नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। देश के कोने-कोने से आए ईसाई समुदाय के लोगों ने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद की। 26-27 मार्च को गढ़वाल भवन, नई दिल्ली में राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा की पहली राष्ट्रीय बैठक हुई, जिसमें 225 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से लेकर केरल, मणिपुर और दिल्ली तक, हर जगह से लोग इस मंच पर जमा हुए। यह सम्मेलन सिर्फ एक बैठक नहीं, बल्कि ईसाई समुदाय के दर्द, उम्मीद और संघर्ष की एक जीवंत तस्वीर बनकर उभरा।
सम्मेलन की शुरुआत: संविधान के सम्मान के साथ
सम्मेलन का उद्घाटन चर्च ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के बिशप आर. के. मैसी ने किया। इसके बाद भारत मुक्ति मोर्चा के छत्तीसगढ़ अध्यक्ष सुनील खालको के नेतृत्व में सभी ने संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक पाठ किया। यह पल न सिर्फ भावुक था, बल्कि यह संदेश भी दे गया कि यह आंदोलन संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए है।

क्या है राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा?
राष्ट्रीय क्रिश्चियन मोर्चा एक सामाजिक आंदोलन है, जो ईसाई समुदाय के हितों और सम्मान के लिए लड़ता है। यह संगठन भारत मुक्ति मोर्चा से जुड़ा है, जो दलितों, आदिवासियों, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करता है। इसका मकसद है उत्पीड़न, धार्मिक भेदभाव और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के खिलाफ आवाज उठाना। सम्मेलन में यह साफ हुआ कि यह मोर्चा सिर्फ ईसाइयों की नहीं, बल्कि हर हाशिए पर खड़े समुदाय की बात करता है।

दिग्गजों की आवाज: दर्द और उम्मीद का मिश्रण
सम्मेलन में कई बड़े नाम शामिल हुए। राष्ट्रीय संरक्षक वामन मेश्राम, प्रभारी एडवोकेट सुनील डोंगरदिवे और संयोजक रेव्ह. अरविंद कच्छप ने कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया। वहीं, रेव्ह. डॉ. रिचर्ड हॉवेल, डॉ. जॉन दयाल और राईट रेव्ह. डॉ. अखिलेश एडगर जैसे मसीही अगुवों ने गंभीर मुद्दों पर प्रकाश डाला। इन वक्ताओं ने बताया कि कैसे ईसाई समुदाय पर अत्याचार बढ़ रहे हैं, चर्चों पर हमले हो रहे हैं और संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है। उनकी बातों में गुस्सा था, दुख था, लेकिन सबसे ज्यादा थी एक बेहतर समाधान की उम्मीद।

जमीनी हकीकत: आंसुओं से लिखी कहानी
सम्मेलन में अलग-अलग राज्यों से आए प्रतिनिधियों ने अपनी आपबीती सुनाई। छत्तीसगढ़ के कलेरदान तिर्की ने कहा, “हमारे गांवों में चर्च तोड़े जा रहे हैं।” मणिपुर के एल. हाओकिप ने हिंसा और पलायन का दर्द बयां किया। राजस्थान के जयपाल सिंह ने बताया कि कैसे धार्मिक प्रोपेगंडा के जरिए आदिवासियों को विकास से दूर रखा जा रहा है। हर कहानी में एक साझा दर्द था—अन्याय और उपेक्षा। वक्ताओं ने यह भी कहा कि ईसाइयों को बांटने की साजिश हो रही है, ताकि मूलनिवासी समाज एकजुट न हो सके।

उठे बड़े सवाल: सच जो दिल को छू गया
– संविधान का हनन: वक्ताओं ने कहा कि मौलिक अधिकारों को कुचला जा रहा है। कई राज्यों में धर्म स्वतंत्रता कानून बनाकर भय का माहौल पैदा किया जा रहा है।
– आदिवासियों पर हमला: “पेसा” कानून का गलत इस्तेमाल कर ईसाई आदिवासियों को परेशान किया जा रहा है। उनके जल, जंगल और जमीन छीने जा रहे हैं।
– झूठा प्रोपेगंडा: ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया, फिर भी धर्मांतरण के नाम पर उन्हें बदनाम किया जा रहा है।
– एकता की जरूरत: वक्ताओं ने जोर दिया कि बिना संगठित हुए न ईसाइयों की समस्याएं सुलझेंगी, न ही मूलनिवासियों का भाईचारा मजबूत होगा।
नई शुरुआत: कार्यकारिणी का गठन
सम्मेलन के अंत में नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी चुनी गई। रेव्ह. अरविंद कच्छप राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, बिशप आर. के. मैसी उपाध्यक्ष, रेव्ह. भरत घोघरे महासचिव और डॉ. अखिलेश एडगर प्रमुख सलाहकार नियुक्त हुए। यह टीम अब पूरे देश में संगठन को मजबूत करेगी।
बड़े फैसले: भविष्य की राह
– अगले एक साल में सभी राज्यों में संगठन तैयार करना।
– जून 2025 में हिंसा के खिलाफ सरकार को ज्ञापन देना।
– अधिकारों की रक्षा के लिए धरना और रैलियां आयोजित करना।
– दो राष्ट्रीय सम्मेलन करने की योजना।
यह सम्मेलन सिर्फ एक आयोजन नहीं था, बल्कि उन लाखों लोगों की उम्मीद का प्रतीक था, जो अन्याय के खिलाफ लड़ रहे हैं। ईसाई समुदाय ने साफ कर दिया कि वे चुप नहीं बैठेंगे। उनकी यह लड़ाई न सिर्फ अपने लिए, बल्कि हर उस इंसान के लिए है, जो सम्मान और बराबरी का हकदार है।
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