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शनिवार, दिसम्बर 13, 2025
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कोरबा: कॉरपोरेटी अंधेरे में सिसकता बुढ़ापा: वेदांता प्रबंधन की ‘संवेदनहीनता’ से तंग 82 वर्षीय बुजुर्ग दंपत्ति ने प्रशासन से मांगी इच्छामृत्यु

संविधान के अनुच्छेद 21 की दुहाई: बिजली-पानी काटा, शौचालय तोड़ा; 75 वर्षीय वृद्धा ने पूछा- कहां गई नारी की गरिमा?

छत्तीसगढ़/कोरबा (पब्लिक फोरम)। विकास और औद्योगिकीकरण की चमक-दमक के बीच अक्सर मानवीय संवेदनाएं कैसे दम तोड़ देती हैं, इसका एक जीता-जागता और हृदयविदारक उदाहरण ऊर्जाधानी कोरबा में देखने को मिला है। बालको (वेदांता) नगर के क्वार्टर में रहने वाले एक 82 वर्षीय पूर्व गोल्ड मेडलिस्ट कर्मचारी और उनकी 75 वर्षीय पत्नी आज अपनी ही संस्था के खिलाफ जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। सोमवार को आयोजित कलेक्टर जनदर्शन में जब यह बुजुर्ग दंपत्ति अपनी व्यथा लेकर पहुंचा, तो वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम हो गईं।

मानवाधिकारों का हनन: न बिजली, न पानी, न सम्मान
श्रीमती नीलम शर्मा (75 वर्ष) ने जिला कलेक्टर को सौंपे गए अपने ज्ञापन में बालको-वेदांता प्रबंधन पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने बताया कि प्रबंधन ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए उनके आवास (क्वार्टर नं. 252/2/B) की बिजली और पानी की आपूर्ति काट दी है। हद तो तब हो गई जब बुजुर्गों के उपयोग के लिए बने शौचालय जैसी अनिवार्य सुविधा को भी कथित तौर पर ध्वस्त कर दिया गया।

श्रीमती शर्मा ने भावुक होते हुए कहा, “प्रधानमंत्री जी ‘स्वच्छ भारत’ और ‘नारी गरिमा’ की बात करते हैं, लेकिन बालको के वेदांता प्रबंधन ने मुझे 75 साल की उम्र में खुले में या अत्यंत कष्टप्रद स्थिति में नित्यकर्म के लिए मजबूर कर दिया है। क्या एक बुजुर्ग महिला के सम्मान की कोई कीमत नहीं है?”

30 साल पुराना दर्द और गोल्ड मेडलिस्ट की दुर्दशा
यह मामला केवल आवास खाली कराने का नहीं, बल्कि तीन दशकों से चले आ रहे शोषण का भी है। पीड़ित श्री बी.पी. शर्मा, जो कोटा यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं, बालको के एक निष्ठावान अधिकारी थे। आरोप है कि 30 साल पहले एक निजी डॉक्टर की झूठी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उन्हें षड्यंत्रपूर्वक समय से पहले सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

दंपत्ति का कहना है कि वे पिछले 30 वर्षों से अपने पी.एफ., ग्रेच्युटी (Gratuity) और चिकित्सा सुविधाओं के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। हक देने के बजाय, प्रबंधन अब बाहुबल का प्रयोग कर उन्हें बेघर करने पर उतारू है।

भय के साये में जीवन: ’50-60 सुरक्षाकर्मी और दो लाचार बुजुर्ग’
बुजुर्ग दंपत्ति ने प्रशासन को बताया कि बालको प्रबंधन द्वारा भेजे गए सुरक्षाकर्मी 50-60 की संख्या में आते हैं और भय का वातावरण (Terror) पैदा करते हैं। इस मानसिक प्रताड़ना के कारण 82 वर्षीय श्री शर्मा गहरे अवसाद (Depression) में चले गए हैं और शारीरिक रूप से अक्षम हो चुके हैं। इस उम्र में जहां उन्हें दवा और सेवा की जरूरत है, वहां उन्हें अंधेरे और प्यास से जूझना पड़ रहा है।

प्रशासन को अल्टीमेटम: ‘न्याय दें या मरने दें’
अपने ज्ञापन के अंत में इस दंपत्ति ने जो चेतावनी दी है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए चिंताजनक है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि प्रशासन ने तत्काल हस्तक्षेप कर उनकी बिजली-पानी बहाल नहीं कराई और दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही नहीं की, तो वे आत्महत्या करने के लिए विवश होंगे। उन्होंने अपनी संभावित मृत्यु के लिए बालको प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है।

संविधान क्या कहता है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 देश के प्रत्येक नागरिक को ‘गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार’ देता है। किसी भी विवाद के चलते किसी नागरिक को पानी, बिजली और स्वच्छता जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित करना मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।

अपील और सवाल
अब देखना यह है कि कोरबा जिला प्रशासन इस संवेदनशील मामले में क्या रुख अपनाता है। क्या एक बुजुर्ग दंपत्ति को उनके जीवन की सांझ में सम्मान मिलेगा, या वे कॉर्पोरेट हटधर्मिता की बलि चढ़ जाएंगे? यह प्रश्न न केवल प्रशासन के लिए, बल्कि हमारी सामाजिक संवेदनाओं के लिए भी एक परीक्षा है।
“यह खबर हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में एक संवेदनशील समाज का हिस्सा हैं? एक 82 वर्षीय विद्वान और उनकी पत्नी का इस तरह गिड़गिड़ाना व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग है। आशा है कि प्रशासन नियमों कानूनों की लकीर पीटने के बजाय ‘मानवीय आधार’ पर तत्काल निर्णय लेगा।”

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