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अनुकंपा नियुक्ति: क्या वेदांता प्रबंधन कर रहा है सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना? कलेक्टर जनदर्शन में गूंजा सवाल

“बालको विनिवेश: पिता के हक और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की ढाल लेकर ‘न्याय की चौखट’ पर पहुंचा बेटा”

कोरबा (पब्लिक फोरम)। जिले के औद्योगिक परिदृश्य में बालको (BALCO) का विनिवेश हमेशा से चर्चा का विषय रहा है, लेकिन आज यह मुद्दा फाइलों से निकलकर मानवीय संवेदनाओं और एक परिवार के भरण-पोषण की लड़ाई बन गया है। 8 दिसंबर 2025 को कलेक्ट्रेट में आयोजित ‘कलेक्टर जनदर्शन’ में एक मार्मिक और कानूनी रूप से सुदृढ़ मामला सामने आया, जिसने प्रशासन और प्रबंधन दोनों का ध्यान खींचा है।

स्वर्गीय श्री सतीश कुमार (भूतपूर्व कर्मचारी, बालको) के पुत्र निर्मल चंद्र कसार ने जिला कलेक्टर के समक्ष उपस्थित होकर अनुकंपा नियुक्ति की मांग की है। यह मांग केवल एक नौकरी की अर्जी नहीं, बल्कि देश की सर्वोच्च अदालत के आदेशों के पालन की एक गुहार है।

विनिवेश बनाम कर्मचारियों के अधिकार: क्या है पूरा मामला?

नेहरू नगर निवासी निर्मल चंद्र कसार ने अपने आवेदन में एक बेहद तार्किक मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि जब बालको का 51% विनिवेश हुआ था, तब भारत सरकार और प्रबंधन के बीच एक स्पष्ट समझौता हुआ था। इसके साथ ही, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में यह सुनिश्चित किया था कि निजीकरण के बाद भी कर्मचारियों की सेवा शर्तों, सुरक्षा और उन्हें मिलने वाले लाभों में ऐसा कोई बदलाव नहीं किया जाएगा जो उनके लिए ‘प्रतिकूल’ (Adverse) हो।

निर्मल का तर्क है कि विनिवेश से पूर्व बालको में कर्मचारियों के निधन पर उनके आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति देने का स्पष्ट प्रावधान था। अतः सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, इस नियम को समाप्त करना या बाधित करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह न्यायपालिका की अवमानना भी है।

राज्य शासन के निर्देशों का हवाला

इस मामले को और मजबूती देते हुए प्रार्थी ने छत्तीसगढ़ शासन, वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के पत्र (दिनांक 13/02/2024) का संदर्भ दिया है। निर्मल ने कलेक्टर महोदय को बताया कि राज्य सरकार ने भी स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि पुराने नियमों का संरक्षण आवश्यक है। इसके बावजूद, प्रबंधन द्वारा अनुकंपा नियुक्ति में आनाकानी करना एक पीड़ित परिवार को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करने जैसा है।

एक बेटे की भावुक अपील: ‘न्याय ही जीवन का आधार’

कलेक्टर जनदर्शन में अपनी बात रखते हुए निर्मल की आवाज़ में एक बेटे का दर्द और सिस्टम के प्रति उम्मीद दोनों साफ झलक रहे थे। उन्होंने कहा, “मेरे पिता ने इस संस्थान को अपने जीवन के अमूल्य वर्ष दिए हैं। आज जब हमारा परिवार संकट में है, तो प्रबंधन नियमों की आड़ लेकर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकता। यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि उन सभी आश्रितों की है जो अपने हक के लिए भटक रहे हैं।”

उन्होंने कलेक्टर महोदय से करबद्ध प्रार्थना की है कि बालको प्रबंधन को तत्काल तलब किया जाए और विनिवेश की शर्तों का पालन सुनिश्चित करवाते हुए उन्हें अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की जाए।

प्रशासन से उम्मीदें

जिला कलेक्टर, जो जिले में न्याय और प्रशासन के सर्वोच्च प्रहरी हैं, के समक्ष यह मामला अब विचाराधीन है। निर्मल कसार द्वारा सौंपे गए दस्तावेजों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रतियां, राज्य शासन का पत्र और सर्विस रिकॉर्ड शामिल हैं। अब देखना यह है कि प्रशासन बालको प्रबंधन के प्रति क्या रुख अपनाता है।

यह मामला केवल एक नियुक्ति का नहीं, बल्कि कॉरपोरेट जगत में मानवीय मूल्यों और वैधानिक वचनों को निभाने का है। एक परिवार की उम्मीदें अब जिला प्रशासन की त्वरित कार्यवाही पर टिकी हैं।
“यह खबर हमें याद दिलाती है कि बड़े औद्योगिक बदलावों के बीच अक्सर मानवीय पहलू दब जाते हैं। निर्मल चंद्र कसार का संघर्ष यह साबित करता है कि कानून और संविधान आम आदमी के हाथ में वो ताकत हैं, जिससे वह वेदांता जैसे बड़े से बड़े प्रबंधन से भी अपने हक की मांग कर सकता है।”

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