कोरबा (पब्लिक फोरम)। भैरोताल में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन एक खास और भावनात्मक अंदाज में हुआ। सुश्री सुरती कुलदीप के नेतृत्व और श्रीमती एंजलीना कुजूर की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में भैरोताल इमलीछपर वार्ड की सैकड़ों महिलाओं ने हिस्सा लिया। यह दिन न सिर्फ उत्सव का मौका बना, बल्कि महिलाओं के संघर्ष, शोषण और जागरूकता की गूंज भी सुनाई दी। आइए, जानते हैं इस दिल को छू लेने वाले आयोजन की कहानी।
महिलाओं का संघर्ष: एक ऐतिहासिक शुरुआत
कार्यक्रम की शुरुआत में सुश्री सुरती कुलदीप ने महिलाओं के सामने एक प्रेरक इतिहास रखा। उन्होंने बताया कि 1908 में अमेरिका के कोपेनहेग में 15,000 महिलाओं ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी। आठ घंटे काम की मांग और वोट देने के अधिकार के लिए निकली उनकी रैली ने न सिर्फ अमेरिका, बल्कि दुनिया भर में एक आंदोलन की नींव रखी। यही वह संघर्ष था, जिसने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को जन्म दिया। लेकिन दुख की बात यह है कि आज भी यह लड़ाई खत्म नहीं हुई। सुरती ने कहा, “आज भी कामकाजी महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मेहनत करती हैं, फिर भी उन्हें कम मजदूरी मिलती है। हत्या, बलात्कार, दहेज उत्पीड़न और अंधविश्वास जैसी बेड़ियां महिलाओं को जकड़ रही हैं।”
बढ़ते अपराध और टूटते सपने
महिला नेत्री धन बाई कुलदीप ने महिलाओं पर हो रहे हमलों पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने मणिपुर की दिल दहला देने वाली घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा, “सांप्रदायिक और जातिवादी ताकतें मानवता को शर्मसार कर रही हैं। देश में बलात्कार और हत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन सरकार अपराधियों को रोकने के बजाय उनका हौसला बढ़ाती नजर आ रही है।” धन बाई ने बेरोजगारी और अशिक्षा को इन अपराधों का बड़ा कारण बताया। उनकी बातों में गुस्सा था, दर्द था, और एक उम्मीद भी कि महिलाएं अब चुप नहीं रहेंगी।
जागरूकता और आत्मनिर्भरता का आह्वान
सुरती कुलदीप ने जोर देकर कहा कि आज जरूरत है महिलाओं को जागरूक करने की। “मीडिया और सत्ता अंधविश्वास फैलाकर हमें मानसिक गुलाम बना रही है। यह हमें आत्मनिर्भर होने से रोकता है और डरपोक बनाता है।” वहीं, एंजलीना कुजूर ने महिलाओं को सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “हमें अपनी ताकत पहचाननी होगी। हम बदलाव की शुरुआत खुद से कर सकते हैं।”
मितानिनों का सम्मान: कोरोना योद्धाओं की कहानी
इस मौके पर मितानिनों (स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं) को भी सम्मानित किया गया। ये वही महिलाएं हैं, जिन्होंने कोरोना महामारी के दौरान अपनी जान की परवाह न करते हुए लोगों की सेवा की। उनकी हिम्मत और समर्पण को देख हर आंख नम हो गई। यह पल न सिर्फ गर्व का था, बल्कि यह भी याद दिलाया कि महिलाएं कितनी सशक्त हो सकती हैं।
उत्सव में रंग: खेल, नृत्य और संगीत
कार्यक्रम में गंभीर चर्चाओं के साथ-साथ खुशी के पल भी थे। महिलाओं के लिए खेल, नृत्य और संगीत प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। हंसी-खुशी के बीच महिलाओं ने अपनी प्रतिभा दिखाई और एक-दूसरे के साथ जुड़ाव महसूस किया। यह नजारा देखते ही बनता था—जहां एक तरफ संघर्ष की बातें थीं, वहीं दूसरी तरफ जिंदगी का जश्न भी।
यह आयोजन सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं था, बल्कि एक संदेश था—महिलाओं को अपने हक के लिए लड़ना होगा। शोषण, अपराध और अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता ही वह हथियार है, जो उन्हें आजादी और सम्मान दिला सकता है। भैरोताल की महिलाओं ने यह साबित कर दिखाया कि वे न सिर्फ अपनी आवाज उठा सकती हैं, बल्कि समाज में बदलाव की मशाल भी बन सकती हैं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं के अधिकारों, उनकी उपलब्धियों और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालता है। भैरोताल का यह आयोजन हमें सोचने पर मजबूर करता है—क्या हम सच में उस बराबरी की ओर बढ़ रहे हैं, जिसका सपना देखा गया था?
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