कोरबा जिले में धान की खरीदी अब अंतिम चरण में है, लेकिन धान का उठाव अभी भी बहुत धीमा है। इससे कई उपार्जन केन्द्रों में धान का ढेर लग गया है और हाथी प्रभावित क्षेत्रों में तो उनका आना-जाना भी बढ़ गया है। इसके अलावा, बेमौसम बारिश ने भी कुछ जगहों पर धान को नुकसान पहुंचाया है। उपार्जन केन्द्रों के कर्मचारी मार्कफेड के रवैये से नाराज हैं, क्योंकि उन्होंने धान का उठाव नहीं किया है, जबकि उनके डीओ कट चुके हैं।
जिले में सहकारी समितियों द्वारा 65 उपार्जन केन्द्रों में धान की खरीदी की जा रही है, जिसमें से कुछ अब बंद हो चुके हैं। धान की खरीदी के साथ-साथ इसका उठाव भी समय-समय पर होना चाहिए, जिसका जिम्मा जिला विपणन विभाग का है। जिले में अब तक 22 लाख 26 हजार 888.40 क्विंटल मोटा धान, 24 क्विंटल पतला धान और 28332.40 क्विंटल सरना धान उपार्जित हुए हैं।
इसके विपरीत, मात्र 15 लाख 18110 क्विंटल धान का उठाव हुआ है। इससे 7 लाख 37 हजार 134.80 क्विंटल धान अभी भी उपार्जन केन्द्रों में पड़ा हुआ है। धान के उठाव का प्रतिशत सिर्फ 67.31 ही है, जो काफी कम है। अखरापाली उपार्जन केन्द्र में तो सिर्फ 50.82 प्रतिशत धान का उठाव हुआ है, जो सबसे कम है। इसके बाद भी 85.77 प्रतिशत धान पाली समिति के नुनेरा उपार्जन केन्द्र से उठाव हुआ है।
कल गुरुवार को सुबह हुई तेज बारिश ने भी उपार्जन केन्द्रों में धान को भारी नुकसान पहुंचाया है। कुछ जगहों पर तो धान की बोरियां तिरपाल के बिना ही खुली पड़ी थीं, जिन्हें बारिश ने भिगो दिया है। करतला उपार्जन केन्द्र में भी दर्जनों बोरा धान भीग गए हैं। कारण यह है कि समय पर धान का उठाव नहीं हो रहा है और धान की बोरियों को ढंकने के लिए तिरपाल की भारी कमी है।
हालांकि कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत ने इस मामले में उपार्जन केन्द्रों के प्रभारियों को निर्देश दिए हैं कि वे मौसम के अनुकूल व्यवस्था करें और धान के बोरों को सुरक्षित रखें। यह भी सुनिश्चित करें कि तिरपाल फटे न हों और धान को भीगने से बचाएं। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस विकराल समस्या पर कैसे काबू कर पाता है।
कारण यह है कि समय पर धान का उठाव नहीं हो रहा है और धान की बोरियों को ढंकने के लिए तिरपाल की भारी कमी है।
हालांकि कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत ने इस मामले में उपार्जन केन्द्रों के प्रभारियों को निर्देश दिए हैं कि वे मौसम के अनुकूल व्यवस्था करें और धान के बोरों को सुरक्षित रखें। यह भी सुनिश्चित करें कि तिरपाल फटे न हों और धान को भीगने से बचाएं। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस विकराल समस्या पर कैसे काबू कर पाता है।
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