कोरबा (पब्लिक फोरम)। आज के तेजी से बदलते दौर में, जहां सूचना का प्रवाह पलक झपकते ही हो जाता है, पत्रकारिता अपनी सबसे बड़ी चुनौती, विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक आए इस अभूतपूर्व बदलाव ने पत्रकारिता के स्वरूप को बदल दिया है, और इस नए स्वरूप में समाज के बीच अपनी प्रतिष्ठा कायम रखना पत्रकारों के लिए एक कठिन परीक्षा बन गया है। यह विचार वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दिवाकर मुक्तिबोध ने प्रेस क्लब तिलक भवन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जयंती के अवसर पर आयोजित एक व्याख्यान कार्यक्रम में व्यक्त किए।
ईमानदारी ही पत्रकारिता की असली ताकत
वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध ने पत्रकारिता के सामने खड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पत्रकारिता का रास्ता भटक सकता है, लेकिन यह दिशाहीन नहीं हो सकती। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज भी करोड़ों लोगों की सुबह अखबार के साथ होती है, जो प्रिंट मीडिया की प्रासंगिकता को दर्शाता है। उनका मानना है कि एक पत्रकार की निष्पक्षता और समाज में उसकी प्रतिष्ठा ही लोगों का उस पर विश्वास बढ़ाती है। श्री मुक्तिबोध, जो स्वयं यशस्वी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध के पुत्र हैं और जिन्होंने पत्रकारिता में एक लंबा और सम्मानित समय बिताया है, ने कहा, “सरकार मीडिया से तभी डरती है, जब पत्रकारिता ईमानदारी से की जाए।” उन्होंने स्वीकार किया कि पत्रकारिता में संकट हमेशा से रहा है और आगे भी रहेगा, लेकिन पत्रकारों को इन्हीं परिस्थितियों के बीच रहकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा।

पत्रकार सुरक्षा कानून और जमीनी हकीकत
कार्यक्रम में बोलते हुए रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में पत्रकार सुरक्षा कानून 2023 से लागू तो है, लेकिन आज भी कई पत्रकार इसके प्रावधानों से अनभिज्ञ हैं।उन्होंने पत्रकारों की सुरक्षा पर चिंता जताते हुए कहा, “आज के दौर में पत्रकारिता करना कठिन हो गया है। चाहे शहर हो या गांव, पत्रकार कहीं भी सुरक्षित नहीं है।” यह कानून, जो महाराष्ट्र के बाद छत्तीसगढ़ को लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बनाता है, पत्रकारों को धमकी, प्रताड़ना और हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया है।
प्रिंट मीडिया की आत्मा और डिजिटल मीडिया का खतरा
वरिष्ठ पत्रकार विश्वेष ठाकरे ने प्रिंट मीडिया को “पत्रकारिता की गंगोत्री” बताते हुए उसके मर्म को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “जिस तरह मर्म कभी खत्म नहीं होता, उसी तरह न तो पत्रकारिता और न ही इसकी ताकत कभी कम होगी। प्रिंट मीडिया का प्रसार कम हो सकता है, लेकिन यह खत्म नहीं हो सकता।” टेलीविजन पत्रकारिता पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि “प्रिंट में दुख बांटा जाता है और टीवी में दुख बेचा जाता है,” जहाँ लोग अक्सर ग्लैमर के लिए आते हैं।
वेब मीडिया को लेकर उन्होंने एक गंभीर चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि वेब मीडिया खबरों का “विस्फोट” करता है, जहाँ एक ही चीज को बार-बार दिखाकर एक विशेष प्रकार का एल्गोरिथ्म बनाया जाता है, जो एक बहुत बड़ा खतरा है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस पर भविष्य में कानून बनाने की तैयारी है।
यह कार्यक्रम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित किया गया था, जिन्होंने स्वयं ‘केसरी’ और ‘मराठा दर्पण’ जैसे अखबारों के माध्यम से पत्रकारिता को स्वतंत्रता संग्राम का एक शक्तिशाली हथियार बनाया था।कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। प्रेस क्लब संरक्षक मनोज शर्मा ने प्रस्तावना और अध्यक्ष राजेंद्र जायसवाल ने स्वागत उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन सचिव नागेंद्र श्रीवास ने किया और आभार प्रदर्शन राजकुमार शाह ने किया।
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