नई दिल्ली। कर्नाटक राज्य में सिविल मामलों के त्वरित निपटान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राष्ट्रपति ने सिविल प्रक्रिया संहिता (कर्नाटक संशोधन) अधिनियम, 2024 को मंजूरी दे दी है। यह अधिनियम अब राज्य राजपत्र में प्रकाशित हो चुका है और जल्द ही प्रभाव में आएगा। इसके तहत सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में संशोधन किया गया है ताकि लंबित मामलों का शीघ्र समाधान हो सके और न्याय व्यवस्था अधिक प्रभावी और समयबद्ध बन सके।
संशोधन का उद्देश्य
राज्य सरकार ने न्यायिक प्रणाली पर बढ़ते बोझ और अदालतों में वर्षों से लंबित सिविल मामलों की संख्या को देखते हुए यह संशोधन किया है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य न्याय में होने वाली देरी को कम करना और लोगों को समय पर राहत प्रदान करना है।
संशोधन के प्रमुख प्रावधान
अब सिविल विवादों के समाधान के लिए अदालत मुकदमे से पहले मध्यस्थता (मेडिएशन) की प्रक्रिया अपनाएगी।
मध्यस्थों को दो महीने का समय दिया जाएगा, जिसमें वे पक्षों के बीच आपसी सहमति से विवाद का समाधान निकालने का प्रयास करेंगे।
यदि दो महीनों में विवाद सुलझ नहीं पाता, तो अदालत तुरंत मुकदमे की प्रक्रिया शुरू कर देगी।
यदि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों सहमत हों, तो मध्यस्थता की अवधि एक महीने के लिए और बढ़ाई जा सकती है।
यह संशोधन राज्य की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या घटाने और समयबद्ध न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है।
संभावित प्रभाव और विश्लेषण
इस संशोधन के लागू होने से कर्नाटक की न्याय प्रणाली में गति और पारदर्शिता आने की संभावना है। मध्यस्थता जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान उपायों को बढ़ावा मिलने से न केवल अदालतों पर बोझ कम होगा, बल्कि आम नागरिकों को भी जल्दी राहत मिल सकेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह मॉडल सफल होता है, तो अन्य राज्य भी इस दिशा में पहल कर सकते हैं।
राष्ट्रपति की मंजूरी से प्रभावी हुआ यह संशोधन कर्नाटक में न्यायिक सुधारों की दिशा में एक अहम कदम है। इससे नागरिकों को न सिर्फ समय पर न्याय मिलेगा, बल्कि अदालतों की कार्यप्रणाली भी अधिक सुचारु और प्रभावी हो सकेगी।
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