शुक्रवार, अक्टूबर 18, 2024
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छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में कोयला खनन: 95,000 पेड़ काटे गए, आने वाले समय में और 2.73 लाख पेड़ों की कटाई!

उत्खनन, पेड़ कटाई और पर्यावरणीय चिंता!

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन में कोयला खनन के चलते अब तक करीब 95,000 पेड़ काटे जा चुके हैं और आने वाले वर्षों में 2.73 लाख से अधिक पेड़ों को और काटा जाएगा। यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार को राज्यसभा में दी।
एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार परसा ईस्ट केते बासेन माइन (पीईकेबी) में 94,460 पेड़ काटे गए हैं। इस नुकसान की भरपाई के लिए कुल 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं, जिनमें से 40,93,395 पेड़ बच गए हैं।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित हसदेव अरण्य लगभग 1,70,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जो क्षेत्रफल में देश की राजधानी दिल्ली से भी बड़ा है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और पर्यावरण कार्यकर्ता सुदीप श्रीवास्तव का कहना है कि हसदेव के घने जंगलों में हो रहे कोयला खनन का स्थानीय आदिवासी और राज्य के जागरूक लोग विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम, जिसकी सालाना कोयला आवश्यकता लगभग 200 लाख टन है, वर्तमान में चालू परसा ईस्ट केते बासन खदान से ही 210 लाख टन कोयला प्राप्त कर रहा है। इसके बावजूद राजस्थान सरकार परसा और केते एक्सटेंशन में नई कोयला खदानें खोलना चाहती है।

श्रीवास्तव ने आगे बताया कि आगामी 2 अगस्त को केते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक की पर्यावरण जनसुनवाई होनी है, जिससे उसे अनुमति दी जा सके। इस ब्लॉक में 99% घना जंगल और लगभग 6 लाख पेड़ हैं। पूरा इलाका हसदेव का जल ग्रहण क्षेत्र है और मानव-हाथी संघर्ष इस क्षेत्र में चरम पर है। ऐसे में इस खदान की अनुमति देना, जिसके कोयले की आवश्यकता राजस्थान को नहीं है, छत्तीसगढ़, राजस्थान या देश हित में नहीं है।

उन्होंने आरोप लगाया कि राजस्थान और अडानी के अनुबंध के अनुसार, रिजेक्ट कोयले की आड़ में बड़ी मात्रा में कोयला अडानी के द्वारा अपने पावर प्लांट में मुफ्त में ले जाया जा रहा है। इस क्रॉनि कैपिटलिज्म के मॉडल का विरोध करना अत्यंत आवश्यक है।
इसलिए हम सबको मिलकर हसदेव के घने जंगलों को बचाने के लिए अपना योगदान देना चाहिए।

पर्यावरण और समाज के लिए चेतावनी
हसदेव अरण्य में कोयला खनन के चलते हो रही पेड़ कटाई न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि वहां के स्थानीय समुदाय के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर जागरूकता और सही निर्णय लेना अति आवश्यक है ताकि हमारे वन और पर्यावरण सुरक्षित रह सकें।

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