इस तरह की कार्रवाई संविधान और संघीय ढांचे का घोर उल्लंघन है
मानसा (पब्लिक फोरम)। भाकपा (माले) लिबरेशन ने पंजाब के राज्यपाल श्री प्रोहित द्वारा राज्य के सभी आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को सीधे पत्र लिखे जाने को राज्य के प्रशासन में अवैध हस्तक्षेप बताते हुए इसका कड़ा विरोध किया है।
पार्टी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पहले तो मोदी सरकार के छिपे हुए निर्देशों के तहत हम दूसरे राज्यों जैसे बंगाल, केरल, झारखंड, दिल्ली जैसी विपक्षी पार्टियों की राज्य सरकारों को वहां के राज्यपालों द्वारा परेशान करते, विधायी कार्यों में मनमानी करते देखते थे, लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए पंजाब में भी ऐसा ही शुरू हो गया है।
यह ताजा पत्र लिखने से पहले भी राज्यपाल प्रोहित जी राज्य के संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों में अफसरशाही और जनता से सीधे मुलाकात कर सुर्खियों में आ गए थे। बेशक इन पत्रों को लिखने का बताया गया उद्देश्य लोगों को स्वच्छ, पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का संकल्प लेना है, लेकिन पत्र के माध्यम से यह सामान्य नैतिक निर्देश देते हुए भी राज्यपाल यह कहना नहीं भूलते कि यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का संदेश है ! साफ है कि इसका मकसद कुछ और नहीं बल्कि बीजेपी का अप्रत्यक्ष प्रचार है।
बयान में कहा गया है कि राज्यपाल का पद एक संवैधानिक पद है. निश्चय ही इस पद पर जिस किसी की भी नियुक्ति हुई हो, संविधान निर्माताओं ने उससे अपेक्षा की थी कि वह अपनी व्यक्तिगत और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रण में रखे और इस संवैधानिक पद की मर्यादा का पालन करे और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर न जाए।
लेकिन भ्रष्ट और अनैतिक सतधारियों की तरह ये ‘लछमन रेखाएं’ आज के संवैधानिक पदाधिकारियों के लिए आम बात हो गई हैं. “आप” सरकार से अनेक मतभेदों के बावजूद भाकपा(माले) राज्य के प्रशासन में राज्यपाल द्वारा इस तरह के नाजायज हस्तक्षेप का पुरजोर विरोध करती है क्योंकि वह राज्य सरकार के अधिकारों, लोकतंत्र और संघीय ढांचे का समर्थन करती है।
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