हाइब्रिड नेशनल लोक अदालत में 1,47,872 प्रकरणों का समझौते के आधार पर समाधान
कोरबा (पब्लिक फोरम)। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा), नई दिल्ली और छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, बिलासपुर के दिशा-निर्देशों के तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कोरबा ने जिला और तहसील स्तर पर वर्ष 2025 की दूसरी हाइब्रिड नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया। इस भव्य आयोजन का शुभारंभ श्री संतोष शर्मा, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश तथा अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, कोरबा की अध्यक्षता में हुआ।
न्यायिक गरिमा से सजा आयोजन
इस अवसर पर श्रीमती नीता यादव (न्यायाधीश, कुटुंब न्यायालय), श्री संतोष कुमार आदित्य (प्रथम जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश), श्रीमती गरिमा शर्मा (द्वितीय जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश), डॉ. ममता भोजवानी (जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश, एफटीएससी-पॉक्सो), श्री सुनील कुमार नंदे (तृतीय जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश), श्री अविनाश तिवारी (श्रम न्यायाधीश), सुश्री सीमा प्रताप चंद्रा (जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश, एफटीसी), श्री शीलू सिंह (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट), श्री सत्यानंद प्रसाद (तृतीय व्यवहार न्यायाधीश, वरिष्ठ श्रेणी), कु. डॉली ध्रुव (द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश, वरिष्ठ श्रेणी), कु. कुमुदिनी गर्ग (प्रथम व्यवहार न्यायाधीश, कनिष्ठ श्रेणी), श्री लव कुमार लहरे (द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश, कनिष्ठ श्रेणी), श्री गणेश कुलदीप (अध्यक्ष, जिला अधिवक्ता संघ, कोरबा), अन्य अधिवक्ता संघ पदाधिकारी और न्यायालयीन कर्मचारी उपस्थित रहे।

विशाल स्तर पर प्रकरणों का निराकरण
लोक अदालत में कुल 4,39,245 प्रकरण विचारार्थ रखे गए, जिनमें 6,144 न्यायालय में लंबित और 4,33,101 प्री-लिटिगेशन प्रकरण शामिल थे। इनमें से 1,47,872 प्रकरणों का समझौते के आधार पर निराकरण हुआ, जिसमें राजस्व, प्री-लिटिगेशन और लंबित न्यायालयीन प्रकरण शामिल थे। यह उपलब्धि नेशनल लोक अदालत की प्रभावशीलता और सामाजिक न्याय के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
तहसील स्तर पर भी हुआ आयोजन
कोरबा के मार्गदर्शन में कटघोरा व्यवहार न्यायालय में भी नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया गया। यहां पांच खंडपीठों ने कार्य किया, जिनमें दांडिक और सिविल प्रकृति के विभिन्न राजीनामा योग्य प्रकरणों का समझौते के आधार पर समाधान किया गया। लोक अदालत का मूल मंत्र रहा-“ना जीत, ना हार, केवल समाधान”।
सक्सेस स्टोरी: लोक अदालत की प्रेरक मिसालें
1. दांपत्य जीवन की पुनर्स्थापना: परिवार को फिर से जोड़ा
कोरबा कुटुंब न्यायालय में विचाराधीन एक प्रकरण में आवेदिका ने बताया कि उसका विवाह 3 मई 2022 को हिंदू रीति-रिवाज से हुआ था। विवाह के प्रारंभिक दिनों में सब ठीक रहा, लेकिन बाद में अनावेदक ने छोटी-छोटी बातों पर विवाद और मारपीट शुरू कर दी। उसने मायके से मोटरसाइकिल और पैसे लाने का दबाव बनाया। असहनीय उत्पीड़न के बाद आवेदिका ने कुटुंब न्यायालय में धारा 144, भारतीय नागरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर किया।
लोक अदालत में कई पेशियों के बाद, खंडपीठ के निरंतर प्रयासों और समझाइश से दोनों पक्ष बिना किसी दबाव के राजीनामा पर सहमत हुए। 10 मई 2025 को इस प्रकरण का निराकरण हुआ, और दंपति ने पुनः दांपत्य जीवन शुरू करने का निर्णय लिया। यह लोक अदालत की संवेदनशीलता और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने की शक्ति का प्रतीक है।
2. बेसहारा परिवार को मिला न्याय: त्वरित क्षतिपूर्ति
नेशनल लोक अदालत ने एक अन्य मामले में भी अपनी प्रभावशीलता सिद्ध की। 28 मई 2024 को एक बस दुर्घटना में आवेदक की पत्नी की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद नाबालिग बच्चे मां की ममता और आर्थिक सहारे से वंचित हो गए। आवेदक ने धारा 166, मोटर यान अधिनियम 1988 के तहत क्षतिपूर्ति के लिए आवेदन दायर किया।
10 मई 2025 को लोक अदालत में सुश्री सीमा प्रताप चंद्रा, अतिरिक्त मोटर यान दुर्घटना दावा अधिकरण, कोरबा की खंडपीठ के समक्ष आवेदक और बीमा कंपनी ने संयुक्त रूप से समझौता प्रस्तुत किया। हाइब्रिड लोक अदालत के माध्यम से बेसहारा परिवार को 20 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति प्रदान की गई, जिसे बीमा कंपनी को 30 दिनों के भीतर अदा करने का निर्देश दिया गया। यह निर्णय न केवल त्वरित न्याय का उदाहरण है, बल्कि लोक अदालत के मूल सिद्धांत “न्याय आपके द्वार” को भी साकार करता है।
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