रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के विभिन्न जन आंदोलनों और जनवादी संगठनों ने बस्तर में शांति स्थापना के लिए सरकार और माओवादियों से तत्काल युद्ध विराम की अपील की है। उन्होंने कहा कि शांति वार्ता की दिशा में यह पहला कदम होगा, जिससे दोनों पक्षों की ईमानदारी पर आम जनता का भरोसा बढ़ेगा। जन संगठनों ने अपने संयुक्त बयान में स्पष्ट किया कि बस्तर में शांति का मुद्दा केवल सरकार और माओवादियों के बीच का नहीं है, बल्कि आम जनता इसका प्रमुख पक्ष है। जनता माओवादियों और सरकारी दमन, दोनों की शिकार है। उनकी मांगों और समस्याओं को नजरअंदाज कर कोई भी वार्ता सार्थक नहीं हो सकती।
दल्ली राजहरा में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ पीयूसीएल और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा द्वारा आयोजित संयुक्त बैठक में 24 से अधिक जन संगठनों के 150 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने बस्तर में निर्दोष आदिवासियों की हत्या, दमन और फर्जी मामलों में गिरफ्तारियों की कड़ी निंदा की और पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की मांग की। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े संगठनों ने जनता की आवाज को मजबूती से उठाने का संकल्प लिया। इसके लिए एक प्रतिनिधि मंडल जल्द ही राज्यपाल से मुलाकात करेगा और जन भावनाओं से अवगत कराते हुए हस्तक्षेप की मांग करेगा।
जन संगठनों ने आरोप लगाया कि माओवादी उन्मूलन के नाम पर बस्तर को सैन्य छावनी में बदल दिया गया है। सैन्य शिविरों की स्थापना का उद्देश्य बस्तर की प्रचुर खनिज संपदा को कॉर्पोरेट्स को सौंपना है। उनका कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार की असल मंशा शांति स्थापना नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट लूट के लिए जंगल और जमीन को खाली करवाना है। कॉर्पोरेट लूट की नीतियां ही बस्तर में शांति की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। साथ ही, माओवादियों की वार्ता की पेशकश तभी विश्वसनीय होगी, जब वे आदिवासियों पर अत्याचार बंद करेंगे।
सीबीए, पीयूसीएल और छमुमो ने कहा कि पांचवीं अनुसूची के तहत ग्राम सभाओं की सहमति के बिना खनिज संसाधनों की नीलामी पेसा कानून और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। बस्तर में शांति के लिए सरकार को निर्दोष आदिवासियों पर दमन रोकना होगा, उनके अधिकारों को मान्यता देनी होगी, आदिवासी कानून लागू करने होंगे, नागरिकों की स्वतंत्र आवाजाही सुनिश्चित करनी होगी और लोकतांत्रिक व शांतिपूर्ण आंदोलनों की अनुमति देनी होगी।
जन संगठनों ने मांग की कि बस्तर में कॉर्पोरेट लूट बंद हो और भूरिया समिति की सिफारिशों के आधार पर पेसा कानून के तहत स्वशासी जिला परिषद व्यवस्था लागू की जाए। नक्सल हिंसा के नाम पर मारे गए निर्दोष लोगों को न्याय दिलाने, जेलों में बंद आदिवासियों को रिहा करने और विभिन्न जांच समितियों की सिफारिशों को लागू करने की मांग भी की गई।
जन संगठनों ने बस्तर की जनता के मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों के संघर्ष को समर्थन देने का फैसला किया। इसके लिए प्रदेश भर में सभाएं, सम्मेलन और कन्वेंशन आयोजित किए जाएंगे, ताकि तीसरे पक्ष के रूप में जनता की आवाज को बुलंद किया जा सके।
जारीकर्ता जन संगठन: छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति), प्रदेश किसान संघ, गुरु घासीदास सेवादार संघ, छत्तीसगढ़ किसान सभा (अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध), आदिनिवासी गण परिषद, रेला सांस्कृतिक मंच, भारत जन आंदोलन, आदिवासी भारत महासभा, रावघाट संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ महिला मुक्ति मोर्चा, नव लोक जनवादी मंच, रिवॉल्यूशनरी कल्चरल फोरम, जन संघर्ष मोर्चा, जन मुक्ति मोर्चा, लोक सृजनहार यूनियन, प्रगतिशील किसान संगठन, गांव बचाओ समिति मुंगेली, जशपुर विकास समिति, ईसाई अधिकार संगठन (जशपुर), दलित आदिवासी अधिकार मंच (पिथौरा)।
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