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कोरबा पंचायत चुनाव: विरोधियों की फर्जी आपत्ति विफल, अनुसुइया राठौर बनीं प्रबल दावेदार!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। कोरबा के पाली जनपद पंचायत क्षेत्र-5 में सदस्य पद के लिए महिला नेत्री अनुसुइया राठौर का नामांकन स्वीकृत होने के बाद विरोधी प्रत्याशी बौखलाए हुए हैं। उनके खिलाफ फर्जी नामों से की गई आपत्तियों को निर्वाचन अधिकारी ने खारिज कर दिया, जिसके बाद राठौर अब दमदार तरीके से चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं। एक संघर्षशील नेता के रूप में उनकी पहचान और जनसमर्थन ने विपक्षी दावेदारों की चिंता बढ़ा दी है। 

जमीन से जुड़ी नेत्री: संघर्ष और सफलता की कहानी 

अनुसुइया राठौर कोरबा की उन गिनी-चुनी महिला नेताओं में हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत संघर्षों और सामाजिक आंदोलनों के बीच अपनी पहचान बनाई है। भूविस्थापितों के अधिकारों की लड़ाई से लेकर ग्रामीण विकास तक, उन्होंने हर मोर्चे पर अपने “जुझारू स्वभाव” का परिचय दिया है। परिवारिक मुश्किलों के बावजूद उन्होंने न केवल अपने क्षेत्र में स्वच्छ छवि बनाई, बल्कि एसईसीएल जैसे बड़े प्रबंधन के खिलाफ भी आवाज उठाने का साहस दिखाया। 

क्षेत्र-5 के चुनावी रण में अनुसुइया के प्रबल दावेदारी से घबराए विरोधियों ने उनके नामांकन पर फर्जी आपत्तियां दर्ज कराईं। मगर, निर्वाचन अधिकारी ने इन्हें “निराधार” बताते हुए खारिज कर दिया। स्थानीय लोगों का कहना है, “यह साजिश थी, लेकिन अनुसुइया जी की ईमानदारी के आगे यह टिक नहीं पाई।”

मितानिन से नेत्री तक: सेवा और संघर्ष का सफर

श्रीमती राठौर वर्तमान में पाली ब्लॉक की मितानिन संघ की अध्यक्ष हैं और ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवाएं देने के साथ-साथ भूविस्थापितों को रोजगार दिलाने के लिए संघर्षरत हैं। एसईसीएल प्रबंधन द्वारा उन पर 3 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाए जाने और आंदोलन करने के लिए केस दर्ज होने के बावजूद, उन्होंने गरीबों की लड़ाई नहीं छोड़ी। एक समर्थक बताते हैं, “उन्होंने हमें सिखाया कि अधिकारों के लिए लड़ना कैसे होता है।”

अनुसुइया ने इस चुनाव में “समावेशी विकास” को अपना मुख्य एजेंडा बनाया है। गांव की बदहाल सड़कों, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने का वादा करते हुए वे कहती हैं, “मैं केवल नेता नहीं, आपकी आवाज बनकर काम करूंगी।” उनकी स्पष्ट नीतियों और पारदर्शिता के कारण महिलाओं और युवाओं का एक बड़ा वर्ग उनके समर्थन में खड़ा है। 

अनुसुइया का जमीनी जुड़ाव और सामाजिक कार्यों में सक्रियता उन्हें दूसरे प्रत्याशियों से अलग करती है। विरोधी दलों के पास न तो उनके जैसा जनाधार है और न ही ठोस विकास योजनाएं। एक पत्रकार बताते हैं, “फर्जी आपत्तियां दर्ज कराना चुनावी हार का संकेत है।”

अनुसुइया राठौर की यह चुनावी यात्रा सिर्फ एक पद की दौड़ नहीं, बल्कि उस संघर्ष की मिसाल है, जो सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रेरणा देती है। कोरबा की जनता अब देखना चाहती है कि क्या एक जमीनी नेता व्यवस्था बदल सकती है। 

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