कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के दुर्ग में दो ईसाई ननों और एक आदिवासी युवक की गिरफ्तारी ने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है। इस घटना को लेकर कोरबा में वामपंथी दलों ने एकजुट होकर सरकार और संघ परिवार के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा खोल दिया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और भाकपा (माले) लिबरेशन ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस कार्रवाई को अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक सुनियोजित और नफरती अभियान का हिस्सा बताया है।
क्या है पूरा मामला?
वामपंथी दलों के नेताओं ने अपने बयान में बताया कि यह घटना दुर्ग सेंट्रल जेल से जुड़ी है, जहाँ दो वरिष्ठ कैथोलिक ननों और एक आदिवासी युवक, सुखमन को धर्मांतरण और मानव तस्करी के झूठे आरोपों में बंद किया गया है। आरोप है कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने हंगामा करते हुए न केवल आदिवासी युवतियों के साथ मारपीट की, बल्कि दोनों ननों से भी बदसलूकी की। दलों का दावा है कि पुलिस ने भगवा संगठन के दबाव में आकर यह गिरफ्तारी की है, जबकि उनके पास इन आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।
सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप
माकपा के जिला सचिव प्रशांत झा, भाकपा के जिला सचिव पवन कुमार वर्मा, और भाकपा (माले) लिबरेशन के जिला सचिव बी.एल. नेताम ने अपने संयुक्त वक्तव्य में बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा:-
संविधान की अवहेलना: “भाजपा शासित राज्यों में बजरंग दल जैसे संगठनों को खुली छूट दे दी गई है। पुलिस उनके इशारों पर काम कर रही है। जब सरकार संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर यकीन ही नहीं करती, तो वह संविधान को मानने का नाटक क्यों करती है?”
मुख्यमंत्री का बयान: दलों ने मुख्यमंत्री के बयान की भी आलोचना की और कहा कि वे एक संवैधानिक पद पर होते हुए भी एक संघ प्रचारक की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
न्याय में बाधा: यह भी आरोप लगाया गया है कि अदालत में भी इन बेगुनाह लोगों को जमानत नहीं मिल पा रही है, जो दर्शाता है कि न्याय प्रक्रिया पर भी दबाव है।

एक मानवीय त्रासदी: डरी हुई युवतियां और एक बेकसूर युवक
इस पूरे घटनाक्रम का एक मानवीय पहलू भी है, जो दिल को झकझोर देता है। बयान के अनुसार, नारायणपुर जिले के ओरछा की तीन आदिवासी युवतियां अपनी मर्जी से और अपने परिवार की सहमति से आगरा के एक ईसाई मिशनरी में घरेलू काम करने जा रही थीं। आदिवासी युवक सुखमन केवल उनकी मदद के लिए उन्हें ट्रेन में बैठाने आया था।
वामपंथी दलों ने दावा किया है कि अब उन युवतियों पर मारपीट कर ननों के खिलाफ झूठी गवाही देने का दबाव बनाया जा रहा है। सुखमन का गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने उन युवतियों की मदद की। यह कहानी सिर्फ एक राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की नहीं, बल्कि उन आम लोगों की है, जो इस नफरत की राजनीति का शिकार हो रहे हैं।
देशव्यापी पैटर्न और भविष्य की रणनीति
वामपंथी दलों का मानना है कि यह घटना कोई अकेली घटना नहीं है। उनके अनुसार, “पूरे देश में RSS के नेतृत्व में रोजी-रोटी जैसे ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं और आदिवासियों पर दमन किया जा रहा है।” उन्होंने कहा कि जहाँ देश के अन्य हिस्सों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, वहीं छत्तीसगढ़ में ईसाई समुदाय निशाने पर है।
इस दमन और नफरत की राजनीति के खिलाफ वामपंथी दलों ने एक संयुक्त प्रतिरोधी अभियान छेड़ने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि वे प्रदेश में बढ़ती नफरत और विभाजनकारी संस्कृति के खिलाफ जनता को जागरूक करेंगे और अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का पुरजोर विरोध करेंगे।
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