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सोमवार, जुलाई 7, 2025
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बोधगया की महाबोधि महाविहार को अबौद्धों के हस्तक्षेप से बचाने की भावुक अपील: राष्ट्रपति को ज्ञापन!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। बोधगया बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र और विश्व धरोहर मानी जाने वाली महाबोधि महाविहार, बोधगया, एक बार फिर चर्चा में है। बौद्ध समुदाय ने भारत के राष्ट्रपति से भावुक और दृढ़ अपील की है कि इस ऐतिहासिक स्थल के प्रबंधन को अबौद्धों के हस्तक्षेप से मुक्त कराया जाए और इसे पूरी तरह बौद्ध प्रबंधन समिति या भिक्षु संघ के हवाले किया जाए। यह मांग न सिर्फ धार्मिक भावनाओं से जुड़ी है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों और सांस्कृतिक विरासत को बचाने की एक गहरी पुकार भी है।

सबसे पहले क्यों उठी यह मांग?

महाबोधि महाविहार वह पवित्र स्थल है, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के बौद्ध अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र है। हर साल लाखों लोग यहां आते हैं, अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं और इस अद्वितीय विरासत से प्रेरणा लेते हैं। लेकिन बौद्ध समुदाय का कहना है कि इस पवित्र स्थल के प्रबंधन में अबौद्धों का हस्तक्षेप उनकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है। उनका मानना है कि जिस तरह हर धर्म के स्थलों का प्रबंधन उनके अपने समुदाय के पास होता है, वैसे ही महाबोधि महाविहार भी बौद्धों के ही नियंत्रण में होना चाहिए।

क्या कहता है संविधान?

भारत का संविधान हर नागरिक को अपनी आस्था और धर्म के अनुसार पूजा करने की आजादी देता है। चाहे मंदिर हो, मस्जिद हो, गुरुद्वारा हो या चर्च, हर धार्मिक स्थल का प्रबंधन उस धर्म को मानने वाले समुदाय के पास होता है। लेकिन बौद्ध अनुयायियों का दावा है कि महाबोधि महाविहार में ऐसा नहीं हो रहा। उनका कहना है कि अबौद्धों का दखल उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहा है, जो संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।

भावनाओं का ज्वार और तर्क की मजबूती

यह मांग सिर्फ एक कानूनी या प्रशासनिक मुद्दा नहीं है, बल्कि लाखों बौद्ध अनुयायियों की भावनाओं से जुड़ा सवाल है। मूलनिवासी संघ छत्तीसगढ़ के जिला अध्यक्ष योगेश कुमार साहू, तेरस राम और सुरेंद्र कुमार ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, “महाबोधि महाविहार हमारी आस्था और गौरव का प्रतीक है। इसे बौद्ध समुदाय के हाथों में सौंपना न सिर्फ न्यायसंगत होगा, बल्कि हमारी धार्मिक पहचान को भी मजबूती देगा।” उनकी यह अपील दिल को छूने वाली है, क्योंकि यह केवल प्रबंधन का मामला नहीं, बल्कि एक समुदाय की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की लड़ाई है।

विश्व पटल पर भारत की शान

महाबोधि महाविहार को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है। यह भारत के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा है और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रतीक है। यहां आने वाले श्रद्धालु न सिर्फ भारत से, बल्कि थाईलैंड, जापान, श्रीलंका जैसे देशों से भी होते हैं। ऐसे में इस स्थल का प्रबंधन अगर बौद्ध समुदाय के पास होगा, तो यह न केवल उनकी भावनाओं का सम्मान होगा, बल्कि विश्व में भारत की छवि को और मजबूत करेगा।

क्या है विवाद का मूल?

हालांकि संविधान हर नागरिक को किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने की आजादी देता है, लेकिन प्रबंधन का अधिकार उस धर्म के अनुयायियों के पास ही होता है। बौद्ध समुदाय का कहना है कि महाबोधि महाविहार में अबौद्धों की मौजूदगी उनकी परंपराओं और मान्यताओं के लिए खतरा है। वे चाहते हैं कि इसे पूरी तरह बौद्ध भिक्षु संघ या प्रबंधन समिति के हवाले किया जाए, ताकि इसकी पवित्रता और गरिमा बनी रहे।

बौद्ध समुदाय ने राष्ट्रपति से गुहार लगाई है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें। उनका कहना है कि राष्ट्रपति संवैधानिक व्यवस्था के प्रहरी हैं और उनकी जिम्मेदारी है कि हर समुदाय के अधिकारों की रक्षा हो। यह अपील न सिर्फ भावनात्मक है, बल्कि तर्क और संवैधानिक मूल्यों पर भी आधारित है।

अब आगे क्या?

यह मामला अब राष्ट्रपति भवन के सामने है। बौद्ध अनुयायी उम्मीद भरी नजरों से फैसले का इंतजार कर रहे हैं। क्या महाबोधि महाविहार को अबौद्धों के हस्तक्षेप से मुक्त कराया जाएगा? क्या यह पवित्र स्थल पूरी तरह बौद्ध समुदाय के हाथों में सौंपा जाएगा? यह सवाल न सिर्फ बौद्धों के लिए, बल्कि देश की धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी अहम है।

इस मांग के पीछे एक समुदाय की आस्था, उनकी भावनाएं और संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई छिपी है। अब देखना यह है कि भारत की सर्वोच्च संवैधानिक कुर्सी इस पर क्या फैसला लेती है। शीघ्र न्याय की आस में बौद्ध समुदाय अपनी नजरें राष्ट्रपति भवन पर टिकाए हुए है।

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