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शुक्रवार, दिसम्बर 12, 2025
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50,000 रोजगार का दावा या कागजी दिखावा? वेदांता पर पूर्व कर्मचारी ने लगाए गंभीर आरोप, कलेक्टर से मांगी जांच

बी.एल. नेताम ने जनदर्शन में रखी शिकायत: आरोप – स्थानीय युवाओं की उपेक्षा, सेवानिवृत्ति नियमों की अवहेलना और विस्थापितों को रोजगार न देने की नीति

कोरबा (पब्लिक फोरम)। कोरबा जिले की जीवनरेखा कही जाने वाली औद्योगिक इकाई भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको-वेदांता) के रोजगार सृजन के दावों पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। कंपनी के एक पूर्व कर्मचारी और सामाजिक कार्यकर्ता बी.एल. नेताम ने जिला कलेक्टर से औपचारिक शिकायत दर्ज कराते हुए बालको प्रबंधन पर स्थानीय हितों की अनदेखी, भ्रामक आंकड़े पेश करने और शासनादेशों का उल्लंघन करने के गंभीर आरोप लगाए हैं।

क्या है मामला?
बालको प्रबंधन ने ६ जून, २०२५ को दावा किया था कि कंपनी ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से ५०,००० लोगों को रोजगार प्रदान किया है। इसी दावे की ‘खोखली सच्चाई’ को उजागर करने के लिए बालको के पूर्व कर्मचारी बी.एल. नेताम (पद संख्या ०७५२९) ने कोरबा कलेक्टर के जनदर्शन कार्यक्रम में एक विस्तृत शिकायत पत्र प्रस्तुत किया है। नेताम ने इस दावे को “पूर्णतः निराधार, भ्रामक और कागजी” बताते हुए एक स्वतंत्र और पारदर्शी जांच की मांग की है।

शिकायतकर्ता के प्रमुख आरोप:
१. रोजगार के आंकड़ों में फर्जीवाड़ा: शिकायतकर्ता का तर्क है कि यदि वास्तव में ५०,००० रोजगार सृजित हुए होते, तो कोरबा की स्थानीय अर्थव्यवस्था में जबरदस्त उछाल आया होता। उनका कहना है कि न स्थानीय श्रम विभाग के पास इसका सत्यापित रिकॉर्ड है और न ही धरातल पर स्थानीय युवाओं को इसका लाभ मिला है।

२. स्थानीयता की अनदेखी: सबसे गंभीर आरोप यह है कि कंपनी ने ‘सन ऑफ सॉइल’ (स्थानीय निवासी) नीति की धज्जियां उड़ाते हुए नियमित पदों पर स्थानीय भर्ती लगभग बंद कर दी है। जरूरी काम के लिए भी बाहरी राज्यों से संविदा श्रमिक मंगाए जा रहे हैं, जबकि जिले का युवा बेरोजगार घूम रहा है।

३. सेवानिवृत्ति आयु नियमों का उल्लंघन: छत्तीसगढ़ शासन ने वर्ष २०१९ में ही कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु ६२ वर्ष कर दी थी। आरोप है कि राज्य के संसाधनों का दोहन करने के बावजूद बालको प्रबंधन ने अपने कर्मचारियों के लिए इस नियम को लागू नहीं किया है, जिससे कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है।

४. अनुकंपा नियुक्ति पर रोक: कर्मचारी संगठनों को दरकिनार कर कंपनी ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह बंद कर दी है। इससे किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके आश्रित परिवार आजीविका के संकट से जूझ रहे हैं।

५. विस्थापितों के साथ विश्वासघात: परियोजना से प्रभावित परिवारों (PAPs) और विस्थापितों को रोजगार में प्राथमिकता देने का जो नैतिक एवं कानूनी दायित्व (पुनर्वास नीति) कंपनी पर है, उसका पालन नहीं हो रहा है।

क्या मांग है शिकायतकर्ता की?
बी.एल. नेताम ने जिला कलेक्टर से मुख्य रूप से चार कार्रवाइयों की मांग की है:-

· बालको के ५०,००० रोजगार के दावे की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।
· कंपनी को लाभार्थियों की पूरी सूची, पते और पीएफ रिकॉर्ड के साथ एक ‘श्वेत-पत्र’ जारी करने का आदेश दिया जाए।
· भविष्य की सभी भर्तियों में ७०% से अधिक कोटा स्थानीय और विस्थापित लोगों के लिए सुनिश्चित करने हेतु प्रशासनिक निगरानी समिति गठित की जाए।
· यदि दावा झूठा पाया जाता है, तो प्रशासन को गुमराह करने के लिए वेदांता कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।

मानवीय पहलू: सिर्फ आंकड़े नहीं, भविष्य की बात है!
श्री नेताम का पत्र सिर्फ आंकड़ों का विवाद नहीं है। यह कोरबा के हजारों युवाओं के सपनों, मृतक कर्मचारियों के परिवारों की मजबूरी और विस्थापितों के खोए हुए विश्वास की कहानी है। यह उस व्यवस्था पर सवाल है, जहां एक तरफ औद्योगिक विस्तार के गगनचुंबी दावे हैं, और दूसरी तरफ स्थानीय समुदाय अपने ही घर में रोजगार के लिए तरस रहा है।

आगे की राह और कॉर्पोरेट जवाबदेही
यह मामला कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) के सिद्धांतों की कसौटी पर खड़ा है। किसी भी औद्योगिक इकाई का दायित्व सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं, बल्कि उस क्षेत्र के सतत विकास और वहां के निवासियों के कल्याण में योगदान देना भी है। बालको – वेदांता जैसा बड़ा उद्योग समूह जब स्थानीय रोजगार नीतियों का पालन नहीं करता, तो इससे पूरे औद्योगिक माहौल पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।

जिला प्रशासन ने इस शिकायत पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह देखना होगा कि कलेक्टर महोदय इस गंभीर मुद्दे पर क्या कार्रवाई करते हैं और क्या वेदांता प्रबंधन इन आरोपों का कोई संतोषजनक जवाब दे पाता है।

बी.एल. नेताम की यह शिकायत सिर्फ एक पत्र नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय की आवाज है। यह उस आक्रोश की अभिव्यक्ति है जो तब पनपता है जब विकास के नाम पर होने वाले औद्योगीकरण का लाभ स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंच पाता। यह मामला अब प्रशासनिक कार्रवाई के इंतजार में है, और कोरबा जिले के हज़ारों लोगों की नजरें इसी बात पर टिकी हैं कि क्या उन्हें न्याय मिल पाएगा।

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