गुजरात (पब्लिक फोरम)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यता अभियान को लेकर गुजरात में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब राजकोट के रणछोड़दास बापू चैरिटेबल ट्रस्ट नेत्र अस्पताल में मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद मरीजों को आधी रात में जगाकर जबरन भाजपा की सदस्यता दिलाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इस घटना ने लोगों में भारी नाराजगी और आक्रोश पैदा कर दिया है।
क्या है पूरा मामला?
रिपोर्टों के अनुसार, जूनागढ़ के त्रिमूर्ति अस्पताल में पंजीकृत कई मरीजों को 16 सितंबर को मोतियाबिंद सर्जरी के लिए राजकोट लाया गया था। ऑपरेशन के बाद रात को, एक व्यक्ति ने कथित तौर पर मरीजों को जगाया, उनके मोबाइल से ओटीपी कोड लेकर उन्हें भाजपा सदस्य के रूप में पंजीकृत कर दिया। इस घटनाक्रम का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि इन मरीजों को बिना उनकी अनुमति के इस तरह पार्टी सदस्य बनाया गया।
मरीज का खुलासा
जूनागढ़ से आए एक मरीज कमलेश थुम्मर ने इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो बनाया और इसे मीडिया के साथ साझा किया। उन्होंने बताया कि उन्हें भाजपा का सदस्य बनाए जाने का पता तब चला जब उनके मोबाइल पर पुष्टि संदेश आया। उन्होंने कहा, “मैं पिछले रविवार को मोतियाबिंद की सर्जरी के लिए राजकोट गया था। रात करीब 8 बजे मैं सो गया था। रात करीब 10:30-11 बजे किसी ने मुझे जगाया और मेरा मोबाइल नंबर मांगा। मुझे लगा कि यह अस्पताल का कोई काम होगा। उसने मेरा फोन लिया और ओटीपी डाला। जब मुझे फोन वापस मिला, तो मैं भाजपा का सदस्य बन चुका था।”
जबरन सदस्यता की शिकायत
कमलेश थुम्मर ने आगे बताया, “जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने मुझे भाजपा का सदस्य बनाया है, तो जवाब मिला, ‘कोई और तरीका नहीं है।’ यह पूरी तरह गलत है। लगभग 400 लोगों में से करीब 200-250 लोगों को, जिनके पास मोबाइल था, जबरन भाजपा सदस्यता दिला दी गई। यह एक घोटाला है। लोगों को सदस्यता के लिए मजबूर किया गया है, जो निंदनीय है।”
मानवता के खिलाफ
यह घटना न केवल मरीजों के अधिकारों का हनन है, बल्कि स्वास्थ्य संस्थानों में मरीजों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार का गंभीर उदाहरण भी है। मरीज, जो इलाज के लिए अस्पताल जाते हैं, उनसे राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए इस तरह का अनुचित व्यवहार करना बेहद शर्मनाक है। यह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है कि बीमार और असहाय मरीजों को राजनीतिक खेल का हिस्सा बनाया जाए।
प्रशासन और जनता की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से कार्रवाई की मांग की जा रही है। मरीजों के परिजनों और स्थानीय लोगों ने भी इस तरह की गतिविधियों की कड़ी निंदा की है। राजकोट के अस्पताल में हुए इस कृत्य ने न केवल अस्पताल प्रशासन पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि राजनीतिक दलों द्वारा सदस्यता बढ़ाने के लिए अपनाए जा रहे गलत तरीकों पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाए हैं।
यह मामला न्यायिक जांच की मांग करता है। राजनीति को स्वास्थ्य संस्थानों में इस तरह से घुसने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जहां मरीजों का इलाज होना चाहिए, न कि उनकी राजनीतिक पहचान बदलनी चाहिए। जनता के प्रति जवाबदेही और पारदर्शिता इस घटना की जांच का मुख्य आधार होना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं दोबारा न हो।
इस पूरे मामले ने यह साफ कर दिया है कि राजनीतिक दलों को अपने अभियान चलाने में मानवता और नैतिकता का ध्यान रखना चाहिए।
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