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सोमवार, जुलाई 28, 2025
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आदिवासी किसान से मारपीट मामले में भाजपा नेत्री ज्योति महंत पर FIR की मांग: विधायक फूलसिंह राठिया ने SP को भेजा पत्र

कोरबा, छत्तीसगढ़ (पब्लिक फोरम)। कोरबा जिले के बांकी मोंगरा थाना परिसर में भाजपा नेत्री ज्योति महंत के द्वारा आदिवासी किसान बलवान सिंह कंवर के साथ कथित मारपीट और अभद्र व्यवहार के मामले में विवाद गहराता जा रहा है। रामपुर विधायक फूलसिंह राठिया ने इस गंभीर घटना को लेकर पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर तत्काल FIR दर्ज करने की मांग की है।

घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें थाना परिसर में एक महिला द्वारा किसान की पिटाई के दृश्य दिखाई दे रहे हैं। यह घटना एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में हुई है, जहां स्थानीय समुदाय में गहरी पीड़ा और आक्रोश व्याप्त है।

विधायक राठिया के अनुसार, घटना तब हुई जब थाना परिसर में पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में ही आदिवासी किसान के साथ अभद्र व्यवहार, मारपीट और जान से मारने की धमकी दी गई। यह घटना न केवल व्यक्तिगत अपराध है, बल्कि आदिवासी समुदाय की गरिमा पर भी प्रहार है।

विधायक फूलसिंह राठिया का आक्रोशपूर्ण बयान
रामपुर सीट से निर्वाचित कांग्रेसी विधायक फूलसिंह राठिया ने अपने पत्र में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि वे इस घटना से गहरी पीड़ा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं भी एक आदिवासी विधायक हूं और इस घटना से मुझे बहुत पीड़ा पहुंची है।”

राठिया ने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि पूर्व में नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने विधानसभा सदन में कोरबा जिला पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न लगाए थे। उनका आरोप है कि यह घटना साबित करती है कि भाजपा नेताओं को विष्णु देव साय सरकार और जिला प्रशासन से विशेष अधिकार प्राप्त हैं।

प्रशासनिक लापरवाही और न्याय की मांग
इस मामले में सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि घटना थाना परिसर में हुई, जहां पुलिस प्रशासन की उपस्थिति के बावजूद एक आदिवासी नागरिक के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया गया। यह प्रशासनिक संवेदनहीनता और कानून व्यवस्था की गंभीर विफलता को दर्शाता है।

विधायक राठिया का स्पष्ट आरोप है कि “भाजपा नेत्री ज्योति महंत को न शासन का डर है और न ही प्रशासन का।” यह टिप्पणी सत्ताधारी दल के नेताओं की मनमानी और कानून के ऊपर अपने आप को समझने की प्रवृत्ति को उजागर करती है।

आदिवासी अधिकारों का सवाल
कोरबा जिला छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, जहां स्थानीय समुदाय की सामाजिक और राजनीतिक भागीदारी का विशेष महत्व है। इस घटना ने आदिवासी समुदाय में न्याय और सम्मान के सवालों को और भी तीखा बना दिया है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि यह घटना केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय और आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा का मामला है। आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि इस घटना को गंभीरता से ले रहे हैं और पूर्ण न्याय की मांग कर रहे हैं।

यह घटना छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। विपक्षी कांग्रेस के नेता इसे सत्ताधारी भाजपा की तानाशाही प्रवृत्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। वहीं, यह मामला आदिवासी वोट बैंक की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

इस घटना के बाद स्थानीय राजनीतिक समीकरण बदलने की संभावना है, विशेषकर आदिवासी समुदाय में। कांग्रेसी नेता इसे सरकार विरोधी भावना भड़काने के लिए एक प्रभावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

कानूनी कार्रवाई की दिशा?
फिलहाल पुलिस प्रशासन की चुप्पी चिंताजनक है। विधायक राठिया के पत्र के बावजूद अभी तक कोई औपचारिक FIR दर्ज नहीं की गई है। यह स्थिति इस आरोप को और मजबूत बनाती है कि प्रशासन में पक्षपात और राजनीतिक दबाव का बोलबाला है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वीडियो सबूत उपलब्ध है और गवाह मौजूद हैं, तो इस मामले में तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए। मारपीट, धमकी और सार्वजनिक स्थान पर अभद्र व्यवहार के तहत कई धाराओं में मामला दर्ज हो सकता है।

समाज का नैतिक दायित्व
यह घटना हमारे समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। जब सार्वजनिक प्रतिनिधि और राजनीतिक नेता आम नागरिकों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करते हैं, तो यह लोकतंत्र की मूल भावना पर प्रहार है। विशेषकर आदिवासी समुदाय के साथ ऐसा व्यवहार सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है।

स्थानीय नागरिक समाज के संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इस मामले में आगे आना चाहिए और न्याय की मांग करनी चाहिए। केवल राजनीतिक दलों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है।

अब आगे की राह?

भाजपा नेत्री ज्योति महंत पर लगे आरोप गंभीर हैं और इन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। पुलिस प्रशासन को निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करनी चाहिए। यदि आरोप सच साबित होते हैं, तो दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

यह मामला न केवल व्यक्तिगत न्याय का है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था की स्थिति और आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा का भी सवाल है। समाज के हर वर्ग को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और न्याय के लिए एकजुट होना चाहिए।

आने वाले दिनों में इस मामले की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि पुलिस प्रशासन कितनी निष्पक्षता से कार्य करता है और राजनीतिक दबाव के आगे न झुकते हुए न्याय को सर्वोपरि रखता है। यही वह कसौटी होगी जिस पर छत्तीसगढ़ की न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता परखी जाएगी।

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