शनिवार, नवम्बर 23, 2024
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खम्हरिया गांव की बेदखली के खिलाफ माकपा का आंदोलन: एसईसीएल पर नियमों के उल्लंघन का आरोप

कोरबा (पब्लिक फोरम)। कोरबा जिले के एसईसीएल कुसमुंडा क्षेत्र में स्थित खम्हरिया गांव के किसानों के लिए एक बार फिर से चुनौती खड़ी हो गई है। 1978 में अधिग्रहित की गई इस गांव की भूमि को 40 साल बाद भी न तो रोजगार मिला और न मुआवजा। अब एसईसीएल इस गांव को बेदखल कर अन्य गांवों के विस्थापितों को यहां बसाने का प्रयास कर रही है। माकपा ने इस कार्रवाई के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की घोषणा की है।
माकपा का आरोप
माकपा जिला सचिव प्रशांत झा ने बताया कि 1978 में खम्हरिया की भूमि को अधिग्रहित किया गया था और 1983 में एक अवार्ड पारित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 20 साल बाद भूमि मूल खातेदारों को वापस की जाएगी और प्रभावित किसानों को रोजगार और मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन, आज तक किसी भी शर्त को पूरा नहीं किया गया है।
अधिकारों का उल्लंघन
प्रशांत झा ने कहा कि अवार्ड के अनुसार, खम्हरिया गांव की सीमा के अंदर अन्य गांवों के विस्थापितों को बसाने का कोई प्रावधान नहीं है। इस स्थिति में एसईसीएल का यह कदम गैर-कानूनी है और मूल भू-स्वामियों को बेदखल करना गलत है।

माकपा और किसान सभा का समर्थन
प्रशांत झा, छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला सचिव दीपक साहू और सुमेंद्र सिंह कंवर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने खम्हरिया गांव का दौरा किया और ग्रामीणों का समर्थन किया। उन्होंने एसईसीएल से अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने, मूल ग्रामीणों की बेदखली पर रोक लगाने, खनन प्रभावित गांवों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने और भू-विस्थापितों का गैर विवादित क्षेत्रों में पुनर्वास करने की मांग की है।
आंदोलन की घोषणा
माकपा और किसान सभा ने इन मांगों को लेकर अभियान और आंदोलन चलाने की भी घोषणा की है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे व्यापक स्तर पर आंदोलन करेंगे।

इस प्रकार, खम्हरिया गांव की बेदखली और विस्थापन का यह मुद्दा एसईसीएल और ग्रामीणों के बीच संघर्ष का केंद्र बन गया है। माकपा और किसान सभा इस संघर्ष को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

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