छत्तीसगढ़ के नगर निकाय चुनावों में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए बड़ी जीत हासिल की है। इस चुनाव में क्या हुआ और इसके क्या मायने हैं, आइए समझते हैं सरल भाषा में।
क्या कहते हैं चुनाव परिणाम
छत्तीसगढ़ के 173 नगर निकायों में हुए चुनावों में भाजपा ने जबरदस्त सफलता पाई है। इनमें:
– 10 नगर निगम, 49 नगर पालिका परिषद और 114 नगर पंचायतों के चुनाव हुए
– कुल 3,200 वार्डों में से भाजपा ने 1,868 वार्ड जीते।
– कांग्रेस को महज 952 वार्डों में जीत मिली।
– अन्य दलों और निर्दलीयों ने 227 वार्ड जीते।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सभी 10 नगर निगमों के महापौर पद भाजपा ने अपने नाम किए हैं।
वोट प्रतिशत क्या कहता है?
नगर निकाय प्रमुखों के चुनाव में:
– भाजपा को 56.04% वोट मिले
– कांग्रेस को मात्र 31.25% वोट मिले
वार्ड पार्षदों के चुनाव में:
– भाजपा को 46.62% वोट मिले
– कांग्रेस को 33.58% वोट मिले
यह आंकड़े पिछले विधानसभा चुनावों से तुलना करने पर चिंताजनक दिखते हैं, जहां कांग्रेस को 42.23% वोट मिले थे और भाजपा को 46.27%। स्पष्ट है कि कांग्रेस अपना जनाधार खो रही है।
कांग्रेस की हार के कारण
1. कमजोर संगठन**: पार्टी में गुटबाजी और अव्यवस्था
2. टिकट बंटवारे में गलतियां**: जमीनी नेताओं को छोड़कर सिर्फ धन बल वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता
3. भ्रष्टाचार के आरोप**: अपने शासनकाल के दौरान हुए घोटालों के आरोपों का कोई ठोस जवाब नहीं
4. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मुकाबला करने में असफल**: उदार हिंदुत्व की नीति से बाहर नहीं निकल पाई
5. स्पष्ट राजनीतिक दृष्टिकोण का अभाव**: सिर्फ “पलटवार” की राजनीति, कोई ठोस विकल्प पेश नहीं
एक महत्वपूर्ण अवसर
छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों में एक रोचक पहलू यह भी है कि राज्य की लगभग 15-20% जनता अभी भी भाजपा और कांग्रेस के प्रभाव से बाहर है। इसका प्रमाण है कि:-
– निर्दलीयों ने 5 नगर पालिका अध्यक्ष और 10 नगर पंचायत अध्यक्ष पद जीते
– आम आदमी पार्टी ने 1 नगर पालिका अध्यक्ष पद जीता
– बसपा ने 1 नगर पंचायत अध्यक्ष पद जीता
– भाकपा के 6 वार्ड पार्षद विजयी हुए
– कुल मिलाकर 12% पार्षद सीटें गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस उम्मीदवारों के पास गईं।
यह एक संकेत है कि यदि कांग्रेस जनता की समस्याओं पर मजबूत संघर्ष करे और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर दृढ़ता से खड़ी रहे, तो एक मजबूत भाजपा विरोधी मोर्चा बन सकता है।
भविष्य का रास्ता
छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि कांग्रेस को अपनी रणनीति में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। समस्याओं पर जमीनी स्तर पर निरंतर संघर्ष, धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता और एक मजबूत विपक्षी गठबंधन का निर्माण – यही आगे का रास्ता हो सकता है।

इस चुनाव ने दिखाया है कि भाजपा की जीत कोई आश्चर्य नहीं, लेकिन कांग्रेस के लिए यह एक गंभीर संकेत अवश्य है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
-संजय पराते
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