चुनाव नियमों में बदलाव: पारदर्शिता के खिलाफ सरकार का अप्रत्याशित कदम
नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। केंद्र सरकार द्वारा चुनाव संचालन नियमों के नियम 93(2)(क) में किए गए एकतरफा संशोधन को लेकर देशभर में विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। इस संशोधन के तहत जनता और वकीलों को चुनाव से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों तक पहुंचने में बाधा पैदा की गई है। सीपीआई-एमएल ने इसे लोकतंत्र और जवाबदेही के सिद्धांतों पर सीधा हमला बताया है।
क्या है संशोधन और क्यों है विवाद?
यह विवाद तब गहराया जब पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 9 दिसंबर को हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान एक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों से संबंधित वीडियोग्राफी और सुरक्षा कैमरा फुटेज को अधिवक्ता महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। लेकिन इसके ठीक बाद सरकार ने इस दिशा में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के बजाय, इसे और जटिल बना दिया। संशोधन के जरिए महत्वपूर्ण चुनावी दस्तावेजों तक आम जनता और संबंधित पक्षों की पहुंच को सीमित कर दिया गया है।
सरकार की मंशा पर सवाल
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब देशभर में चुनावी प्रक्रिया, विशेष रूप से ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (ओएनओई) योजना, को लेकर विवाद चल रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संशोधन सरकार की मंशा को स्पष्ट करता है कि वह अपने कार्यों को छिपाने का प्रयास कर रही है। सीपीआईएमएल ने इसे “तानाशाही मानसिकता का प्रतीक” कहा है और चेतावनी दी है कि यह लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की सुनियोजित साजिश का हिस्सा हो सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना से समानता
CPI-ML ने इस संशोधन को सरकार की पूर्ववर्ती योजनाओं, जैसे कि विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड योजना, के समान बताया है। इस योजना ने गुमनाम राजनीतिक फंडिंग को वैध बनाकर पारदर्शिता की धज्जियां उड़ाई थीं। इसके चलते सत्ता पक्ष को अपारदर्शी और भारी मात्रा में धन प्राप्त हुआ, जिससे निष्पक्ष चुनावों पर सवाल उठे। अब, सरकार एक बार फिर पारदर्शिता को खत्म करने की कोशिश करती दिख रही है।
चुनाव आयोग की भूमिका पर उठे सवाल
इस घटनाक्रम ने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आयोग पर यह जिम्मेदारी है कि वह चुनाव प्रक्रिया में जनता का विश्वास बनाए रखे। लेकिन पारदर्शिता विरोधी नियमों को लागू कर सरकार के पक्ष में खड़ा दिखने से आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं।
सीपीआई-एमएल की मांग और अपील
सीपीआईएमएल ने इस “अलोकतांत्रिक संशोधन” को तुरंत वापस लेने की मांग की है। पार्टी ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया है कि वह अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाते हुए चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करे। साथ ही, उन्होंने सभी लोकतांत्रिक ताकतों से अपील की है कि वे एकजुट होकर चुनावी प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही की रक्षा के लिए संघर्ष करें।
इस संशोधन ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि पारदर्शिता और लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए संघर्ष जारी रहेगा। देश के जागरूक नागरिकों और संगठनों को चाहिए कि वे ऐसे नियमों का पुरजोर विरोध करें, जो लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करते हैं।
यह समय है कि भारत की जनता अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो और यह सुनिश्चित करे कि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और जनता के विश्वास के अनुरूप हो।
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