झारखंड से शुरू हुआ ‘धरती आबा अभियान’- कागजों तक सिमटे वादे?
पिछले साल गांधी जयंती पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के हजारीबाग में आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के सम्मान में ‘धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान’ की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत 83,300 करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया गया था, जिससे देश के 63,000 आदिवासी गांवों में सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने का वादा किया गया। लेकिन 1 फरवरी 2025 के बजट में इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए मात्र 6,105.78 करोड़ रुपए ही आवंटित किए गए हैं। यह राशि घोषित बजट का सिर्फ 7.3% है!
क्या कम हुआ? बजट में ऐसे कटे आदिवासियों के हक
– 17 मंत्रालयों की जगह 10: योजना में शामिल होने वाले मंत्रालयों की संख्या घटाकर 10 कर दी गई। स्वास्थ्य के लिए 424 करोड़, पेयजल के लिए महज 1 लाख रुपए और आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए 75 करोड़ जैसे आवंटन आदिवासियों की वास्तविक जरूरतों से कोसों दूर हैं।
– आवास योजना में कटौती: पीएम आवास योजना का बजट 12,498 करोड़ से घटाकर 11,675 करोड़ कर दिया गया।
– कुपोषण पर ध्यान नहीं: आदिवासी इलाकों में कुपोषण दूर करने वाले ‘पोषण 2.0’ अभियान का बजट 140 करोड़ कम किया गया।
– शिक्षा में ढिलाई: आदिवासी छात्रों के लिए स्कॉलरशिप का बजट 240 करोड़ से घटाकर **मात्र 2 लाख रुपए** कर दिया गया!
वादे और वित्तीय आवंटन में है भारी अंतर!
सरकार ने पीएम जनमन अभियान, वन बंधु कल्याण योजना और आदर्श ग्राम योजना जैसे कार्यक्रमों के बजट में भी भारी कटौती की है। उदाहरण के लिए:-
– पीएम जनमन का बजट 1,000 करोड़ घटाकर 6,351 करोड़ कर दिया गया।
– वन बंधु योजना में 2023-24 के 4,295 करोड़ के मुकाबले इस साल 4,241 करोड़ आवंटित किए गए।
– आदर्श ग्राम योजना में पिछले साल 127 करोड़ खर्च हुए, लेकिन इस साल बजट 335 करोड़ कर दिया गया।
मनरेगा से लेकर गैस सब्सिडी तक-हर जगह मार!
– मनरेगा के लिए आवंटन मात्र 10,715 करोड़ है, जो मजदूरी दर और मांग के अनुपात में नाकाफी है।
– मुफ्त गैस कनेक्शन योजना को इस बजट में शून्य आवंटन मिला।
– 5 किलो मुफ्त राशन का बजट भी महज 10,473 करोड़ रखा गया, जो एक व्यक्ति को सालभर में सिर्फ 5 दिन का अनाज दे पाएगा।
आदिवासी पहचान पर संकट!
आरएसएस और भाजपा आदिवासियों को ‘वनवासी’ कहकर उनकी स्वतंत्र सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। इतिहासकारों के अनुसार, आदिवासी समुदाय आर्यों और द्रविड़ों से पहले भारत के मूल निवासी रहे हैं। लेकिन आज उनका प्रतिनिधित्व न्यायपालिका, मीडिया और कॉर्पोरेट क्षेत्र में नाममात्र है।
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के महासचिव दिनकर कपूर कहते हैं, “सरकार आदिवासियों के नाम पर कॉर्पोरेट को फायदा पहुंचा रही है। हाईवे निर्माण और सौर ऊर्जा जैसे बजट आवंटन सीधे कारपोरेट घरानों को दिए जा रहे हैं, जबकि शिक्षा-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें अनदेखी हो रही हैं।”
आदिवासी समुदाय देश की आबादी का 8.6% है, लेकिन बजट आवंटन और योजनाओं का क्रियान्वयन उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। विकास के नाम पर की गई घोषणाएं केवल चुनावी रणनीति लगती हैं। जरूरत इस बात की है कि आदिवासियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका को प्राथमिकता देते हुए विशेष बजटीय प्रावधान किए जाएं। वरना, ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा महज एक खोखला वादा बनकर रह जाएगा।
(लेखक: दिनकर कपूर, ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट, यूपी के महासचिव)
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