जगदलपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दरभा ब्लॉक के छिंदवाड़ा-तोंगपाल गांव में धर्म परिवर्तन करने वाले एक युवक के शव को गांव के श्मशान घाट में दफनाए जाने का मामला गहराता जा रहा है। सर्व आदिवासी समाज ने प्रशासन से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है, यह दावा करते हुए कि शव को गांव के रीति-रिवाजों और परंपराओं के खिलाफ दफनाया गया है। समाज ने चेतावनी दी है कि अगर प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की, तो वे स्वयं शव को निकाल देंगे, जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
घटना की पृष्ठभूमि
घटना 18 अक्टूबर की है, जब ईसाई धर्म को मानने वाले एक युवक ईश्वर की मृत्यु हो गई। ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार, उसके परिवार ने गांव के ही श्मशान घाट में उसे दफन कर दिया। इस कदम के बाद से गांव में तनाव फैल गया है, और पुलिस बल की तैनाती करनी पड़ी।
आदिवासी समाज का विरोध
सर्व आदिवासी समाज के सदस्य और ग्रामीण इस बात पर कड़ी आपत्ति जता रहे हैं कि ईसाई धर्म को मानने वाले युवक को आदिवासी परंपराओं के खिलाफ गांव के श्मशान घाट में दफनाया गया। आज, समाज के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष राजा राम तोडेम और अन्य ग्रामीणों ने बस्तर कलेक्टर से मुलाकात की और ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि यह कदम आदिवासी संस्कृति और परंपरा का उल्लंघन है और इससे गांव में आपसी सौहार्द बिगड़ रहा है।
राजा राम तोडेम ने कहा, “हमारी परंपराओं का सम्मान किया जाना चाहिए। यदि मृतक के परिजन अपने मूल धर्म में वापस लौटते हैं, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता, तो हम खुद शव को बाहर निकालेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि हर गांव में लोग एकजुट रहें, लेकिन किसी को भी अपना मूल धर्म नहीं छोड़ना चाहिए।
संविधान का उल्लंघन करने का आरोप
वहीं दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ युवा मंच के संस्थापक नरेंद्र भवानी ने इस मामले में एक अलग दृष्टिकोण पेश किया है। उनका कहना है कि जिस जमीन पर युवक का शव दफनाया गया है, वह उसके परिवार की पुश्तैनी जमीन है और वहां पहले भी शव दफनाए जा चुके हैं। भवानी ने गांव के लोगों पर गुमराह होने का आरोप लगाते हुए कहा, “अगर इस शव को निकाला गया तो यह संविधान के खिलाफ होगा।”
समाज में तनाव और प्रशासन की जिम्मेदारी
गांव में बढ़ते तनाव के बीच, सर्व आदिवासी समाज का यह रुख कि वे स्वयं शव निकालेंगे, प्रशासन के लिए चुनौती बन गया है। इस तरह के संवेदनशील मुद्दे पर प्रशासन का ठोस कदम उठाना आवश्यक है, ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा या सामाजिक तनाव को रोका जा सके।
यह मामला केवल धर्म परिवर्तन से जुड़े मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण से भी जुड़ा है। एक ओर, आदिवासी समाज अपने रीति-रिवाजों की रक्षा के लिए खड़ा है, तो दूसरी ओर, संवैधानिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात भी उठ रही है। ऐसे में, प्रशासन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है, जो इस विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है।
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