मामला न केवल गोमती केंवट के परिवार के हक से जुड़ा है, बल्कि यह एसईसीएल जैसी सार्वजनिक संस्था की जवाबदेही और प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है। यदि जांच निष्पक्ष और तेज़ी से होती है, तो यह न केवल पीड़ित को न्याय दिलाएगी, बल्कि ऐसे अन्य मामलों में भी एक मिसाल पेश करेगी।

गोमती केंवट का यह साहसी कदम यह साबित करता है कि सच की लड़ाई यदि दृढ़ता से लड़ी जाए, तो व्यवस्था को झुकना पड़ता है। यह मामला सिर्फ एक नौकरी का नहीं, बल्कि एक महिला की गरिमा, अधिकार और सामाजिक न्याय की पुकार है। अब देखना यह होगा कि एसईसीएल प्रबंधन इस जांच को कितनी गंभीरता और पारदर्शिता से आगे बढ़ाता है।

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