back to top
होमआसपास-प्रदेशरानी दुर्गावती की शौर्यगाथा से गूंजा कोरबा: बलिदान दिवस पर समाज ने...

रानी दुर्गावती की शौर्यगाथा से गूंजा कोरबा: बलिदान दिवस पर समाज ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि

कोरबा (पब्लिक फोरम)। मुगलों के सामने शीश न झुकाने वाली महान वीरांगना रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर कोरबा का रामपुर बरपाली क्षेत्र उनके शौर्य और स्वाभिमान की गाथाओं से जीवंत हो उठा। इस अवसर पर आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में समाज के हर वर्ग के लोगों ने एकत्रित होकर उस महान रानी को नमन किया, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। कार्यक्रम में भावनाओं, गर्व और प्रेरणा का एक अनूठा संगम देखने को मिला।

दीप प्रज्ज्वलन और पुष्पांजलि से दी गई श्रद्धांजलि

कार्यक्रम का शुभारंभ पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ किया गया। मुख्य अतिथि, छत्तीसगढ़ गोंडवाना गोंड महासभा की कोरबा जिला अध्यक्ष श्रीमती जे.बी. कारपे और विशिष्ट अतिथि, द हितवाद के मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव व आदर्श सर्व समाज कल्याण संगठन के जिला अध्यक्ष नरेंद्र देवांगन ने रानी दुर्गावती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित किया। इसके बाद उपस्थित सभी गणमान्य नागरिकों और स्थानीय लोगों ने पुष्प अर्पित कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी। माहौल रानी दुर्गावती के जयकारों और उनके बलिदान को याद करते नारों से गूंज रहा था।

इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि श्रीमती जे.बी. कारपे ने कहा, “रानी दुर्गावती केवल एक शासक नहीं, बल्कि अदम्य साहस, अटूट स्वाभिमान और महिला सशक्तिकरण की प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि विषम परिस्थितियों में भी अपने सिद्धांतों और अपनी धरती के सम्मान के लिए कैसे लड़ा जाता है। आज की युवा पीढ़ी, विशेषकर हमारी बेटियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।”

श्री नरेंद्र देवांगन ने अपने संबोधन में रानी दुर्गावती को एक राष्ट्रीय नायिका बताते हुए कहा, “रानी दुर्गावती का बलिदान किसी एक समाज या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। वह पूरे भारतवर्ष का गौरव हैं। उन्होंने अपनी वीरता से यह साबित कर दिया कि संख्याबल नहीं, बल्कि आत्मबल और राष्ट्रभक्ति ही सबसे बड़ी शक्ति होती है। उनका त्याग हमें सदैव एकजुट होकर राष्ट्रहित में कार्य करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।”

कौन थीं वीरांगना रानी दुर्गावती?

रानी दुर्गावती चंदेल वंश में जन्मी और गोंडवाना राज्य की रानी थीं। उन्होंने 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर की सेना के विरुद्ध अपने राज्य की स्वतंत्रता और अस्मिता की रक्षा के लिए एक ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अद्भुत रणकौशल का परिचय दिया और अंतिम सांस तक हार नहीं मानी। जब उन्हें लगा कि विजय संभव नहीं है, तो उन्होंने दुश्मन के हाथों अपमानित होने के बजाय स्वयं अपनी कटार से प्राणों का बलिदान कर दिया। उनका यह बलिदान आज भी इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

कार्यक्रम के आयोजकों ने बताया कि इस तरह के आयोजनों का मुख्य उद्देश्य महान विभूतियों की विरासत को जीवित रखना और उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाना है। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे और युवा यह जानें कि उनकी धरती पर कैसे-कैसे वीरों और वीरांगनाओं ने जन्म लिया है। रानी दुर्गावती का जीवन केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है जो हमें आत्म-सम्मान के साथ जीना सिखाती है।”

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों ने हिस्सा लिया और रानी दुर्गावती के जीवन के अनछुए पहलुओं को जाना। यह आयोजन केवल एक श्रद्धांजलि सभा न होकर, एक ऐसा अवसर बन गया जहां इतिहास और वर्तमान का मेल हुआ, और लोगों ने एक महान विरासत पर गर्व महसूस किया।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments