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रोजगार के बिना कोयला नहीं! भूविस्थापितों का कोयला मंत्री को काला झंडा दिखाने का ऐलान

कोरबा से ग्राउंड रिपोर्ट। इंसाफ की पुकार, रोजगार की लड़ाई

कोरबा (पब्लिक फोरम) । कोरबा के गेवरा क्षेत्र में इस बार कोयला नहीं, बल्कि इंसाफ की चिंगारी जल रही है। कोयला मंत्री के प्रस्तावित दौरे से पहले ही गुस्से में उबलते भूविस्थापितों ने दो टूक कह दिया है – “रोजगार दो, वरना वापस जाओ!”

छत्तीसगढ़ किसान सभा और भूविस्थापित रोजगार एकता संघ के नेतृत्व में भूविस्थापितों ने साफ कर दिया है कि वे इस बार चुप नहीं बैठेंगे। गेवरा में एसईसीएल (SECL) के सीएमडी और बोर्ड मेंबर्स के दौरे का तीखा विरोध किया जाएगा। कोयला मंत्री के आगमन पर काले झंडे दिखाकर “गो बैक” के नारे लगाने की तैयारियां जोरों पर हैं।

क्यों उबल रहा है भूविस्थापितों का गुस्सा?

प्रदेश किसान सभा के संयुक्त सचिव प्रशांत झा ने बताया कि पिछले 1255 दिनों से कुसमुंडा क्षेत्र में भूविस्थापित रोजगार एकता संघ द्वारा अनिश्चितकालीन धरना दिया जा रहा है। लेकिन, न तो एसईसीएल के अधिकारी और न ही कोयला मंत्री ने अब तक उनकी समस्याओं को गंभीरता से सुना है।

विस्थापितों का कहना है कि सरकार और एसईसीएल केवल कोयला उत्पादन बढ़ाने की बात करते हैं, लेकिन जिनकी जमीनों पर कोयला निकलता है, उन्हें रोजगार तक नहीं मिलता। वे वर्षों से सिर्फ आश्वासन सुन रहे हैं – हकीकत में कुछ नहीं बदला।

“रोजगार दिए बिना कोयला उत्पादन का सपना अधूरा रहेगा”

रेशम यादव, दामोदर श्याम, रघु, और सुमेंद्र सिंह जैसे संघर्षरत भूविस्थापित नेताओं ने दो टूक कहा कि जब तक उन्हें नौकरी और पुनर्वास नहीं मिलता, तब तक वे किसी भी अधिकारी के दौरे को सफल नहीं होने देंगे।

उन्होंने कहा –

“हमने अपनी जमीनें देश को दी हैं, अब देश हमें रोजगार देने से पीछे क्यों हट रहा है? क्या हमारी कुर्बानी की कोई कीमत नहीं?”

एसईसीएल की नीतियों पर गंभीर सवाल

भूविस्थापितों का यह भी आरोप है कि एसईसीएल मुनाफे की अंधी दौड़ में ग्रामीणों की जिंदगी को नजरअंदाज कर रहा है। जिन खेतों से कभी फसल उगती थी, अब वहां धूल और धुआं है। लेकिन इन भूविस्थापित परिवारों को अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं मिला।

चार दशकों से वे रोजगार के लिए चक्कर काट रहे हैं, लेकिन हर बार किसी न किसी नियम का हवाला देकर उन्हें टाल दिया जाता है। इस अन्याय के खिलाफ अब आवाज बुलंद हो रही है।

केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों पर आक्रोश

विस्थापितों का मानना है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही उनकी समस्याओं से मुंह मोड़ रही हैं। न कोई स्थायी पुनर्वास नीति, न ही रोजगार का कोई स्पष्ट रोडमैप।

इसलिए अब उन्होंने तय कर लिया है कि वे शांत नहीं बैठेंगे। इस बार कोयला मंत्री और एसईसीएल के उच्चाधिकारियों के सामने सच का आईना दिखाया जाएगा – काले झंडों और नारों के साथ।

विकास हो, लेकिन इंसानियत के साथ

कोरबा के गेवरा में सिर्फ कोयले की खुदाई नहीं हो रही, यहां इंसाफ की भी तलाश चल रही है।
भूविस्थापितों की यह लड़ाई केवल रोजगार की नहीं है – यह सम्मान, हक और भविष्य की लड़ाई है।
जब तक हर विस्थापित को न्याय नहीं मिलेगा, तब तक कोरबा की धरती पर विरोध की आवाजें गूंजती रहेंगी।

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