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सोमवार, दिसम्बर 23, 2024
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कोरबा: फैक्ट्री हादसे में हाथ गंवाने वाले नाबालिग पहाड़ी कोरवा आदिवासी को मिला न्याय: फैक्ट्री सील करने के आदेश!

“मानवता की मार्मिक तस्वीर: एक नाबालिग आदिवासी श्रमिक की दर्दनाक कहानी”

कोरबा (पब्लिक फोरम)। ग्राम गोढ़ी के पास स्थित वेस्टर्न कोक प्रोडक्ट्स (कार्बन फैक्ट्री) में काम करने के दौरान एक दिल दहला देने वाला हादसा हुआ। ग्राम कदमझरिया का रहने वाला 16 वर्षीय पहाड़ी कोरवा नाबालिग, अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए इस खतरनाक फैक्ट्री में काम कर रहा था। दुर्भाग्यवश, 17 जुलाई 2024 को हुए एक हादसे में उसने अपना दाहिना हाथ खो दिया। आज, उसने कोरबा के कलेक्टर अजीत वसंत से मुलाकात कर अपने लिए न्याय की गुहार लगाई, जिसमें संबंधित फैक्ट्री के खिलाफ सख्त कार्यवाही और आजीविका के लिए रोजगार की मांग की।

जांच और कार्यवाही
कलेक्टर अजीत वसंत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए फैक्ट्री को सील करने और पीड़ित को अधिकतम मुआवजा प्रदान करने के निर्देश दिए। सहायक श्रम आयुक्त को इस मामले में तुरंत कार्यवाही करने का आदेश भी दिया गया। इसके साथ ही, पुलिस में फैक्ट्री संचालकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा रही है, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों से बचा जा सके।

हादसे का विवरण
हादसे के दिन नाबालिग फैक्ट्री में कन्वेयर बेल्ट के पास काम कर रहा था, जब अचानक बेल्ट की चपेट में आ गया। कार्बन पेस्ट को ले जाने के लिए बने इस कन्वेयर बेल्ट के चारों ओर सुरक्षा के लिए कोई फेंसिंग नहीं थी, जो फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही को उजागर करता है। इस दुर्घटना में नाबालिग का दाहिना हाथ गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे कोहनी से दो इंच नीचे तक काटना पड़ा।

सुरक्षा मानकों की अनदेखी
यह हादसा साफ तौर पर सुरक्षा मानकों की भारी अनदेखी का परिणाम था। कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 40 (2) के तहत वेस्टर्न कोक प्रोडक्ट्स को तत्काल प्रभाव से बंद करने के आदेश दिए गए हैं। साथ ही, फैक्ट्री में नाबालिग श्रमिकों से काम करवाना बाल एवं किशोर अधिनियम, 1986 के तहत दंडनीय अपराध है, जिसे देखते हुए थाना रामपुर में एफआईआर के लिए पत्र भी प्रेषित किया गया।
अधिनियमों का उल्लंघन

जांच में यह भी पाया गया कि फैक्ट्री प्रबंधन ने संविदा श्रमिक अधिनियम, 1970 और न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के तहत कई नियमों का उल्लंघन किया। श्रमिकों को न्यूनतम वेतन नहीं दिया गया, मजदूरी भुगतान पंजी और अन्य आवश्यक दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं किए गए। फैक्ट्री में काम कर रहे मजदूरों के अधिकारों की खुली अनदेखी की गई, जो श्रमिकों के साथ अन्याय को दर्शाता है।

इस घटना से कई महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं। एक ओर जहां नाबालिग पहाड़ी कोरवा को नियोजित कर कानून का उल्लंघन किया गया, वहीं दूसरी ओर फैक्ट्री में बुनियादी सुरक्षा मानकों की भारी कमी ने एक निर्दोष बच्चे की जिंदगी को बर्बाद कर दिया। इस मामले में फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही और प्रशासनिक चूक दोनों ही जिम्मेदार हैं। एक जिम्मेदार समाज के रूप में, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम श्रमिकों के अधिकारों और सुरक्षा की उचित निगरानी करें।

इस हादसे ने न केवल एक परिवार को आर्थिक और मानसिक पीड़ा दी है, बल्कि यह हमारे सिस्टम की खामियों को भी उजागर करता है। एक नाबालिग श्रमिक से खतरनाक काम करवाना बाल अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है, और प्रशासन को इस तरह की लापरवाहियों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।
यह घटना सिर्फ एक फैक्ट्री में हुए हादसे की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज और उद्योग जगत में व्याप्त असंवेदनशीलता की ओर इशारा करती है। पीड़ित को न्याय दिलाने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। श्रमिकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों का संरक्षण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि वे सुरक्षित माहौल में काम कर सकें।

जांच में यह भी पाया गया कि फैक्ट्री प्रबंधन ने संविदा श्रमिक अधिनियम, 1970 और न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 के तहत कई नियमों का उल्लंघन किया। श्रमिकों को न्यूनतम वेतन नहीं दिया गया, मजदूरी भुगतान पंजी और अन्य आवश्यक दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं किए गए। फैक्ट्री में काम कर रहे मजदूरों के अधिकारों की खुली अनदेखी की गई, जो श्रमिकों के साथ अन्याय को दर्शाता है।

इस घटना से कई महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं। एक ओर जहां नाबालिग पहाड़ी कोरवा को नियोजित कर कानून का उल्लंघन किया गया, वहीं दूसरी ओर फैक्ट्री में बुनियादी सुरक्षा मानकों की भारी कमी ने एक निर्दोष बच्चे की जिंदगी को बर्बाद कर दिया। इस मामले में फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही और प्रशासनिक चूक दोनों ही जिम्मेदार हैं। एक जिम्मेदार समाज के रूप में, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम श्रमिकों के अधिकारों और सुरक्षा की उचित निगरानी करें।

इस हादसे ने न केवल एक परिवार को आर्थिक और मानसिक पीड़ा दी है, बल्कि यह हमारे सिस्टम की खामियों को भी उजागर करता है। एक नाबालिग श्रमिक से खतरनाक काम करवाना बाल अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है, और प्रशासन को इस तरह की लापरवाहियों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।
यह घटना सिर्फ एक फैक्ट्री में हुए हादसे की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज और उद्योग जगत में व्याप्त असंवेदनशीलता की ओर इशारा करती है। पीड़ित को न्याय दिलाने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। श्रमिकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों का संरक्षण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि वे सुरक्षित माहौल में काम कर सकें।

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