जंगल की आग: कारण, असर और हमारी सामूहिक जिम्मेदारी
हाल के दिनों में देशभर के जंगलों में बढ़ती आग की घटनाएं पर्यावरणविदों और आदिवासियों के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं। केवल इस साल, उत्तराखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के जंगलों में 500+ आग की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनसे 10,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र नष्ट हुआ है। यह आग न सिर्फ पेड़-पौधों, बल्कि लाखों जीवों के जीवन और मानव अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है।
क्यों जल रहे हैं जंगल? मानवीय लापरवाही या प्राकृतिक आपदा?
वन विशेषज्ञ डॉ. राजेश पांडेय के अनुसार, “90% जंगल की आग मानवीय गतिविधियों का नतीजा है। तेंदू पत्ता इकट्ठा करने के लिए जानबूझकर लगाई गई आग, सिगरेट के अवशेष या शिकारियों की लापरवाही—ये सभी विनाश की वजह बनते हैं।” वहीं, ग्रामीण समुदायों का दावा है कि सरकारी नीतियाँ और वन प्रबंधन की कमी भी इस संकट को बढ़ा रही हैं।
जलते जंगल, बुझती जिंदगियां: एक आदिवासी की आपबीती
छत्तीसगढ़ के बस्तर की 45 वर्षीया शांति मरकाम कहती हैं, “जंगल हमारी मां है। आग लगने पर महुआ के पेड़ जल जाते हैं, जिनसे हमारा सालभर का राशन और दवाइयां मिलती थीं। अब न पेड़ बचे, न जानवर।” शांति जैसे हजारों आदिवासी अपनी आजीविका और संस्कृति खोने के कगार पर हैं।
मिट्टी से लेकर आसमान तक: आग का घातक प्रभाव
– मिट्टी की मौत: आग के बाद मिट्टी की उर्वरता 3-4 साल तक नहीं लौटती।
– जलवायु संकट: जंगलों के जलने से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को तेज करता है।
– जैव विविधता का नुकसान: हर साल सैकड़ों दुर्लभ प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।
क्या है समाधान? सरकार, समाज और हमारी भूमिका
1. सामुदायिक भागीदारी: आदिवासियों को वन प्रबंधन में शामिल करना।
2. आधुनिक तकनीक: सैटेलाइट और ड्रोन से आग की निगरानी।
3. जागरूकता: स्कूलों और गाँवों में “नो फायर” अभियान चलाना।
4. कानूनी कार्रवाई: जानबूझकर आग लगाने वालों के खिलाफ सख्त सजा।
प्रकृति से वादा: “हम बचाएंगे तुम्हें!”
जंगल बचाने की मुहिम में जुटे पर्यावरण कार्यकर्ता राहुल मिश्रा कहते हैं, “हर व्यक्ति एक पेड़ लगाए, उसे बचाए। यही हमारी भावी पीढ़ी को सुरक्षित करने का रास्ता है।”
जंगल की आग सिर्फ पेड़ों का नहीं, हमारे भविष्य का सवाल है। यदि आज नहीं जागे, तो कल के लिए शायद बहुत देर हो जाएगी। प्रकृति को बचाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है—आइए, इसे निभाएं।
– दिलेश उईके
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