फासीवाद का ख़तरा, वोट से खिलवाड़ और कॉरपोरेट लूट के विरुद्ध एकजुटता का संकल्प
पटना (पब्लिक फोरम)। राजधानी पटना के गांधी मैदान स्थित शहीद भगत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद आईएमए सभागार में आयोजित ‘बिहार बदलाव के मुद्दे और दिशा’ परिचर्चा में देश और राज्य के ज्वलंत मुद्दों पर चिंता व्यक्त करते हुए भाकपा (माले) के महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने कड़े शब्दों में मौजूदा राजनीति पर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि आज देश में आवाज़ उठाने वालों को जेल में डाला जा रहा है और ‘संगठित होने’ की हर कोशिश को कुचला जा रहा है, जो सीधे तौर पर ‘फासीवाद’ है।
सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार), ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज और ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस परिचर्चा में वक्ताओं ने बिहार विधानसभा चुनाव को देश के भविष्य का चुनाव बताते हुए एनडीए को सत्ता से बाहर करने के लिए ‘नो वोट टू एनडीए’ का राज्यव्यापी अभियान चलाने का संकल्प लिया।
विरोध की आवाज़ दबाने की ‘फासीवादी’ राजनीति
दीपंकर भट्टाचार्य ने अपने संबोधन में लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को छठी अनुसूची और अलग राज्य की मांग के लिए एनएसए के तहत जेल भेजने, उत्तराखंड में पेपर लीक के खिलाफ छात्रों पर कार्रवाई और बिहार में संविदाकर्मियों पर हुए बर्बर लाठीचार्ज का उदाहरण दिया। उन्होंने चिंता ज़ाहिर की कि राजनीतिक कैदी उमर खालिद अब तक जेल में हैं। भट्टाचार्य ने बाबा साहेब आंबेडकर के ‘संगठित होने’ के आह्वान को याद करते हुए कहा कि आज संगठित होने के हर प्रयास को कुचलने की राजनीति चल रही है, जो फासीवाद के रास्ते पर ले जा रही है।
मताधिकार पर सीधा हमला और सांप्रदायिक माहौल
वोटर सूची से नाम गायब होने की घटना को भट्टाचार्य ने मताधिकार पर ‘सीधा हमला’ बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्वी चंपारण के ढाका विधानसभा क्षेत्र में 80 हज़ार मतदाताओं के नाम वोटर सूची से हटा दिए गए हैं, और भाजपा बहुमत की राजनीति करने के लिए बांग्ला भाषा को ‘बांग्लादेशी भाषा’ कहकर पूरे मुस्लिम समुदाय को रोहिंग्या और बांग्लादेशी घोषित करने का अभियान चला रही है। उन्होंने बिहार की जनता से इन ‘वोट चोरों’ को गद्दी से उतार फेंकने का आह्वान किया।

आरक्षण का आधार कमज़ोर, भूमि सुधार आवश्यक
दलित मुद्दों पर अपनी बात रखते हुए भाकपा (माले) महासचिव ने कहा कि आरक्षण के सवाल को केवल उसी दायरे में सीमित नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इसका भौतिक आधार बेहद कमज़ोर है। उन्होंने भूमि सुधार के सवाल को इसके साथ जोड़ने की वकालत की। उन्होंने पुलिस वेकेंसी में 78 पदों की चोरी और इसके खिलाफ आंदोलन करने वाले दलित युवाओं पर हुए लाठीचार्ज का जिक्र किया, जिसे जाति गणना के आधार पर 65% आरक्षण की मांग के संदर्भ में एक बड़ी ‘चोरी’ बताया।
कॉरपोरेट परस्ती बनाम रोज़गार संकट
दीपंकर भट्टाचार्य ने बिहार में 94 लाख परिवारों के गरीबी झेलने का मुख्य कारण रोज़गार संकट को बताया। उन्होंने ‘डबल इंजन’ सरकार पर कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए भागलपुर के पीरपैंती में अडानी समूह को मात्र एक रुपये सालाना पट्टे पर 1050 एकड़ ज़मीन देने और वहां दस लाख से अधिक पेड़ काटे जाने की योजना की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि सरकार जहाँ गरीबों को बसने के लिए जमीन देने से इनकार करती है, वहीं राज्य को कॉर्पोरेट की लूट की प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। उन्होंने कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देकर स्थानीय रोज़गार पैदा करने पर ज़ोर दिया।

‘बदलो सरकार, बदलो बिहार’ का ऐतिहासिक आह्वान
अपने संबोधन के अंत में भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार को ‘योगी के बुलडोज़र राज’ और ‘कॉर्पोरेट लूट राज’ का शिकार नहीं बनने देना है। उन्होंने भगत सिंह की कुर्बानी, आज़ादी आंदोलन की ऊर्जा और बाबा साहेब के संविधान का उल्लेख करते हुए कहा कि 1857, 1942 और 1974 के आंदोलनों की गूंज बिहार से ही फैली थी। समय कम है और इस ऊर्जा के साथ हमें “बदलो सरकार, बदलो बिहार” का झंझावात खड़ा करना होगा।
बिहार का चुनाव, देश के मुस्तकबिल का चुनाव
परिचर्चा को संबोधित करते हुए पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि बिहार का विधानसभा चुनाव मात्र बिहार का नहीं, बल्कि ‘देश के मुस्तकबिल’ (भविष्य) का चुनाव है। उन्होंने देश में अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई और संवैधानिक संस्थानों पर भाजपा के कब्ज़े पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बिहार में एनडीए को पराजित कर देने से देश में भाजपा कमज़ोर होगी। एमएलसी शशि यादव ने स्कीम वर्कर्स को ‘बंधुआ मजदूर’ की तरह काम कराने पर रोष व्यक्त किया और महिलाओं के अधिकार को सामाजिक न्याय का अभिन्न सवाल बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उदय नारायण चौधरी ने कहा कि बिहार में पलायन, दलित-पिछड़ों की गरीबी और युवाओं की बेरोज़गारी प्रमुख मुद्दे हैं, जबकि दिशा स्पष्ट है कि एक भी वोट एनडीए को नहीं जाना चाहिए।
परिचर्चा का राजनीतिक प्रस्ताव
परिचर्चा में एक राजनीतिक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
🔸 ‘नो वोट टू एनडीए’ अभियान: लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर हो रहे हमलों के विरुद्ध आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की वापसी को रोकने के लिए ‘नो वोट टू एनडीए’ राज्यव्यापी अभियान चलाया जाएगा।
🔸अडानी को ज़मीन देने का विरोध: भागलपुर के पीरपैंती में अडानी को एक रुपये की दर पर 1050 एकड़ ज़मीन देने के कॉर्पोरेट परस्त फैसले को तुरंत वापस लेने की मांग की गई।
🔸आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग: 65% आरक्षण के ऐतिहासिक निर्णय को लागू करने के लिए इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई।
🔸सामाजिक न्याय की नींव: भूमि और शिक्षा सुधार: परिचर्चा ने माना कि सामाजिक न्याय की बात भूमि सुधार और सबके लिए शिक्षा व रोज़गार की नीतियों के बिना अधूरी है। इसे विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण मुद्दा बनाने का संकल्प लिया गया।
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