शनिवार, नवम्बर 23, 2024
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कटघोरा: नेशनल हाईवे निर्माण में ग्रामीणों के मुआवजे की लड़ाई, न्याय की उम्मीद, संघर्ष जारी!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) द्वारा पथरापाली से कटघोरा के बीच नेशनल हाईवे क्रमांक-130 का निर्माण पिछले छह वर्षों से अधर में लटका हुआ है। जमीन अधिग्रहण के बाद भी जुराली और आसपास के ग्रामीणों को अब तक मुआवजा नहीं दिया गया है, जिससे किसानों में आक्रोश और प्रशासन के प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा है। 
क्या है मामला?
करीब 2.6 किलोमीटर सड़क निर्माण के लिए जुराली गांव और आसपास के इलाकों की जमीन अधिग्रहित की गई। रविवार को पुलिस की मौजूदगी में एनएचएआई और प्रशासनिक अधिकारियों ने सीमांकन की प्रक्रिया पूरी की। जमीन पर मार्किंग के साथ बोर्ड लगाए गए और निर्माण कार्य जल्द पूरा होने का दावा किया गया। 
हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि मुआवजे के बिना उनकी जमीनों पर जबरन निर्माण किया जा रहा है। किसानों ने साफ किया कि अगर समय पर उचित मुआवजा नहीं मिला, तो वे विरोध करने पर मजबूर होंगे। 

ग्रामीणों की नाराजगी
  गांव के शत्रुघ्न लाल पटेल, चंद्रभान सिंह, और इरशाद काजी जैसे किसानों ने प्रशासन पर मुआवजा देने में लापरवाही का आरोप लगाया। 
– शत्रुघ्न लाल पटेल ने बताया कि पिछले छह वर्षों से कोरबा, बिलासपुर, और रायपुर के चक्कर काटने के बावजूद उन्हें राहत नहीं मिली। 
– चंद्रभान सिंह ने कहा कि उनके नाम को प्रकाशित सूची से हटा दिया गया, और उन्हें कलेक्टर, कमिश्नर, और यहां तक कि हाईकोर्ट तक जाने को कहा गया। 
– इरशाद काजी ने दावा किया कि किसानों ने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से भी मुलाकात की, लेकिन समस्या अब तक हल नहीं हुई। 
ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ मामलों में फर्जी मुआवजा वितरण हुआ है, जबकि असली किसानों को उनकी जमीन का हक नहीं मिला। 

प्रशासन और एनएचएआई का पक्ष
एनएचएआई का कहना है कि मुआवजा अदालत के फैसले के आधार पर दिया जाएगा। क्षेत्रीय अधिकारी ने किसानों को आश्वासन दिया है कि प्रक्रिया के तहत उचित मुआवजा दिया जाएगा। 
मुद्दे की गहराई
करीब सौ से अधिक किसानों की जमीन अधिग्रहित होनी है। कुछ किसान मामले को न्यायालय तक ले गए हैं। 
ग्रामीणों का कहना है कि वे अपनी जमीन देने को तैयार हैं, बशर्ते उन्हें गाइडलाइन के अनुसार मुआवजा मिले। 

संघर्ष के आगे क्या?
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही उनकी मांगों को नहीं माना गया, तो वे सड़क निर्माण का विरोध करेंगे। किसानों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी जमीन पर सड़क बनने देंगे, लेकिन मुआवजा न मिलने पर सड़कों को उखाड़ फेंकने तक की नौबत आ सकती है। 
यह मामला प्रशासन और किसानों के बीच संवादहीनता और विश्वास की कमी को दर्शाता है। जमीन अधिग्रहण के साथ मुआवजे का समय पर भुगतान न केवल किसानों का अधिकार है, बल्कि प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी भी। यदि इस मुद्दे का समाधान जल्द नहीं निकाला गया, तो यह न केवल परियोजना में देरी करेगा, बल्कि ग्रामीणों के जीवन में भी तनाव और आर्थिक असुरक्षा बढ़ाएगा। 
यह देखना अहम होगा कि प्रशासन और एनएचएआई इस विवाद को कैसे हल करते हैं और किसानों को न्याय दिलाने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।

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