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मंगलवार, सितम्बर 30, 2025
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विश्व आदिवासी दिवस पर कोरबा में भव्य आयोजन: पर बूढ़ा तालाब के नाम पर क्यों हैं मौन?

कोरबा/रायपुर (पब्लिक फोरम)। एक ओर जहां कोरबा में विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में पांच दिवसीय भव्य कार्यक्रम की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की राजधानी रायपुर में बूढ़ा तालाब के नाम को लेकर आदिवासी समाज में गहरा रोष व्याप्त है। इन दोनों घटनाओं के बीच एक अजीब सी चुप्पी है, जो कई सवाल खड़े कर रही है। कोरबा के आयोजनकर्ता, जो आदिवासी संस्कृति को विश्व संस्कृति की जननी बता रहे हैं, रायपुर के इस संवेदनशील मुद्दे पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

कोरबा में विश्व के प्रथम आदिवासी शक्तिपीठ द्वारा आयोजित यह पांच दिवसीय महोत्सव 7 अगस्त से शुरू होकर 11 अगस्त तक चलेगा। इसका समापन समारोह प्रदेश के कैबिनेट मंत्री लखनलाल देवांगन के मुख्य आतिथ्य में होगा। इस आयोजन में आदिवासी संस्कृति, परंपरा और खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों की एक लंबी श्रृंखला है, लेकिन इन सबके बीच रायपुर का बूढ़ा तालाब का मुद्दा चर्चा का केंद्र बना हुआ है।

बूढ़ा तालाब पर क्यों है विवाद?

दरअसल, छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज की मांग है कि रायपुर के ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब का नाम, जिसे पूर्ववर्ती सरकार ने बदलकर विवेकानंद सरोवर कर दिया था, वापस उसके मूल नाम पर किया जाए।आदिवासी समुदाय का तर्क है कि यह तालाब उनकी आस्था और इतिहास का प्रतीक है, जिसका नाम आदिवासी समुदाय के ईष्टदेव “बूढ़ादेव” के नाम पर रखा गया था। उनका मानना है कि नाम बदलना उनकी सांस्कृतिक विरासत को मिटाने जैसा है। यह मुद्दा इतना गंभीर है कि आदिवासी समाज ने मुख्यमंत्री से इस “भूल सुधार” की मांग की है।

कोरबा के आयोजकों की चुप्पी

हैरानी की बात यह है कि जब कोरबा में प्रेस वार्ता के दौरान विश्व के प्रथम आदिवासी शक्तिपीठ के पदाधिकारियों से इस ज्वलंत मुद्दे पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी गई, तो वे बार-बार सवाल को टालते नजर आए। आदिवासी संस्कृति और अस्मिता की बात करने वाले इन आयोजकों की इस मुद्दे पर चुप्पी ने एक नई बहस छेड़ दी है। आखिर क्या वजह है कि वे इस पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं? क्या वे किसी राजनीतिक दबाव में हैं या फिर वे इस विवाद से बचकर अपने आयोजन को निर्विघ्न संपन्न कराना चाहते हैं? कारण जो भी हो, उनकी यह खामोशी आदिवासी समाज के एक बड़े वर्ग को बेहद निराश कर रही है।

कोरबा में कार्यक्रमों की धूम

विवादों से इतर, कोरबा में आदिवासी दिवस को लेकर खासा उत्साह है। पांच दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत 7 अगस्त को ब्लॉक स्तरीय सामान्य ज्ञान, भाषण, रंगोली और चित्रकला प्रतियोगिताओं से होगी। 8 अगस्त को आदिवासी शक्तिपीठ में कबड्डी, रस्साकसी, फुगड़ी और तीरंदाजी जैसी पारंपरिक खेल प्रतियोगिताएं होंगी। तीसरे दिन सामूहिक देवपूजन और कुर्सी दौड़ जैसे कार्यक्रम रखे गए हैं।

चौथे दिन, यानी 10 अगस्त को मेडिकल कैंप, रक्तदान शिविर के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगिताओं के फाइनल मुकाबले होंगे। इसके अलावा, सांस्कृतिक नृत्य, पारंपरिक आदिवासी परिधान प्रतियोगिता और युवाओं के लिए कैरियर काउंसलिंग का भी आयोजन किया जाएगा।

समापन समारोह और गणमान्य अतिथि

कार्यक्रम का समापन 11 अगस्त को मैराथन दौड़ के साथ होगा। इसके बाद मंचीय कार्यक्रम, सम्मान समारोह, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाएगा। समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कैबिनेट मंत्री लखनलाल देवांगन मौजूद रहेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता आदिवासी शक्तिपीठ के अध्यक्ष बी.एस. पैंकरा करेंगे। विशिष्ट अतिथियों में सांसद ज्योत्सना चरण दास महंत, विधायक फूल सिंह राठिया, प्रेमचंद पटेल, तुलेश्वर सिंह मरकाम और पूर्व कैबिनेट मंत्री जयसिंह अग्रवाल समेत कई गणमान्य हस्तियां शामिल होंगी।

यह आयोजन निस्संदेह आदिवासी संस्कृति और प्रतिभा को एक मंच प्रदान करेगा, लेकिन बूढ़ा तालाब के मुद्दे पर आयोजकों की चुप्पी इस बात को भी रेखांकित करती है कि कैसे अक्सर बड़े सांस्कृतिक समारोहों के बीच समाज के कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या भविष्य में आदिवासी समाज के ये अगुआ इस मुद्दे पर अपनी आवाज उठाते हैं या यह खामोशी ऐसे ही बरकरार रहती है।

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