कोल ब्लॉक का विरोध: जल जमीन जंगल बचाने संगठित हो रहे आदिवासी
कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में हरियाली बचाने का मिशन जिस गांव से शुरूआत हुई है उस गाव का नाम ही हरियरपुर है। मतलब हरियाली बचाने की शूरुआत ही हरियरपुर से हुई है। दरसल हरियरपुर गांव का नाम उस समय चर्चा में आया जब केन्द्र सरकार को कोल ब्लाक का आवंटन कर दिया और छत्तीसगढ़ सरकार को खनन की अनुमति दे दी गई। तब से हसदेव अरण्य बचाओ आन्दोलन की आगाज यहां के आदिवासियो के द्वारा कुछ जागरुक लोगो के साथ मिलकर कर दी गई।
रोज आस पास के गाव के ग्रामीण भारी संख्या में पहुच कर कोल ब्लाक का विरोध कर रहे हैं। जिसकी गूंज इंग्लैंड के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी तक हो गयी इससे समझा जा सकता है कि आदिवासियों के इस अन्दोलन की उस आवाज में कितना दम है इसकी गूंज विदेशो तक पहुच गई, जो कि भविष्य में विदेशी दौरे मे जाने वाले भारतीय राजनयिकों के सामने उठकर एक ज्वलंत सवाल के रूप में आकर खड़ा होता रहेगा।
महुआ पेड़ के छिलके वाली लकडी का मंडप बनाकर अन्दोलन कर रहे है। अन्दोलन स्थल में ही रोज भोजन बनता है। आंदोलनकारी स्थानीय आदिवासी दोनापत्तल में खाना खाते हैं। पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनो के सहारे अन्दोलन कर रहे आदिवासियो की हौसला अफजाई करने प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग आंदोलन स्थल पर पहुचते हैं।
घने जंगलो के बीच बसे हरियरपूर से महज 03 किलोमीटर की दूरी पर अडानी की कोयला खदान है। जिसकी वजह से गांव के कुएं सुख गये हैं। ले देकर केवल एक ही हैंड पंप चल रहा है। पानी का संकट साफ नजर आता है। सूरजपुर जिले के हरियरपुर मे खुलने वाली खदान का विस्तार कोरबा जिले की सीमा तक फैल जाएगा और कोरबा जिला जानलेवा प्रदूषण के राक्षस से पहले ही लड़ते आ रहा है फिर भविष्य के पर्यावरणीय एवं जल संकट से अभी जूझना बाकी है।
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