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सीपीआई(एम) की 24वीं कांग्रेस: भाजपा-आरएसएस को हराने की रणनीति, जनता के बीच मजबूत अभियान

“सीपीआई(एम) जनता के बीच जाएगी।”

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की 24वीं कांग्रेस 6 अप्रैल को तमिलनाडु के मदुरै में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। इस कांग्रेस में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को अलग-थलग करने तथा उन्हें परास्त करने को प्राथमिक लक्ष्य निर्धारित किया गया। प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से विश्लेषण किया गया कि मोदी सरकार के लगभग 11 वर्षों के शासनकाल में दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक, और तानाशाही प्रवृत्तियों वाली नव-फासीवादी ताकतें मजबूत हुई हैं। यह प्रस्ताव रेखांकित करता है कि “मोदी सरकार हिंदुत्ववादी ताकतों और बड़े पूंजीपतियों के गठजोड़ का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए, हमारा मुख्य कार्य भाजपा-आरएसएस और इसके पीछे के हिंदुत्व-कॉर्पोरेट गठजोड़ से लड़ना और उसे हराना है।”

प्रस्ताव में इस बात पर बल दिया गया कि सांप्रदायिक ताकतों की विचारधारा और गतिविधियों के खिलाफ निरंतर संघर्ष के माध्यम से ही भाजपा और हिंदुत्ववादी ताकतों को अलग-थलग और परास्त किया जा सकता है। सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करने के लिए व्यापक प्रयास करते हुए, सीपीआई(एम) इस बात पर स्पष्ट है कि “हिंदुत्ववादी नवउदारवादी शासन के खिलाफ संघर्षों की सफलता के लिए पार्टी और वामपंथी ताकतों की स्वतंत्र शक्ति का विकास अनिवार्य है।”

पार्टी और वामपंथ की स्वतंत्र शक्ति व प्रभाव में ठहराव और बाद में आई गिरावट लंबे समय से चिंता का विषय रही है। खासकर, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे अपने पूर्व गढ़ों में पार्टी को भारी असफलताओं का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप इसका जनाधार कमजोर हुआ है।

इस संदर्भ में, राजनीतिक समीक्षा रिपोर्ट में आत्मालोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए स्वीकार किया गया कि यद्यपि पार्टी भाजपा के खिलाफ व्यापक धर्मनिरपेक्ष ताकतों को संगठित करने में सफल रही, लेकिन वह 23वीं कांग्रेस में निर्धारित अन्य लक्ष्यों—विशेष रूप से माकपा और वामपंथ की शक्ति व प्रभाव को बढ़ाने—में असफल रही।

23वीं कांग्रेस में स्वीकृत राजनीतिक-रणनीतिक दिशा को सही मानते हुए, 24वीं कांग्रेस ने हिंदुत्व और आरएसएस से जुड़े संगठनों के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए राजनीतिक, वैचारिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और सामाजिक क्षेत्रों में निरंतर गतिविधियों का संचालन करने का आह्वान किया। प्रस्ताव में दोहराया गया कि भाजपा और आरएसएस को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता, और उन्हें केवल चुनावी रणनीतियों के जरिए परास्त नहीं किया जा सकता। पिछले एक दशक में हिंदुत्ववादी ताकतों ने वैचारिक प्रभाव के आधार पर व्यापक समर्थन हासिल किया है, जिसका मुकाबला करने के लिए एक व्यापक और समग्र कार्यक्रम की आवश्यकता है।

इस दिशा में, पार्टी मजदूर वर्ग और उनके आवासीय क्षेत्रों, ट्रेड यूनियनों, जन संगठनों, और अन्य मंचों पर सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से सांप्रदायिकता विरोधी अभियानों को संगठित करने पर विशेष ध्यान देगी। पार्टी धार्मिक आस्था और राजनीतिक लाभ के लिए धर्म के दुरुपयोग के बीच अंतर स्पष्ट करने के लिए आस्थावान लोगों तक पहुंचेगी। इसके अलावा, त्योहारों और सामाजिक समारोहों में हस्तक्षेप कर सांप्रदायिक राजनीति के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास करेगी, साथ ही अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय समन्वय को बढ़ावा देने वाली पहलों को प्रोत्साहित और मजबूत करेगी। पार्टी सामाजिक सेवा, लोकप्रिय विज्ञान आंदोलनों, और धर्मनिरपेक्ष व वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाली सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भागीदारी करेगी, ताकि मनुवादी और रूढ़िवादी मूल्यों का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया जा सके।

कांग्रेस ने इस बात पर जोर दिया कि पार्टी को मजबूत करने के लिए पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में माकपा और वामपंथ का पुनर्निर्माण और विस्तार सर्वोच्च प्राथमिकता है। पश्चिम बंगाल में ग्रामीण और शहरी गरीबों के बीच कार्य को प्राथमिकता दी जाएगी, और उन्हें संगठित करने के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे। त्रिपुरा में पार्टी को जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने और आदिवासी समुदायों की विशेष जरूरतों व मुद्दों को संबोधित करने वाले कार्यक्रम शुरू करने का निर्देश दिया गया है, ताकि मेहनतकश लोगों को एकजुट किया जा सके।

पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में जनता का विश्वास पुनः हासिल करने के लिए हरसंभव प्रयास करते हुए, पार्टी अन्य राज्यों में भी अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास करेगी। 24वीं कांग्रेस ने इस बात पर बल दिया कि बुनियादी वर्गों—विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी गरीबों—के बीच कार्य को प्राथमिकता दी जाए। ग्रामीण अमीरों और सामंती ताकतों द्वारा ग्रामीण गरीबों के शोषण के खिलाफ संघर्षों में मौजूद कमजोरियों को दूर करने का भी आह्वान किया गया। साथ ही, यह स्पष्ट किया गया कि पार्टी को स्वतंत्र राजनीतिक अभियानों और जन-आंदोलनों पर अधिक ध्यान देना चाहिए, ताकि “चुनावी समझौतों या गठबंधनों के नाम पर हमारी स्वतंत्र पहचान धुंधली न हो और स्वतंत्र गतिविधियों में कमी न आए।”

जाति, लिंग, और सामाजिक मुद्दों को केवल संबंधित जन संगठनों तक सीमित रखने के बजाय, पार्टी ने इन मुद्दों पर सीधे अभियान चलाने और संघर्ष करने की वकालत की है, साथ ही इन्हें वर्ग शोषण के खिलाफ संघर्षों के साथ जोड़ने पर जोर दिया है।

(लेखक: एम.ए. बेबी)

पार्टी का मानना है कि इसके भविष्य के विकास के लिए युवाओं को आकर्षित करना महत्वपूर्ण है। युवाओं के बीच इसकी अपील को अन्य बुर्जुआ पार्टियों से अलग और प्रभावी बनाना होगा। आज का युवा एक वैकल्पिक व्यवस्था की खोज में है, और उनकी इस चाह को संबोधित करना आवश्यक है। राजनीतिक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया, “हमारे राजनीतिक और वैचारिक अभियानों में कमी का एक प्रमुख कारण समाजवाद के लक्ष्य का प्रचार न करना है। जिस वामपंथी और लोकतांत्रिक विकल्प की हम बात करते हैं, उसे समाजवाद से जोड़ा जाना चाहिए। नई पीढ़ी के बीच हमारी अपील को बढ़ाने के लिए यह और भी आवश्यक है। सोवियत संघ के पतन और समाजवाद को लगे झटकों के बाद इस दिशा में कमजोरी आई है।”

लेखक: एम.ए. बेबी, अनुवाद: संजय पराते
(लेखक भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव हैं। अनुवादक छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।)

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