अंबिकापुर (पब्लिक फोरम)। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सरगुजा जिले के सदस्यों ने चीतालाता (लूंड्रा) के शहीद भाई-बहन, कँवल साय और पिछारी बाई को श्रद्धांजलि अर्पित की। हर साल 17 सितंबर को आयोजित इस कार्यक्रम में, इस बार भी सती टिकरा (ग्राम राई) पर लाल झंडा फहराकर दोनों शहीदों को सम्मानित किया गया और उनके बलिदान को याद किया गया।
भूमि आंदोलन और शहादत
1989 में सरगुजा के लूंड्रा क्षेत्र में CPI द्वारा चलाए गए ऐतिहासिक भूमि आंदोलन ने क्षेत्र के आदिवासियों और गरीब मेहनतकशों को उनका हक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस आंदोलन के तहत सैकड़ों एकड़ जमीन, जो स्थानीय सूदखोरों, सेठों और साहूकारों द्वारा जबरन कब्जा की गई थी, आदिवासियों और गरीबों को वापस दिलाई गई। इसके साथ ही, सैकड़ों लोग जो बेगारी और बंधुआ मजदूरी के गुलाम थे, उन्हें इस आंदोलन ने आजादी दिलाई।
हालांकि, इस आंदोलन की कीमत भी चुकानी पड़ी। प्रशासन, साहूकारों, और स्थानीय रसूखदारों के मिलीभगत से CPI के दो कोरवा सदस्य—कँवल साय और उनकी बहन पिछारी बाई—को चीतालाता की पहाड़ियों पर बेरहमी से गोली मारकर शहीद कर दिया गया था। इस दुखद घटना के बाद से हर साल 17 सितंबर को उनकी याद में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है।
श्रद्धांजलि सभा का आयोजन
इस साल भी सती टिकरा (ग्राम राई) पर CPI के सदस्यों ने लाल झंडा फहराकर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। खराब मौसम के बावजूद, बड़ी संख्या में लोग इस सभा में शामिल हुए और फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस कार्यक्रम में भटगांव से कामरेड मनोज पांडे (एटक), का. एखलाक, का. वेद प्रकाश अग्रवाल, का. प्रितपाल सिंह अरोरा, का. सोमार साय, का. सुखसागर, का. विजय सिन्हा, चरणप्रीत सिंह, सरपंच सोमार साय, दर्शन कामरेड, कामरेड रामसुंदर, हरीश बड़ा, सुन्यारो खेस, किरण भगत, शाहिद लकड़ा समेत कई वरिष्ठ कामरेड उपस्थित थे।
इस दौरान CPI के वरिष्ठ नेताओं का. सीताराम येचुरी और का. अतुल अंजान को भी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। साथ ही, आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कामरेड राजनाथ और कामरेड बेनी को भी याद किया गया। श्रद्धांजलि कार्यक्रम में का. वेद अग्रवाल और का. प्रितपाल सिंह ने पुराने साथियों को शाल और श्रीफल देकर सम्मानित किया।
समस्याओं पर चर्चा
सभा का संचालन कामरेड मनोज पांडेय ने किया और इस अवसर पर पर्चों का वितरण भी किया गया, जिनमें क्षेत्र की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की गई। इन पर्चों में ग्रामीणों की जमीन से जुड़ी समस्याओं और अन्य मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया, जिससे वहां की जनता की आवाज को बल मिल सके।
सरगुजा का भूमि आंदोलन सिर्फ जमीन की लड़ाई नहीं थी, बल्कि गरीब और आदिवासी वर्ग की स्वतंत्रता और सम्मान की भी लड़ाई थी। कँवल साय और पिछारी बाई की शहादत इस संघर्ष की प्रतीक बन गई है, और हर साल 17 सितंबर को CPI के कार्यकर्ता और समर्थक इस शहादत को याद करते हुए उनकी विरासत को सलाम करते हैं।
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