28 अगस्त से 03 सितंबर: मनाया जा रहा विरोध सप्ताह
बिहार (पब्लिक फोरम)। भाकपा माले राज्य कमेटी बिहार ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा है कि भाजपाई ‘अमृत काल’ के इस दौर में दिल दहलाने वाली ख़बरों के आने का सिलसिला जारी है। आज़ादी के 75वें साल में ठीक 15 अगस्त के दिन बिल्क़ीस बानो के गुनहगारों की रिहाई और उससे दो दिन पहले 9 वर्षीय दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल की मौत ने स्पष्ट कर दिया है कि अमृत किसे हासिल है और विष किसके लिए है! एक तरफ, जहां लाल क़िले के प्राचीर सेे नारी सम्मान पर प्रधानमंत्री के प्रवचनों के खोखलेपन को बिल्क़ीस मामले ने उजागर कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ़ सवर्ण शिक्षक छैल सिंह के घड़े से पानी पीने के अपराध में इंद्र कुमार मेघवाल के कानों पर जड़ा गया जानलेवा थप्पड़, वास्तव में भारत के संविधान में निहित मूल्यों पर खुले हमले की ओर इशारा करता है।
मज़लूम दलितों, मुसलमानों महिलाओं और आम अवाम के लिए दिल्ली हुकूमत के पास विष ही विष है, जबकि अमृत के घड़े अडानी-अंबानी के लिए खोल दिए गए हैं। पूरे देश में एक ऐसा राजनीतिक माहौल बनाने की बेशर्म कोशिशें चल रही हैं, जिसमें किसी तानाशाह के अट्टहासों के बीच पूंजीवाद और मनुवाद का बेख़ौफ़ नंगा नृत्य चलता रहे, और आम अवाम इंसाफ और रोज़ी-रोटी की स्वाभाविक आकांक्षाओं को भूलकर डर के साए में सिमटी रहे।
बिल्क़ीस बानो के गुनहगारों की रिहाई की घटना ने हमारे देश के इंसाफ़-पसंद नागरिकों का माथा शर्म से झुका दिया है और उन्हें क्षोभ से भर दिया है। साल 2002 के कुख्यात गुजरात नरसंहार के दौरान, 3 मार्च को 21 साल की बिल्क़ीस और उसकी मां के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था और उसके परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। उस समय बिल्क़ीस 5 महीने की गर्भवती थी। उसकी गोद से 3 साल की बच्ची सालेहा को छीनकर हत्यारों ने उसकी आंखों के सामने पटक-पटक कर मार डाला था।।
लेकिन बेशर्मी पूर्वक गुजरात की पुलिस ने मामले को रफा दफा कर दिया। बिल्क़ीस ने हार नहीं मानी! वह जब इंसाफ़ के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंची, तब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। इसके बाद हत्यारों की ओर से उसे जान से मार देने की धमकियां मिलने लगीं। तब, 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने मुक़द्दमे को गुजरात से स्थानांतरित कर महाराष्ट्र में चलाने का आदेश दिया21 जनवरी 2008 को मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने 13 लोगों को दोषी पाया, जिनमें से 11 को बलात्कार और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। तीन साल बाद मुंबई उच्च न्यायालय ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को पीड़िता को 50 लाख मुआवजा, सरकारी नौकरी और रहने को घर देने को कहा था। पैसे तो मिल गए, लेकिन नौकरी और घर आज तक नहीं मिले।
…और, 15 अगस्त 2022 के दिन भाजपा की कृपा से इन्हें आज़ाद कर दिया गया है! इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि इन 11 बर्बर आतताइयों की रिहाई के लिए अनुशंसा करनेवाली जेल एडवाइज़री कमिटी में गुजरात के दो भाजपा विधायक भी थे, जिनमें से एक विधायक गोधरा से है। यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि इस रिहाई के बाद, विगत 20 वर्षों में 17 मर्तबा घर बदल-बदल कर जिंदगी गुज़ार रही बिल्क़ीस और उसके बचुखुचे परिवार पर क्या बीत रही होगी। ख़ौफ़ का क्या आलम होगा! ख़बर है कि हत्यारों की रिहाई के बाद बिल्क़ीस के गांव के अनेक मुस्लिम परिवार डर के मारे घर छोड़ चुके हैं।
भाजपाई ‘अमृत काल’ की एक और निहायत शर्मशार करनेवाली घटना आज़ादी के महाजश्न से ठीक दो दिन पहले यानी 13 अगस्त को हुई – इंद्र कुमार मेघवाल की हत्या! 20 जुलाई 2022 को राजस्थान के जालौर ज़िले के सुराणा गांव में आरएसएस द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़नेवाले तीसरी कक्षा के 9 वर्षीय दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल ने विद्यालय के संचालक और शिक्षक छैल सिंह के घड़े से पानी पी लिया था। इस पर शिक्षक ने इंद्र की पिटाई कर दी। छैल सिंह की पिटाई से इंद्र मेघवाल के कान और आंख में गहरी चोट आई थी।
इस घटना के बाद इंद्र के परिवार ने 23 दिनों तक अस्पताल में उसे भर्ती करवाकर इलाज करवाया। लेकिन वह ठीक नहीं हो सका। जब इंद्र की हालत नाज़ुक होने लगी तो उदयपुर के अस्पताल से उसे अहमदाबाद ले जाया गया, जहां दो दिन भर्ती रहने के बाद इलाज के दौरान ही 13 अगस्त 2022 को उसकी मौत हो गई।
साथियो, इन दोनों घटनाओं से जुड़े हुए तथ्य सूरज की रोशनी की तरह साफ हैं। लेकिन, संघी-भाजपाई गिरोह इसके लिए भी ‘तर्क’ पेश कर रहे हैं। बिल्क़ीस मामले में वे कहते हैं कि, बलात्कारी-हत्यारे चूंकि संस्कारी ब्राह्मण थे, इसलिए उन्हें रिहा कर देना उचित था !! वहीं, इंद्र कुमार मेघवाल की हत्या पर ही सवाल उठाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि उसके कान में पहले से घाव था। इसलिए वह शिक्षक के थप्पड़ से नहीं, कान के घाव से मर गया! याद कीजिए, कोरोना के समय जब लाखों लोग तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे थे, तब भी ऐसे ही ऊटपटांग तर्क दिए जा रहे थे।
ये दोनों ही घटनाएं किसी भी इंसाफ-पसंद समाज को शर्मशार करने के लिए काफी हैं। क्या पानी अब सर के ऊपर नहीं पहुंच गया है? तो आइए, आतताई भाजपा राज का विरोध करें और बिल्क़ीस बानो और इन्द्र कुमार मेघवाल के न्याय के लिए आवाज बुलंद करें! बिल्क़ीस बानो के बलात्कारियों–हत्यारों की सजा माफी वापस लेना होगा और इंद्र कुमार मेघवाल के हत्यारे शिक्षक को कड़ी सजा देनी होगी।
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