कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित वेदांता बालको की कंपनी कॉलोनी में रहने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों के परिवारों ने कंपनी के अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए थाना प्रभारी के समक्ष प्राथमिकी ( FIR) दर्ज कराने की मांग की है। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि क्वार्टर खाली कराने के नाम पर उनके साथ अभद्र व्यवहार, धमकी और मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है।
यह मामला उन परिवारों की व्यथा को सामने लाता है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन कंपनी को समर्पित किया और अब अपने ही घरों में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
क्या हैं आरोप और किन पर?
शिकायत में चार अधिकारियों और कंपनी के सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोपित व्यक्तियों में धनंजय मिश्रा, सुमंत सिंह, बोधादित्य चंद्र और अमृतलाल निषाद शामिल हैं, जो बालको नगर प्रशासन विभाग से जुड़े बताए जाते हैं।
शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि ये अधिकारी बार-बार उनके घरों पर आकर नोटिस थमाते हैं और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए धमकी देते हैं। “कब घर खाली करोगे?”, “खुद करोगे या हम सामान फेंक कर खाली करवाएं?” बिजली पानी और शौचालय काट देने के बाद कितना मजा आ रहा है? शौच के लिए कहां जाते हो?” और “तुम लोगों का तो और भी बुरा हाल करेंगे” जैसी धमकी भरी अभद्र व अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं।
महिलाओं और बच्चों के साथ कथित दुर्व्यवहार
शिकायत का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि घर के पुरुष सदस्यों की अनुपस्थिति में भी ये अधिकारी जबरन घर में प्रवेश करते हैं और महिलाओं तथा बच्चों को डराते-धमकाते हैं। परिवारों का कहना है कि इस व्यवहार से उनके घरों में भय और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है।
शिकायतकर्ताओं में शामिल महिला प्रतिनिधियों – नीलम शर्मा, आशा बंजारे, रोशनी महिलांगे और हेमलता सिंगारे ने बताया कि मूलभूत सुविधाओं जैसे पानी, बिजली और शौचालय को फिर से बंद करने की धमकी दी जा रही है। यह स्थिति उन परिवारों के लिए अत्यंत कष्टकारी है जिनमें बुजुर्ग, महिलाएं और छोटे बच्चे रहते हैं।

सेवानिवृत्त कर्मचारियों का संघर्ष
वेदांता बालको के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के परिवार वर्षों से कंपनी द्वारा आवंटित आवासीय क्वार्टरों में रह रहे हैं। इन कर्मचारियों ने अपनी सेवा के दौरान कंपनी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रिटायरमेंट के बाद, उन्हें अपने पेंशन, अंतिम देय भुगतान की राशि मिलने की उम्मीद थी। जो कि बहुतों को अभी तक दिया नहीं गया। सेवानिवृत कर्मचारियों के लाखों रुपए की राशि कंपनी ने रोक कर रखा है। नियमानुसार बालको चिकित्सालय से उन्हें निशुल्क चिकित्सा सुविधा मिलने की उम्मीद थी जो कि बंद कर दिया गया है। सेवानिवृत्त परिवार को इस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
बालको बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक बी.एल. नेताम, अध्यक्ष बुद्धेश्वर चौहान और सचिव सुनील सुना के नेतृत्व में सैकड़ों परिवारों ने एकजुट होकर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है। उनका कहना है कि क्वार्टर खाली कराने के लिए भी एक मानवीय और कानूनी प्रक्रिया होनी चाहिए, न कि धमकी और उत्पीड़न का सहारा लिया जाए।
कानूनी पहलू और मांगें
शिकायत में भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की कई धाराओं का हवाला दिया गया है, जिनमें धारा 351 (आपराधिक बल प्रयोग), धारा 352 (हमला), धारा 308 (जबरन घर में घुसना), धारा 356 (मानहानि), धारा 351(2) (महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक बल) और धारा 78 (धमकी देना) शामिल हैं।
शिकायतकर्ताओं ने थाना प्रभारी से निम्नलिखित मांगें की हैं:
– आरोपियों के विरुद्ध तत्काल प्राथमिकी दर्ज की जाए
– उचित कानूनी कार्रवाई की जाए
– सेवानिवृत्त कर्मचारियों के परिवारों के आवास अधिकार, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
– भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए आदेश जारी किए जाएं।
शिकायत की प्रतिलिपि कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, सहायक श्रम आयुक्त और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को भी भेजी गई है।

कॉर्पोरेट जिम्मेदारी (CSR) का सवाल
यह मामला कॉर्पोरेट जिम्मेदारी और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकारों के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। वेदांता बालको जैसी बड़ी कंपनी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पूर्व कर्मचारियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करे और उनकी समस्याओं का संवेदनशील तरीके से समाधान करे।
विशेषज्ञों का कहना है कि कर्मचारी आवास नीतियां स्पष्ट और न्यायसंगत होनी चाहिए। यदि किसी कारणवश क्वार्टर खाली कराना आवश्यक है, तो इसके लिए पर्याप्त समय, वैकल्पिक व्यवस्था और उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए। लेकिन सेवानिवृत कर्मचारियों के अंतिम भुगतान की राशि को रोका जाना तो एक गंभीर जांच का विषय है।
सामाजिक संवेदनशीलता की जरूरत
इस घटना में सबसे दुखद पहलू यह है कि जिन परिवारों ने दशकों तक कंपनी की सेवा की, उन्हें अब अपमान और असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। बुजुर्ग माता-पिता, महिलाएं और बच्चे मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। यह स्थिति न केवल मानवीय दृष्टि से गलत है, बल्कि कानूनी रूप से भी आपत्तिजनक है।

आगे की राह
अब यह देखना होगा कि पुलिस प्रशासन इस शिकायत पर क्या कार्रवाई करता है। कोरबा जिला प्रशासन और वेदांता बालको प्रबंधन से भी अपेक्षा की जाती है कि वे इस मामले को गंभीरता से लें और प्रभावित परिवारों के साथ संवाद स्थापित करें।
यह मामला केवल आवास का नहीं है, बल्कि मानवीय गरिमा, श्रमिक अधिकारों और कॉर्पोरेट नैतिकता का भी है। जिन हाथों ने कंपनी को बनाया, उन्हें सम्मान देना न केवल नैतिक कर्तव्य है, बल्कि सामाजिक न्याय की भी मांग है।
सैकड़ों परिवारों की यह गुहार अब न्याय व्यवस्था और समाज की संवेदनशीलता की परीक्षा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी पक्ष मिलकर इस समस्या का मानवीय और न्यायसंगत समाधान खोजेंगे। यह खबर कोरबा जिले के बालको नगर थाना में दी गई शिकायत के आधार पर तैयार की गई है। वेदांता बालको प्रबंधन की ओर से अभी तक कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।





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