– छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन के लिए अनिवार्य की गई किसान आईडी पंजीयन प्रक्रिया में गंभीर तकनीकी खामियाँ।
– एग्रीस्टेक पोर्टल पर सैकड़ों किसानों के नाम और जमीन का रकबा गायब, भविष्य को लेकर चिंतित किसान।
– एक से अधिक जिलों में जमीन वाले किसान असमंजस में, सरकार की नीति पर उठे सवाल।
– किसानों ने की हेल्पलाइन डेस्क और विशेष शिविर लगाने की माँग, समाधान न होने पर आंदोलन की आशंका।
रायपुर/कोरबा (पब्लिक फोरम)। एक तरफ जहाँ मानसून की पहली बूँदें खेतों में उम्मीद की नई फसल बो रही हैं, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ सरकार की एक नई नीति ने हजारों किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। खरीफ सीजन 2025-26 में समर्थन मूल्य पर धान की बिक्री को पारदर्शी बनाने के लिए लागू की गई ‘एग्रीस्टेक पोर्टल’ पर किसान आईडी पंजीयन की प्रक्रिया अन्नदाताओं के लिए राहत के बजाय आफत बन गई है। तकनीकी खामियों के चलते सैकड़ों किसान इस पोर्टल पर अपना पंजीकरण नहीं करा पा रहे हैं, जिससे उनके सामने अपनी मेहनत की उपज को बेचने का संकट खड़ा हो गया है।

तकनीक की उलझन में फँसा किसान
यह कहानी है उन अनगिनत किसानों की, जो हर दिन अपनी जमीन से सोना उगाने का सपना देखते हैं, लेकिन आज सरकारी दफ्तरों और कंप्यूटर सेंटरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं। सरकार ने पारदर्शिता का हवाला देकर किसान आईडी को अनिवार्य तो कर दिया, लेकिन इस प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाना भूल गई।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि कई किसानों का भूमि रिकॉर्ड, जो सरकार के ही ‘भुइयाँ’ पोर्टल पर स्पष्ट रूप से दर्ज है, वह ‘एग्रीस्टेक’ पोर्टल पर दिखाई ही नहीं दे रहा है। कहीं किसी किसान का नाम गायब है, तो कहीं उसकी पूरी जमीन का रकबा शून्य दिख रहा है। यह देखकर किसानों के पैरों तले जमीन खिसक गई है। उन्हें डर है कि अगर उनका पंजीकरण समय पर नहीं हुआ, तो वे समर्थन मूल्य पर धान बेचने के अपने अधिकार से वंचित हो जाएँगे। यह केवल एक तकनीकी गड़बड़ी नहीं है, बल्कि यह उन किसानों की साल भर की मेहनत और उम्मीदों पर पानी फेरने जैसा है।
एक किसान, कई जमीनें और अनगिनत सवाल
किसानों की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती। एक और गंभीर मुद्दा उन किसानों से जुड़ा है, जिनकी जमीनें एक से अधिक तहसीलों या जिलों में हैं। वे इस दुविधा में हैं कि क्या एक आधार कार्ड से बनी किसान आईडी से वे अपनी अलग-अलग जगहों की उपज बेच पाएँगे? इस पर सरकार की ओर से कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं है।
एक किसान ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा, “मेरी जमीन दो जिलों में है। मैं सालों से दोनों जगहों पर खेती करता आया हूँ। अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या एक ही आईडी से मेरा काम चल जाएगा या मुझे अलग-अलग पंजीयन कराना होगा? अगर सरकार एक जगह की आईडी से दूसरी जगह की उपज को नहीं खरीदेगी, तो मैं तो बर्बाद हो जाऊँगा।” यह सवाल केवल एक किसान का नहीं, बल्कि उन हजारों किसानों का है जो इस नीतिगत अस्पष्टता के शिकार हो रहे हैं। यह स्थिति पारदर्शिता लाने के बजाय किसानों को और अधिक उलझा रही है।
क्या कहती है किसानों की माँग?
परेशान और हताश किसानों ने अब सरकार से इस समस्या का तत्काल समाधान करने की गुहार लगाई है। उनकी माँगें बहुत सीधी और स्पष्ट हैं:
– पोर्टल को सुधारो: किसान आईडी पोर्टल को ‘भुइयाँ’ रिकॉर्ड के साथ स्वचालित रूप से जोड़ा जाए, ताकि जमीन का विवरण अपने आप दर्ज हो जाए।
– नियम स्पष्ट करो: जिन किसानों की जमीनें कई स्थानों पर हैं, उनके लिए आईडी के उपयोग को लेकर स्पष्ट नियम बनाए जाएँ और उसका विस्तार किया जाए।
– हमारी मदद करो: इन तकनीकी खामियों को दूर करने के लिए हर जिला स्तर पर हेल्पलाइन डेस्क और विशेष शिविर लगाए जाएँ, ताकि किसान अपनी समस्याओं का समाधान पा सकें।
विशेषज्ञों का भी मानना है कि अगर इस एकीकृत किसान आईडी योजना को सही ढंग से लागू नहीं किया गया, तो यह किसानों के लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाएगी। पारदर्शिता के नाम पर किसानों को तकनीकी जाल में फँसाना किसी भी सूरत में उचित नहीं है।
सरकार की चुप्पी और किसानों का भविष्य
अब सभी की निगाहें छत्तीसगढ़ सरकार और संबंधित विभागों पर टिकी हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वे इन समस्याओं को कितनी गंभीरता से लेते हैं। क्या उन किसानों की चिंता दूर की जाएगी जिनके नाम और जमीन पोर्टल से गायब हैं? क्या उन किसानों को कोई स्पष्ट मार्गदर्शन मिलेगा जिनकी जमीनें अलग-अलग जगहों पर हैं?
यदि सरकार इन सवालों का जवाब देने में विफल रहती है, तो इस खरीफ सीजन में एक बड़ी संख्या में किसान समर्थन मूल्य योजना का लाभ उठाने से चूक सकते हैं। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होगी, बल्कि सरकार के प्रति असंतोष और विरोध की एक बड़ी लहर भी उठ सकती है, जो आने वाले समय में एक बड़े किसान आंदोलन का रूप ले सकती है।
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