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शनिवार, नवम्बर 15, 2025
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बालको में बढ़ता श्रमिक असंतोष: वेदांता प्रबंधन पर स्थानीय मजदूरों, सेवानिवृत्त कर्मचारियों और मूलनिवासियों के शोषण के आरोप

“जिला प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग”

कोरबा (पब्लिक फोरम)। जिस कारखाने की भट्टियों में अपनी जवानी झोंक दी, जिस कंपनी को अपने खून-पसीने से बड़ा बनाया, आज वही कंपनी उन्हें बेसहारा छोड़ रही है। कोरबा के भारत अल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) के सेवानिवृत्त श्रमिकों की यह पीड़ा महज़ कागज़ों में दर्ज शिकायत नहीं, बल्कि उन हज़ारों परिवारों की असली कहानी है जो आज असुरक्षा और अनिश्चितता के अंधेरे में खड़े हैं।

गत 7 नवंबर को अनुविभागीय दंडाधिकारी कोरबा कार्यालय में वेदांता प्रबंधन, बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति के साथ त्रिपक्षी वार्ता विफल होने के बाद समिति ने जिला प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप कर इस बढ़ते औद्योगिक और सामाजिक संकट को रोकने की अपील की है।

बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति ने जिलाधीश कोरबा को सौंपे एक विस्तृत मांग पत्र में वेदांता प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाते हुए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। इस मांग पत्र में केवल आर्थिक मुद्दे नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा, संवैधानिक अधिकार और सामाजिक न्याय के सवाल उठाए गए हैं।

निजीकरण के बाद से जारी है शोषण का सिलसिला

साल 2001 में जब बालको का निजीकरण हुआ और वेदांता लिमिटेड ने इसकी बागडोर संभाली, तब श्रमिकों को कई वादे किए गए थे। लेकिन विगत दो दशकों में वे वादे धूल-धूसरित हो गए। बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक बीएल नेताम, अध्यक्ष बुद्धेश्वर प्रसाद चौहान और सचिव सुनील सुना के नेतृत्व में प्रस्तुत इस मांग पत्र में कहा गया है कि कंपनी द्वारा लगातार श्रमिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है।

जीवनभर कंपनी को अपना समर्पण देने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों को उनकी पेंशन, ग्रेच्युटी, भविष्य निधि, चिकित्सा सुविधा और अन्य अंतिम भुगतान से वंचित रखा जा रहा है। यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि उन लोगों के साथ विश्वासघात है जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस कंपनी को समर्पित कर दिया।

घर से बेदखली का डर, बुढ़ापे में बेसहारा

संघर्ष समिति का सबसे मार्मिक आरोप यह है कि सेवानिवृत्त श्रमिकों को बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के उनके आवासों से खाली कराने का दबाव बनाया जा रहा है। कल्पना कीजिए, एक बुज़ुर्ग दंपति जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी कंपनी के क्वार्टर में गुज़ारी, जिसके बच्चे यहीं बड़े हुए, आज उसी घर से बेघर होने का ख़तरा झेल रहे हैं।

यह केवल अमानवीय नहीं, बल्कि मानवाधिकार और श्रम कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है। संघर्ष समिति ने मांग की है कि जब तक वैकल्पिक व्यवस्था न हो, किसी भी सेवानिवृत्त श्रमिक को बेदखल न किया जाए।

आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थानीय लोगों की उपेक्षा

कोरबा जिला एक आदिवासी बहुल और पांचवीं अनुसूची क्षेत्र है। संविधान के अनुच्छेद 244 और पेसा अधिनियम 1996 के तहत यहां स्थानीय समुदाय के अधिकारों की रक्षा राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है। लेकिन संघर्ष समिति का आरोप है कि स्थानीय युवाओं और मूल निवासियों को नियुक्ति और ठेका कार्यों में सुनियोजित तरीके से वंचित किया जा रहा है।

मांग पत्र में कहा गया है कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र होने के कारण राज्य सरकार के रोज़गार अधिनियम के तहत शत-प्रतिशत स्थानीय निवासियों को वेदांता कंपनी में तत्काल भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए। यह केवल नौकरी का सवाल नहीं, बल्कि उस ज़मीन पर पहला हक़ किसका है, इसका सवाल है।

महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार, माफ़ी की मांग

मांग पत्र में एक बेहद संवेदनशील मुद्दा यह भी उठाया गया है कि वेदांता बालको के एडमिनिस्ट्रेशन और कॉरपोरेट अफेयर्स के प्रमुख कैप्टन धनंजय मिश्रा और उनके स्टाफ द्वारा बालको परिवार की महिलाओं, बेटियों और बच्चों के साथ अपशब्द और अभद्र व्यवहार किया गया। संघर्ष समिति ने इसके लिए सार्वजनिक माफ़ी की मांग की है।

साथ ही नगर प्रशासन विभाग के अधिकारी सुमंतसिंह, अमृत निषाद और बोधादित्य चंद्र को टाउनशिप एडमिनिस्ट्रेशन से अन्यत्र स्थानांतरित करने की मांग की गई है। यह मांग इस बात की ओर इशारा करती है कि कंपनी में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के प्रति कितनी उदासीनता है।

दस सूत्री मांग: न्याय की पुकार

बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति ने दस प्रमुख मांगें रखी हैं:-

पहली और सबसे अहम मांग: सभी सेवानिवृत्त श्रमिकों के बकाया भुगतान की है। पीएफ, ग्रेच्युटी, पेंशन, बोनस, चिकित्सा सुविधा की बहाली और क्षतिपूर्ति का तत्काल भुगतान किया जाए। इसके लिए एक संयुक्त जांच समिति का गठन हो जिसमें श्रम विभाग, कंपनी प्रबंधन और संघर्ष समिति के प्रतिनिधि शामिल हों।

दूसरी मांग: आवास खाली कराने की कार्रवाही पर रोक लगाने व वैकल्पिक व्यवस्था की मांग की है। बाढ़ आपदा पीड़ित सेक्टर-5 बालकोनगर और अन्य स्थानीय निवासियों के लिए भी सम्मानजनक समाधान निकाला जाए।

तीसरी मांग: निजीकरण के समय हुए समझौतों की पारदर्शी समीक्षा और कर्मचारियों की सेवा शर्तों में मनमाने बदलाव पर रोक की है।

चौथी मांग: स्थानीय निवासियों को रोज़गार में प्राथमिकता देने की है ताकि बालकोनगर का सामाजिक स्वरूप सुरक्षित रहे।

पांचवीं मांग: श्रम विभाग द्वारा स्वतंत्र जांच दल गठित कर यह जांच करने की है कि कंपनी ने औद्योगिक विवाद अधिनियम, भुगतान अधिनियम, ग्रेच्युटी अधिनियम और फैक्ट्री अधिनियम का किस हद तक उल्लंघन किया है।

छठी मांग: कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फंड की पारदर्शिता की है। वेदांता द्वारा खर्च किए जा रहे CSR फंड की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक हो और स्थानीय प्रतिनिधियों की निगरानी में इसका उपयोग हो।

अन्य मांगों में CSR में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना और पुनः बालको सांस्कृतिक कला मंडल का गठन करना भी शामिल है।

बालको सिर्फ़ फैक्ट्री नहीं, हज़ारों परिवारों का जीवन है

मांग पत्र में एक मार्मिक अपील की गई है कि बालको केवल एक औद्योगिक इकाई नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ की मेहनतकश जनता, आदिवासी समुदाय और श्रमिक वर्ग के जीवन का प्रतीक है। यहां काम करने वाले हर व्यक्ति ने इसे अपना घर माना, अपना परिवार समझा।

संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार तत्काल पहल नहीं करती तो यह मामला सामाजिक असंतोष, विस्थापन और मानवीय संकट का रूप ले सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे सेवानिवृत्त श्रमिकों, उनके परिजनों और स्थानीय मूलनिवासी समाज के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए लोकतांत्रिक और संवैधानिक मार्ग पर जन आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

प्रशासन से न्याय की उम्मीद

यह मांग पत्र न केवल जिलाधीश कोरबा को सौंपा गया है, बल्कि इसकी प्रतिलिपि छत्तीसगढ़ के श्रमायुक्त, आदिवासी कल्याण आयुक्त, मानवाधिकार आयोग रायपुर, भारत सरकार के कॉर्पोरेट मामलों के सचिव, पुलिस अधीक्षक कोरबा और अन्य संबंधित अधिकारियों को भी भेजी गई है।

बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति के प्रतिनिधि मंडल में बीएल नेताम, बुद्धेश्वर प्रसाद चौहान, सुनील सुना के अलावा पुरुषोत्तम कश्यप, रामजी शर्मा, हेमलता सिंगारे, प्रवीण कुमार लकड़ा, राजेंद्र पटेल, राकेश मरकाम, आरके महंत, बीआर चौहान, धीरेंद्र कनाठे, पीके शर्मा और नीलम शर्मा सहित श्रमिक परिवार के कई सदस्य शामिल हैं।

संवैधानिक और मानवीय सवाल

यह संघर्ष केवल बालको या कोरबा का नहीं है। यह उस विकास मॉडल पर सवाल है जहां कॉर्पोरेट मुनाफ़ा श्रमिकों के अधिकारों से ज़्यादा अहम हो जाता है। यह उस व्यवस्था पर सवाल है जहां संविधान में दिए गए आदिवासी अधिकारों की अनदेखी होती है। यह उस संस्कृति पर सवाल है जहां जीवनभर सेवा देने वाले लोगों को बुढ़ापे में बेसहारा छोड़ दिया जाता है।

क्या वेदांता प्रबंधन इन सवालों का जवाब देगा? क्या प्रशासन इस मानवीय संकट को समझेगा? क्या संवैधानिक अधिकार सिर्फ़ किताबों में ही रहेंगे या ज़मीन पर भी उतरेंगे?

बालको के सेवानिवृत्त श्रमिक और स्थानीय समुदाय इन सवालों के जवाब की प्रतीक्षा में हैं। उनकी आंखों में उम्मीद है, लेकिन धैर्य का बांध टूटने की कगार पर है। यह समय न्याय का है, संवेदनशीलता का है और मानवीय गरिमा को बहाल करने का है।
(यह रिपोर्ट “बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति” द्वारा जिलाधीश को सौंपे गए मांग पत्र और स्थल पर प्राप्त तथ्यों के आधार पर तैयार की गई है।)

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