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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
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ईपीएस-95 पेंशन: बुजुर्गों के सम्मान और अधिकार के लिए संघर्ष की आवाज

भिलाई नगर (पब्लिक फोरम)। ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) दुर्ग द्वारा कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस)-95 पर चर्चा के लिए एक विशेष बैठक का आयोजन 23 नवंबर को सेक्टर-2, भिलाई, छत्तीसगढ़ में किया गया। इस बैठक में देशभर के पेंशनभोगियों की चिंताओं और मांगों को उठाते हुए एकजुटता का आह्वान किया गया।

इस बैठक के मुख्य अतिथि ऑल इंडिया कोऑर्डिनेशन कमिटी ऑफ ईपीएस-95 पेंशनर्स एसोसिएशन के नेता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता उदय भट्ट थे। उन्होंने देशभर में ईपीएस-95 पेंशन को लेकर चल रहे आंदोलनों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की विस्तार से जानकारी दी।
उदय भट्ट ने कहा, “पेंशन मजदूरों का अधिकार है, जिसे उन्होंने कठिन संघर्षों के बाद अर्जित किया है। लेकिन सरकार इस अधिकार को खत्म करने का प्रयास कर रही है।”

उन्होंने बताया कि वर्तमान में ईपीएस-95 के तहत लगभग 75 लाख लोगों को पेंशन मिलती है, लेकिन इसका न्यूनतम ₹1000 होना मजदूरों के साथ घोर अन्याय है। उन्होंने इसे एक गंभीर समस्या बताते हुए कहा, “सरकार मुनाफे के लिए पेंशन योजना चला रही है, जबकि यह योजना बुजुर्गों के सम्मान और सुरक्षा का साधन होनी चाहिए।”
भट्ट ने सरकार से न्यूनतम ₹9000 मासिक पेंशन और महंगाई भत्ता (डीए) की मांग की और इसे हर बुजुर्ग के सम्मानजनक जीवन का अधिकार बताया।

सभी से आंदोलन को मजबूत करने की अपील
उदय भट्ट ने सभी पेंशनभोगियों और श्रमिक संगठनों से अपील की, “पेंशन बुजुर्गों का सहारा है। इसे बचाने और मजबूत करने के लिए हमें संगठित होकर संघर्ष करना होगा। यह केवल पेंशन का मुद्दा नहीं, बल्कि हमारे बुजुर्गों के सम्मान और जीवन के अधिकार की लड़ाई है।”

बैठक में कई अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी विचार व्यक्त किए। मुक्तानंद साहू, बीएम सिंह, और राजेंद्र परगनिहा ने पेंशन के मुद्दों और संघर्ष के तरीकों पर चर्चा की।
बैठक का संचालन बृजेंद्र तिवारी ने किया और उन्होंने श्रमिकों के हित में सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।

इस बैठक ने एक बार फिर से यह स्पष्ट किया कि ईपीएस-95 पेंशन योजना केवल आर्थिक सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और मानवता से जुड़ा एक अहम पहलू है।
यह आंदोलन न केवल बुजुर्गों की जिंदगी बेहतर बनाने का प्रयास है, बल्कि उनके अधिकारों और गरिमा की रक्षा का वादा भी है। अब वक्त आ गया है कि समाज इस मुद्दे पर एकजुट होकर आवाज उठाए।

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