रांची (पब्लिक फोरम)। झारखंड की राजनीतिक जमीन पर एक नया भूकंप आने वाला है। वामपंथी खेमे में दो प्रमुख दल – मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन – एक होने की कगार पर हैं। यह कदम न केवल राज्य बल्कि देश की वामपंथी राजनीति में एक नया अध्याय लिख सकता है।
मासस ने भाकपा माले में विलय का प्रस्ताव रखा है, जिस पर दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व ने गंभीर विचार-विमर्श किया है। यह निर्णय मासस की केंद्रीय कमेटी और भाकपा माले की पोलित ब्यूरो की आगामी बैठक में अंतिम रूप लेगा।
इस ऐतिहासिक कदम के पीछे क्या है कारण?
1. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य: देश कॉर्पोरेट लूट, अति-केंद्रीकरण और सांस्कृतिक मूल्यों पर हमलों से जूझ रहा है। ऐसे में, यह एकजुटता फासीवाद विरोधी आंदोलन को नई ऊर्जा प्रदान करेगी।
2. समान विचारधारा: दोनों दल एक ही समय में उभरे और समान सिद्धांतों पर काम करते रहे हैं।
3. ऐतिहासिक योगदान: मासस ने कॉमरेड एके राय के नेतृत्व में कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण के लिए संघर्ष किया। वहीं, भाकपा माले ने कॉमरेड चारु मजूमदार और विनोद मिश्र के नेतृत्व में मजदूरों, किसानों और वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
4. चुनावी रणनीति: आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले यह विलय वामपंथी ताकतों को मजबूती प्रदान करेगा। विशेषकर धनबाद के निरसा क्षेत्र में, जहां मासस का प्रभाव उल्लेखनीय है।
इस विलय के क्या होंगे परिणाम?
1. मजबूत वामपंथी मोर्चा: दोनों दलों के एकजुट होने से वामपंथी विचारधारा और अधिक सशक्त होगी।
2. श्रमिक आंदोलन को बल: निजीकरण विरोधी और रोजगार के लिए चल रहे आंदोलनों को नई दिशा मिलेगी।
3. राजनीतिक समीकरण में बदलाव: इंडिया गठबंधन में शामिल भाकपा माले की सौदेबाजी की स्थिति मजबूत होगी।
4. सामाजिक न्याय का नया अध्याय: दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की लड़ाई और तेज होगी।
यह विलय महज दो दलों का मिलन नहीं, बल्कि एक नए युग की शुरुआत हो सकता है। यह झारखंड की राजनीति में एक नया मोड़ लाएगा और वामपंथी आंदोलन को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह एकता किस प्रकार राज्य और देश की राजनीति को प्रभावित करती है।
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