मंगलवार, अप्रैल 29, 2025
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सक्ती रियासत के गोंड राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह का निधन: एक गौरवशाली युग का अंत, क्षेत्र में शोक की लहर

सक्ती (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के सक्ती की ऐतिहासिक रियासत के राजा और पूर्व कैबिनेट मंत्री राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह का आज मंगलवार को निधन हो गया। 83 वर्ष की आयु में उन्होंने सक्ती के हरि गुजर महल में अंतिम सांस ली। पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे राजा सुरेंद्र बहादुर महल में ही इलाज करवा रहे थे। उनके निधन की खबर से सक्ती सहित पूरे छत्तीसगढ़ में शोक की लहर दौड़ गई है।

एक शाही विरासत और राजनीतिक दिग्गज का अवसान
राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह का जीवन न केवल सक्ती रियासत की शाही विरासत का प्रतीक था, बल्कि यह भारतीय राजनीति में एक आदर्शवादी और जनसेवक नेता की मिसाल भी पेश करता है। मात्र 18 वर्ष की आयु में 1960 में सक्ती रियासत की गद्दी संभालने वाले सुरेंद्र बहादुर ने छह दशकों तक अपनी विरासत को जीवंत रखा। उनकी मृत्यु के साथ एक युग का अंत हो गया, जिसने न केवल सक्ती, बल्कि अविभाजित मध्यप्रदेश की राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी।

सक्ती रियासत का इतिहास 1865 से शुरू होता है, जब यह छोटी रियासत अस्तित्व में आई। इस रियासत के पहले गोंड राजा हरि गुजर थे, जिनके वंशजों ने इसे आगे बढ़ाया। राजा रूपनारायण सिंह के बाद उनके दत्तक पुत्र लीलाधर सिंह ने 1914 में गद्दी संभाली। 1960 में जिवेंद्र बहादुर सिंह के अल्पायु में निधन के बाद सुरेंद्र बहादुर सिंह को राजा बनाया गया। उन्होंने न केवल रियासत की गरिमा को बनाए रखा, बल्कि सक्ती को राजनीतिक और सामाजिक रूप से भी मजबूत किया।

पांच दशकों की राजनीतिक विरासत
राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह की राजनीतिक यात्रा प्रेरणादायक रही है। 1977 में आपातकाल के दौरान उन्होंने सक्ती विधानसभा से विधायक के रूप में जीत हासिल की। यह उनकी लोकप्रियता और जनता के प्रति समर्पण का प्रमाण था। सक्ती रियासत का राजनीतिक प्रभाव 1952 से लगातार पांच दशकों तक कायम रहा। इस दौरान राजा लीलाधर सिंह, राजमाता टंक राजेश्वरी सिंह, कुमार पुष्पेंद्र बहादुर सिंह, इंदुमती और स्वयं राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह ने विधायक और मंत्री के रूप में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता के रूप में राजा सुरेंद्र बहादुर ने अविभाजित मध्यप्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक राजगोंड आदिवासी परिवार से होने के बावजूद सामान्य सीट सक्ती पर लगातार जीत हासिल करना उनकी जनता के प्रति गहरी स्वीकार्यता को दर्शाता है। आज भी सक्ती और आसपास के क्षेत्रों में उनके समर्थकों की संख्या और रियासत के प्रति लोगों की आस्था अटूट है।

जनसेवा और सामाजिक योगदान
राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह की पहचान केवल एक राजा या राजनेता तक सीमित नहीं थी। उन्होंने सक्ती में शिक्षा, धर्म एवं सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। विभिन्न शैक्षणिक और सामाजिक संस्थानों की स्थापना और संचालन में उनकी भूमिका को स्थानीय लोग आज भी याद करते हैं। उनके दत्तक संतान धर्मेंद्र को उन्होंने अपनी विरासत सौंपी, लेकिन उनकी कोई जैविक संतान नहीं थी। फिर भी, उन्होंने अपने क्षेत्र को अपनी संतान की तरह प्यार और समर्पण दिया।

शोक में डूबा सक्ती
राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह के निधन की खबर ने सक्ती की जनता को गहरे दुख में डुबो दिया। “वे हमारे लिए सिर्फ राजा नहीं, बल्कि एक पिता की तरह थे। उनके बिना सक्ती अधूरी सी लगती है,” स्थानीय निवासी विशेश्वर मरावी ने आंसुओं के साथ कहा। उनके समर्थक और स्थानीय लोग हरि गुजर महल के बाहर एकत्रित होकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने भी उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।

राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह का जाना केवल एक व्यक्ति का निधन नहीं, बल्कि एक युग का अंत है। उनकी शाही और राजनीतिक विरासत ने सक्ती को नई पहचान दी। उनके द्वारा स्थापित मूल्य और जनसेवा की भावना आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। उनकी मृत्यु ने एक खालीपन छोड़ा है, लेकिन उनके कार्य और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

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