शनिवार, नवम्बर 9, 2024
होमआसपास-प्रदेशलोक अदालत में जीवन की राह, बुजुर्गों को मिला सहारा: सुलझे 9096...

लोक अदालत में जीवन की राह, बुजुर्गों को मिला सहारा: सुलझे 9096 प्रकरण!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। 21 सितंबर 2024 को तृतीय हाईब्रिड नेशनल लोक अदालत का आयोजन हुआ, जिसमें 9096 प्रकरणों का निपटारा किया गया। लोक अदालत का उद्देश्य न सिर्फ मामलों को सुलझाना है, बल्कि समाज के कमजोर और असहाय वर्गों को न्याय दिलाना भी है। इस विशेष अदालत में कई ऐसे मामले सामने आए, जहां बुजुर्गों को न्याय मिला और उनके जीवन की कठिनाइयों को हल किया गया। आइए, जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण मामलों की कहानी, जो लोक अदालत की सफलता का प्रमाण हैं।

मां-बेटे के बीच सुलझा विवाद, वृद्ध महिला को मिला संबल
बुजुर्गों के लिए वृद्धावस्था का सहारा अक्सर उनके बच्चे होते हैं, परंतु कई बार स्थिति उलट जाती है। कोरबा के जिला न्यायालय में ऐसा ही एक मामला आया, जहां एक वृद्ध मां ने अपने बेटे के खिलाफ गुजारा भत्ता का मामला दायर किया था। पति की मृत्यु के बाद, महिला ने अपने बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दिलवाई, लेकिन नौकरी पाने के बाद बेटा बदल गया। वह रोज शराब पीकर अपनी मां को गाली-गलौज और मारपीट करने लगा। हालात इतने बिगड़ गए कि महिला को घर छोड़कर अपनी बहन के यहां शरण लेनी पड़ी।

न्यायालय में गुजारा भत्ता की मांग करते हुए महिला ने बताया कि बेटा न केवल उसे आर्थिक रूप से प्रताड़ित कर रहा था, बल्कि इलाज के लिए मेडिकल कार्ड का भी उपयोग नहीं करने दे रहा था। हाईब्रिड नेशनल लोक अदालत के माध्यम से इस मामले को सुलझाया गया। अदालत में बेटा बिना किसी दबाव के हर महीने 15,000 रुपये अपनी मां के खाते में जमा कराने के लिए सहमत हुआ। इस समझौते ने न सिर्फ बुजुर्ग महिला को एक नया सहारा दिया, बल्कि उसे सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार भी वापस दिलाया।

एक और वृद्ध महिला को मिला न्याय, लोक अदालत बनी उम्मीद
कोल इंडिया की स्पेशल महिला वालंटियर स्कीम 2014 के तहत एक और वृद्ध महिला ने अपने बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दिलवाई थी। इस नियुक्ति के तहत बेटे ने अपने वेतन का 50% हिस्सा मां के भरण-पोषण के लिए देने का वादा किया था। लेकिन शादी के बाद, बेटा अपनी मां को पैसे देने से इंकार कर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना करने लगा। वृद्ध महिला को मजबूरी में रिश्तेदारों के साथ रहना पड़ा।
इस मामले में भी हाईब्रिड नेशनल लोक अदालत ने मध्यस्थता की और दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाया। बेटे ने अदालत में सहमति जताई कि वह हर महीने 30,000 रुपये अपनी मां के गुजारा भत्ते के रूप में देगा। यह निर्णय बुजुर्ग महिला के लिए एक बड़ी राहत बनकर आया, जिससे उसका बुढ़ापा सुरक्षित हो गया।

10 साल पुराना धोखाधड़ी का मामला हुआ निपटारा
कटघोरा के न्यायालय में एक और महत्वपूर्ण प्रकरण का निपटारा किया गया, जो पिछले 10 वर्षों से लंबित था। वर्ष 2014 में एक व्यक्ति ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि कुछ लोगों ने उसे नकली सोने की बट्टियां असली बताकर ठग लिया था। आरोपीगण ने पीड़ित से लगभग 5 लाख रुपये हड़प लिए थे।

इस मामले में अभियुक्तों और पीड़ित के बीच लोक अदालत में समझौता हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने बिना किसी दबाव के राजीनामा कर मामले का निपटारा किया।

श्रमिकों और कंपनी के बीच हुआ समझौता, वर्ष 2012 से लंबित मामला सुलझा
एक और महत्वपूर्ण मामला श्रमिक कानून से संबंधित था, जो वर्ष 2012 से लंबित था। इस मामले में कंपनी और श्रमिकों के बीच विवाद चल रहा था। नेशनल लोक अदालत ने दोनों पक्षों के बीच समझौता करवाया और श्रमिकों को उनका हक दिलवाया।
लोक अदालतें समाज के असहाय और कमजोर वर्गों के लिए न्याय की एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो रही हैं। खासकर ऐसे मामलों में, जहां परिवार के अंदर आर्थिक और भावनात्मक शोषण होता है। यहां न सिर्फ मामलों का त्वरित निपटारा होता है, बल्कि इसे पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ सुलझाया जाता है।

उपरोक्त मामले यह दर्शाते हैं कि लोक अदालत न केवल विवादों को सुलझाने का मंच है, बल्कि यह असहाय लोगों के लिए एक उम्मीद भी बनकर उभर रही है। इसमें न्यायिक प्रक्रिया को सरल और मानवीय बनाया गया है, जहां कोई भी व्यक्ति बिना किसी डर के अपना पक्ष रख सकता है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments