विश्रामपुर/सूरजपुर (पब्लिक फोरम)। माकपा के 8वें राज्य सम्मेलन का आयोजन विश्रामपुर के सीताराम येचुरी नगर में किया गया। सम्मेलन के दौरान राज्य सचिव एम.के. नंदी ने एक विस्तृत राजनीतिक-सांगठनिक रिपोर्ट पेश की, जिसमें छत्तीसगढ़ में बढ़ती सांप्रदायिकता, कॉर्पोरेट हस्तक्षेप और दलित, आदिवासी तथा कमजोर वर्गों पर हो रहे अत्याचारों का जिक्र किया गया। रिपोर्ट में भाजपा की नीतियों और सांप्रदायिक तत्वों को मिल रहे सरकारी संरक्षण को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।
रिपोर्ट में यह बताया गया कि परंपरागत सौहार्द्र के लिए पहचाने जाने वाले छत्तीसगढ़ में सांप्रदायिक प्रवृत्तियों की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। सत्ता पक्ष, भाजपा और उससे जुड़े संगठनों जैसे आरएसएस पर सांप्रदायिक माहौल को भड़काने और अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने का आरोप लगाया गया है।
लोकसभा चुनावों में भाजपा को झटके के बाद से, प्रदेश में साम्प्रदायिकीकरण की मुहिम तेज हो गई है। त्यौहारों और पर्वों को सांप्रदायिकता भड़काने के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय और ईसाई समूहों पर हमलों में वृद्धि हुई है। इन घटनाओं को जनता का ध्यान कॉर्पोरेट्स के मुनाफे और बेरोजगारी से भटकाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
दलित, आदिवासी और महिलाओं की स्थिति पर गहरी चिंता
रिपोर्ट में दलित, आदिवासी और महिलाओं की बढ़ती दयनीय स्थिति को लेकर भी नाराजगी जताई गई। सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आजादी के बाद से सामंती सोच पर निर्णायक प्रहार नहीं हुआ। महिलाओं पर अत्याचार, बलात्कार और उत्पीड़न की घटनाओं में राज्य का शर्मनाक रिकॉर्ड है। आदिवासियों के खिलाफ हिंसा और पिछड़े समुदायों को सांप्रदायिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं।
सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का आह्वान
सम्मेलन ने धर्म को राजनीति से अलग रखने और धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष तेज करने की आवश्यकता पर बल दिया। माकपा ने भूमि, रोजगार, शिक्षा और समानता के लिए जन आंदोलन शुरू करने की बात कही। दलितों और महिलाओं के शोषण के खिलाफ जागरूकता अभियान और संगठित प्रयासों की प्राथमिकता पर जोर दिया गया।
किसानों की दुर्दशा और बढ़ती महंगाई पर चर्चा
किसानों की समस्याओं पर चर्चा करते हुए माकपा ने खेती की बढ़ती लागत, सिंचाई के अभाव, स्मार्ट मीटर के जरिए बिजली के निजीकरण और फसल बीमा योजना में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को उठाया। किसान आत्महत्या, पलायन और ग्रामीण बाजारों की दुर्दशा के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया। सम्मेलन ने खेती और किसानों की स्थिति सुधारने के लिए व्यापक आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया।
सम्मेलन में सांप्रदायिकता, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए गए। “एक राष्ट्र, एक चुनाव” जैसे विचारों की आलोचना करते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया गया। साथ ही सांस्कृतिक गीतों की प्रस्तुतियों के माध्यम से जनता के मुद्दों को उजागर किया गया।
माकपा ने छत्तीसगढ़ में बढ़ते साम्प्रदायिक और कॉर्पोरेट दबाव के खिलाफ जनता को एकजुट होने का आह्वान किया। सम्मेलन ने न्याय, समानता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए संघर्ष तेज करने का संदेश दिया।
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