शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024
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मनरेगा के आबंटन में लगातार कटौती से ग्रामीण क्षेत्रों में विकराल रूप ले रही बेरोजगारी: नंदी

कोरबा (पब्लिक फोरम)। केंद्र की सरकार द्वारा मनरेगा के आबंटन राशि में लगातार किए जा रहे कटौती के चलते ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ रही है और ग्रामीण जनता को इस योजना के तहत पर्याप्त रोजगार नही मिल रही है। उक्त बातें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व राज्य समिति सदस्य सुखरंजन नंदी ने आज एक प्रेस बयान जारी कर बताया।
उन्होंने कहा कि वामपंथी पार्टियों के दबाव में सन 2006 में तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने ग्रामीण परिवारों को वर्ष में 100 दिनों के लिए रोजगार की गारंटी देने के उद्देश्य से यह कानून को बनाया था। वर्तमान केन्द्र सरकार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि इस मद में लगातार आबंटन राशि में कटौती कर इस योजना को ही खत्म कर देने पर तुली हुई है।
श्री नंदी ने कहा कि इस मद पर जहां वर्ष 2020-21 में 01 लाख, 11000 करोड़ रुपए आवंटित किया गया था। वहीं वर्ष 2023-24 में सिर्फ 60 हजार करोड़ रूपये ही आबंटित किया गया है। पिछले वर्ष के अपेक्षा इस वर्ष में 32 प्रतिशत की कटौती की गई है। जहां पिछले वर्ष इस मद पर 89 हजार करोड़ रुपए आवंटित था वही इस वर्ष 60 हजार करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। जबकि महंगाई और मजदूरी दर में हुई वृद्धि के मद्देनजर आबंटन राशि में बढ़ोतरी करना आवश्यक था।
उन्होंने कहा कि आज देश में भयानक बेरोजगारी की मार युवाओं को झेलना पड़ रहा है। देश में बेरोजगारी दर जहां 8.3 प्रतिशत है, वहीं मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों को रोजगार देकर बेरोजगारी की गहराती हुई संकट से कुछ राहत दिया जा सकता था।

उन्होंने आगे कहा कि इस मद पर आबंटन राशि की कटौती की मार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण परिवारों को भी झेलना पड़ रहा है। मनरेगा के तहत प्रदेश में ग्रामीण परिवार की औसतन रोजगार में कमी आई है। प्रदेश में जहां इस योजना के तहत वर्ष 2021 में औसतन प्रति परिवार को 60.85 दिन रोजगार उपलब्ध हुआ करता था, वहीं पर वर्ष 2022 में प्रति परिवार को औसतन 51.4 दिन ही रोजगार प्राप्त हुए है।उन्होंने देश में बढ़ती हुई बेरोजगारी पर अंकुश लगाने में मनरेगा को और व्यापक बनाने पर जोर दिया। ताकि ग्रामीण मजदूरों जो रोजगार के तलाश में शहर की और पलायन करते हैं। उन पर रोक लगाई जा सके।

उन्होंने देश में बढ़ती हुई बेरोजगारी पर अंकुश लगाने में मनरेगा को और व्यापक बनाने पर जोर दिया। ताकि ग्रामीण मजदूरों जो रोजगार के तलाश में शहर की और पलायन करते हैं। उन पर रोक लगाई जा सके।

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